तमन्ना.....!!
तमन्ना.....!!
संदली ने फिर उत्साहित होकर पूछा, "क्या हुआ आंटी? आपने बताया नहीं की क्या नया सीख रही हैं।"जानकी ने उसकी और मुस्कुराते हुए बोला, बस ज़िन्दगी के कड़वे अनुभव को हँसकर कैसे निकलना चाहिए।जानकी की ये बात सुनकर संदली भी कहीं खो गयी। उसके मस्तिक में भी कुछ उसके जीवन के कटु अनुभव का दर्द जैसे याद आ गया था। वो एकदम चुप थी, क्योंकि उसके पास कोई शब्द नहीं था जो अपने उस दर्द को बयां कर सके।
जानकी को ये अंदाजा हो गया कि उसकी बात ने संदली के दर्द को फिर से ताज़ा किया है। लेकिन क्या करे, कभी कभी कुछ दर्द और गम को साझा करने से मन हल्का हो जाता है। इसीलिए जानकी ने उससे ऐसे बात की।
संदली को एकदम ख़ामोश देख जानकी ने पूछा "क्या हुआ बेटा किस सोच में पड़ गयी।" जानकी की बात ने जैसे संदली को जैसे किसी नींद से जगाया हो। उसने बोला, "नहीं आंटी कुछ नहीं।" जानकी ने बोला "कोई दर्द ज़रूर है जो तुम्हारे भीतर तुमको आगे जाने से रोक रहा है, अगर कोई ऐतराज़ न हो तो तुम मुझसे बोल सकती हो।"
इतना कहते ही जैसे संदली की आंखें आँसुओं से भीग गयी। और बोली आंटी , "जीवन के कटु अनुभव से निकलने के लिए आप क्या सीख रही हैं क्या मुझे भी बता सकती है। मुझे भी हँसकर संभलना है, क्योंकि ज़िन्दगी के इस सफ़र पर अब मुझे अपने आत्मशक्ति से कुछ सपने है जिनको पूरा करना है।"
जानकी उसकी बातें सुन रही थी। संदली ने फिर बोला "आंटी मैंने अपनी आगे की पढ़ाई इसलिए जारी की क्योंकि किसी का अधूरा सपने को अपना बनाकर अब अकेले चलना है। वो साथ तो नहीं है फिर भी हर पल मेरे साथ है। उसकी याद के सहारे से मुझे खुद में आत्मविश्वास रखना है कि मैं उसको पूरा कर सकती हूँ।"
संदली इस वक़्त बेहद भावुक होते हुए बोली "ऑन्टी मेरे पति आर्मी में थे। पिछले साल एक ओपेर्रेशन में आतंकवादियों से हो रही मुठभेड़ में वो शहीद हो गए। उन्होंने मुझको लेकर सिर्फ एक ही सपना देखा था कि मैं अपनी पढ़ायी पूरी करूँ और उनके गाँव में एक बालिका विद्यालय खोलूँ। जहाँ हर लड़की को पढ़ाई के साथ उन्हें सशक्त करने और आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी दूँ। वो नहींं चाहते थे की कोई भी लड़की किसी भी परिस्थिति में किसी और पे पूरी तरह निर्भर रहे। उनका मानना था कि हर लड़की हर नारी पूरी तरह शिक्षित और खुद अपने पाँव पर खड़ी रहे। एक जाबांज़ सिपाही की तरह।
उनकी इसी सपने को पूरा करने के लिए मैंने दिन रात एक कर दिया है खुद शिक्षा पाकर और लड़कियों को शिक्षित करने के लिए। लेकिन कभी कभी उनके ना होने के दर्द को सहन नहीं कर पाती हूँ और अपने को बहुत कमजोर समझने लगती हूँ, जिससे मुझे निकलना है।"
जानकी ने संदली की इस पूरी दास्तां सुनकर वो भी भावुक हो गयी और सीधा संदली को गले से लगा लिया और बोली बिलकुल "तुम्हारा जो संघर्ष है तुम ज़रूर कामयाब होगी ये मेरा पूरा विश्वास है।"
"अपने देश के उस रक्षक की अधूरे सपने को तुम ज़रूर मुक़ाम तक पहुँचाओगी। बस इतना याद रखना जिसने देश के लिए जान दी है उसकी तुम अर्धांगनी हो, एक "वीरवधु" हो जो कभी भी कमजोर नहीं हो सकती।" जानकी की इस हमदर्दी और हौसला अफजाई से संदली में जैसे एक नई जान सी आ गयी। उसका मन हल्का और चेहरे पे आत्मविश्वास की ऐसी चमक आ गयी की जानकी भी उसके साथ मुस्कुराने लगी।
