Abhishek Kumar

Comedy

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तकनिकी संस्थान की अप्सराएं

तकनिकी संस्थान की अप्सराएं

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यह रचना मात्र है, इसे महिला चरित्र का मूल्यांकन न समझे।

हमारा देश भारतवर्ष आदि काल से ही पुरुष प्रधान देश रहा है, लेकिन जैसे-जैसे समय का पहिया बढ़ता रहा वैसे-वैसे नारियां प्रबल होती गयी और सभी मामलों में पुरुषों के कान कतरने लगी।

आजकल सभी क्षेत्रों में नारियों की छाया विद्यमान है, क्यों ? पुरुषों का काम कठिनतम करने के लिए उस मोहिनी की तरह जिसने विश्वामित्र का यज्ञ भंग किया था। ईश्वर ने कुछ अच्छा सोच कर पुरुष बनाया ताकि जग कल्याण हो सके, और फिर न जाने क्या सोच कर नारी बनायीं। तब से ले कर आज

तक न तो पुरुष चैन से बैठ पाए है और न ही इनके सृजनहार।

ऐसे ही कई तकनिकी संस्थानों में ये नारियां विद्यमान है जिनकी काया व्याख्या में विशेषण प्रयोग से करूँगा। पहले तो मैं ये बता दू ये संस्थान विद्या अर्जित करने का केंद्र न होकर एक स्वयंवर या स्वयंबधू स्थली है । यहाँ सत्र के प्रारंभ में ही देवतागण अपनी अपनी अप्सराओं का चुनाव कर लेते

है। बाकी बची शुर्पनखाएं भी पीछे नहीं हटती वो भी कोई न कोई शुक्राचार्य पसंद कर ही लेती है। हर जगह युगलबंदी ही दिखती है, कहीं भी कोई देवता अकेले नहीं दिखते। कुछ वर्षों का प्रेम समयांतराल में उलट पलट जाता है। कभी इन देवता की अप्सरा दुसरे देवता के साथ देखी जाती है तो कभी उनकी

इनके साथ पकड़ी जाती है। कभी कभी ये अप्सरायें अपने पितामह ब्रम्हा के सामने इन देवताओं को भ्राता श्री के ओहदे से सम्मानित करने से भी पीछे नहीं हटती। ये युगल हरेक क्षण इसी इंतज़ार में रहते है की कब कोई अवकाश मिले और वो एकांतवास का पूर्ण उपयोग कर सके। अप्सराओं के बीच कई अप्सराओं का हृदय देवताओं की स्वर्ण मुद्राओं पे आ जाता है, जिन्हें पाने की इच्छा उन्हें हर क्षण रहती है। आज कल नारद यन्त्र के प्रयोग से प्रेम प्रक्रिया में काफी तेजी आ गयी है, जिस रफ़्तार से कथित प्रेम होता है उसी रफ़्तार से हृदय खंडन भी होता है। नारद यन्त्र के महिमा अपरम्पार है।

अब बात करते है इनके बीच फैली एक महामारी की जो की लाइलाज है, वो है “पार्टी", कभी भी कुछ भी हो तो “पार्टी" जन्मदिन हो तो क्या कहने सभी अप्सरायें “पार्टी" की इच्छा जाहिर कर देती

है, और देवताओं के लाख न चाहने पर भी उन्हें अपनी जेबें ढीली करनी पड़ती है । इस मामले में अप्सरायें काफी निष्पक्ष होती है, अमीर या गरीब सभी देवताओं से एक समान व्यवहार होता है।

जन्मदिन तक बात रही तो ठीक बात कहाँ-कहाँ पहुँचती है ये देखिये ! “ अरे! तेरी गर्लफ्रेंड बन गयी चलो-चलो" " अरे! तेरा ब्रेकअप हो गया ......चलो-चलो “पार्टी" " अरे! तेरा उससे झगडा हो गया

." मैं तो यही सोच सोच कर विस्मित होता रहता हूँ की कसी दिन ये न सुनना पड़े की “अरे! तेरे पिताजी ने दूसरी शादी कर ली चलो “पार्टी" दो"। ये पार्टी और कुछ नहीं बलि जेबें ढीली करने का सबसे आसान तरीका है । अधिकांशतः पार्टियों की तीव्र इच्छा इन अप्सराओं में ही होती है। पर एक बात, इन देवताओं के बीच एक-आध हनुमान जी जैसे जीव पाए जाते है, लेकिन वो भी ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाते। अरे! जब राम भक्त हनुमान आजीवन ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करते रहे फिर भी उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो आजकल के हनुमान कहाँ से बचेंगे ?

हे प्रभु ! हमारे जगत को इन अप्सराओं से बचाओ !


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