टू-इन-वन

टू-इन-वन

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वह वहाँ कहानी सुनाने वाला तीसरा आदमी था। पश्चिमी क्षितिज पर सूर्यास्त हुए कुछ अरसा हो गया था। यह वह समय था जब दिन की अंतिम रोशनी रात के पहले अँधेरे से मिलती है। तब चौंतीस-पैंतीस साल के उस आदमी ने कहना शुरू किया — “ आज मैं आपको एक ‘ टू-इन-वन ‘ व्यक्ति की सत्य-कथा सुनाता हूँ:

“ मैं किथ्थे हाँ ? मैंनू की होया है ? ‘ ( मैं कहाँ हूँ ? मुझे क्या हुआ है ? ) — अस्पताल के बिस्तर पर पड़े सुकुमारन ने बग़ल में खड़े अपने रिश्तेदारों से पूछा। लेकिन उनके रिश्तेदार पंजाबी में प्रश्न पूछे जाने के कारण कुछ भी नहीं समझ पाए !

“दरअसल सुकुमारन केरल के एक मध्यवर्गीय मलयाली परिवार से थे। तीस वर्षीय सुकुमारन राजधानी थिरुवनंतपुरम् के सरकारी कॉलेज में मलयालम भाषा के प्राध्यापक थे।

“ सुकुमारन के घरवाले हैरान थे कि एक हफ़्ते कोमा में रहने के बाद अस्पताल के बिस्तर पर पड़े सुकुमारन जब होश में आए तो वे पंजाबी कैसे बोलने लगे ? उन्हें तो पंजाबी आती ही नहीं थी। वे तो किसी पंजाबी-भाषी के सम्पर्क में भी आज तक नहीं आए। बल्कि वे तो एक हफ़्ते पहले घटी दुर्घटना से पहले कभी उत्तर भारत भी नहीं आए थे। वैसे भी सुकुमारन को पहले पंजाबियों से चिढ़ थी। थिरुवनंतपुरम् में एक मोटर-साइकिल ऐक्सिडेंट में उन्हें सिर में गम्भीर चोट लगी थी। डॉक्टरों की सलाह पर घरवाले उन्हें ‘एयर ऐम्बुलेंस‘ विमान के ज़रिए दिल्ली के ‘ एम्स ‘ अस्पताल में ले आए जहाँ पिछले एक हफ़्ते से वे कोमा में थे।

“आज सुबह जब वे कोमा में से जागे तो घरवालों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन उन्हें अचानक पंजाबी बोलता देखकर वे भी हैरान रह गए क्योंकि उन्हें तो केवल मलयालम भाषा आती थी, हालाँकि वे टूटी-फूटी अंग्रेज़ी और हिंदी भी बोल लेते थे।

“सुकुमारन के सिर के घाव अब भर चुके थे।उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों को भी जब बिना सीखे उनके पंजाबी बोलने की बात पता चली तो उन्होंने उनके दिमाग का दोबारा एम.आर.आइ. करा डाला पर एम.आर. आइ. की रिपोर्ट में सब कुछ ठीक पाया गया।

“आप क़िस्मत वाले हैं सुकुमारन जी, ‘उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज करते हुए डॉक्टर ने कहा। ‘इतनी सीरियस हेड इन्ज्यरी के बावजूद आप ठीक हो गए। बेस्ट-ऑफ़-लक् टु यू। ‘

“ थैंक्यू , डॉक्टर।“ सुकुमारन ने कृतज्ञता से हाथ जोड़ दिए।

“ घरवाले सुकुमारन को विमान से वापस थिरुवनंतपुरम् ले गए। हवाई अड्डे पर और विमान में भी सुकुमारन ने जहाँ कहीं पंजाबी या सरदार देखा, वहाँ उन्होंने सहजता से उनसे धाराप्रवाह पंजाबी में बातचीत शुरू कर दी। लगता ही नहीं था कि वे एक ऐसे मलयाली थे जिन्होंने कभी पंजाबी भाषा सीखी ही नहीं थी। यह वाक़ई किसी चमत्कार से कम नहीं था। वे जैसे ‘ टू-इन-वन ‘ हो गए थे — एक साथ मलयाली और पंजाबी, दोनों।

“ पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद सुकुमारन ने कॉलेज में अपनी ड्यूटी दोबारा जोएन कर ली। लेकिन उनमें पहले की अपेक्षा बहुत-से परिवर्तन आ गए थे। अब वे राजमा-चावल, छोले-पूरी, दूध-पत्ती, लस्सी आदि के दीवाने हो गए थे। चूँकि घर में तो सामान्य मलयाली खाना ही बनता था इसलिए सुकुमारन ने एक पंजाबी रेस्तराँ ढूँढ़ निकाला जहाँ वे चाव से पंजाबी व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने लगे। वे अब शौक़ से दिलेर मेहंदी, मीका, हनी सिंह आदि के पंजाबी गाने भी सुनने लगे। वे हर रविवार इलाक़े के एक गुरुद्वारे में जा कर गुरु ग्रंथ साहब के सामने माथा टेकते और गुरबाणी का आनंद लेते। वे किसी पुस्तकालय से खोज कर गुरमुखी लिपि में छपी पंजाबी की कुछ पुस्तकें भी ले आए थे जिन्हें वे ख़ाली समय में पढ़ा करते थे। सुकुमारन ने कलाई में कड़ा पहनना शुरू कर दिया था। वे पापड़-वड़ियों के शौक़ीन भी हो गए थे। अब उनकी इच्छा अमृतसर की यात्रा पर जाने की हो गई थी।

“ घरवालों ने जब सुकुमारन में ये बदलाव देखे तो उनके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही। जब वे किसी और को सारी बातें बताते तो वह भी दाँतों तले उँगली दबा लेता। एक मलयाली व्यक्ति जिसने कभी पंजाबी पढ़ना, लिखना या बोलना नहीं सीखा, वह एक दुर्घटना में लगी सिर की चोट के बाद कोमा में से जागते ही एक अज्ञात भाषा पंजाबी कैसे बोलने लगता है ?

“ घरवाले फिर से सुकुमारन को डॉक्टरों के पास ले गए ताकि इस रहस्य की गुत्थी सुलझ सके लेकिन उनकी सभी रिपोर्ट्स नार्मल आती थीं। ब्रेन का एम.आर.आइ. भी सामान्य था। ऐसे में कुछ भी बता पाना मुमकिन नहीं था।

“ उधर सुकुमारन नियम से हर रविवार गुरुद्वारे जाने लगे थे। एक दिन वहीं उनकी मुलाक़ात परमिंदर से हो गई। उस दिन जब सुकुमारन सिर पर रुमाल बाँधे गुरुद्वारे में गुरबाणी सुन रहे थे तो उन्होंने ख़ुद को एक गोरी, छरहरी पंजाबी युवती की बग़ल में पाया। वह भी गुरबाणी सुनने में मग्न थी। धीरे-धीरे उस युवती परमिंदर और सुकुमारन में बातचीत होने लगी। सुकुमारन ने अपनी आश्चर्यजनक कहानी परमिंदर को भी सुनांई। कुछ ही अरसे में परमिंदर और सुकुमारन क़रीब आ गए। परिचय प्रगाढ़ता की ओर बढ़ा। दिल से दिल मिले। और दोनों के दिलों में प्यार हिलोरें लेने लगा। परमिंदर के पिता का थिरुवनंतपुरम् में मोटर स्पेयर-पार्ट्स का बिज़नेस था।

“ शुरू में दोनों के घरवालों ने इस शादी का विरोध किया। दोनों परिवारों के सदस्यों का कहना था कि भला पंजाबी और मलयाली का क्या मेल ? लेकिन दोनों प्रेमी अपनी बात पर अडे़ रहे। उनके आपसी प्यार को देखते हुए अंत में दोनों परिवारों के सदस्यों ने उनकी शादी के लिए हामी भर दी। दोनों घरों में ख़ुशी के माहौल में शादी की तैयारियाँ होने लगीं। यह तय किया गया कि बारी-बारी से दोनों विधियों, मलयाली औरपंजाबी , में विवाह की रस्म अदा की जाएगी। एक महीने बाद उनकी शादी की तारीख़ पक्की कर दी गई थी।

“इस बीच एक दिन सुकुमारन अपने कॉलेज की इमारत की सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि तभी ध्यान इधर-उधर हो जाने की वजह से सीढ़ियों पर उनका पैर मुड़ गया और वे सीढ़ियों पर से गिर गए। दुर्भाग्य से उन्हें फिर से सिर में चोट लगी और वे बेहोश हो गए। कॉलेज के उनके सहयोगी उन्हें एम्बुलेंस में डाल कर अस्पताल ले गए। घरवालों को पता चला तो तो वे भी दौड़े-दौड़े अस्पताल पहुँचे। शुक्र यह था कि इस बार सुकुमारन को सिर में गहरी चोट नहीं लगी थी। दो-तीन घंटों के बाद उन्हें होश आ गया। लेकिन घरवालों की आँखें तब फटी-की-फटी रह गईं जब आँखें खुलते ही सुकुमारन ने किसी अजनबी भाषा में उनसे कुछ प्रश्न पूछ लिये। मलयाली में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वे अब बांग्ला भाषा बोल सकते थे। पंजाबी भाषा के बारे में पूछे जाने पर सुकुमारन ने हैरानी से जवाब दिया कि उन्होंने तो कभी पंजाबी भाषा सीखी ही नहीं थी। फिर उन्हें पंजाबी भाषा कैसे आ सकती थी ?

“ तब सुकुमारन के घरवालों को यह बात स्प्ष्ट हो गई कि सिर में दोबारा लगी इस चोट की वजह से ज़रूर उनके दिमाग के भाषा वाले केंद्र की तंत्रिकाओं में दोबारा कुछ गड्ड-मड्ड हो गया था। इसी वजह से वे न केवल अब एक और अजनबी भाषा बांग्ला बोलने लग थे बल्कि अपने गुरुद्वारे वाले दिनों की सारी स्मृतियों को भूल गए थे। वहाँ मौजूद परमिंदर को भी सुकुमारन नहीं पहचान पाया। यह किसी त्रासदी से कम नही था।

“ ताज़ा सूचना के अनुसार सुकुमारन अब न पंजाबी बोल पाते हैं, न पंजाबी पढ़-लिख पाते हैं। किंतु शायद हाल ही में सिर में दोबारा लग गई चोट की वजह से या किसी चमत्कार के कारण अब वे बिना सीखे न केवल धाराप्रवाह बांग्ला बोलने लगे हैं बल्कि बांग्ला भाषा पढ़ने और लिखने भी लगे हैं। परमिंदर इस घटना की वजह से सदमे में है। सुकुमारन के घरवाले कुछ समझ नहीं पा रहे हैं कि वे क्या करें। एक बात जो वे निश्चित रूप से समझ गए हैं वह यह है कि अब उन्हें हर हाल में सुकुमारन के सिर को चोट लगने से बचाना होगा।

“ बहरहाल सुकुमारन ने दोबारा कॉलेज में अपनी ड्यूटी जोइन कर ली है। अब वह रवींद्र संगीत के दीवाने हो गए हैं। अब उनकी विश-लिस्ट में कोलकाता की यात्रा करना और रोशोगुल्ला और माछेर-झोल खाना जुड़ गया है। वे अब भी ‘ टू-इन-वन ‘ हैं, मलयाली और बंगाली एक साथ ... “

इतना कह कर उस तीसरे आदमी ने अपनी कहानी ख़त्म कर दी। थोड़ी देर चुप्पी छाई रही। फिर किसी ने पूछा, “आपको इस सत्य-कथा के बारे में कैसे पता ? “

“मुझे इस सत्य-कथा के बारे में इसलिए पता है क्योंकि मैं ही वह ‘ टू-इन-वन ‘ व्यक्ति सुकुमारन हूँ जिसके साथ ये घटनाएँ घटी थीं। “ इतना कह कर वह तीसरा आदमी उठा और वहाँ से चल दिया। हम सब अवाक्-से उसे दूर जाते हुए देखते रह गए।


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