सूखे सोत का भूत
सूखे सोत का भूत
बात कोई बीस साल पुरानी है मैं और मेरा मित्र अर्जुन सिंह मेरे मामा के घर जा रहे थे, मेरे माना का घर कालागढ़ के पहाड़ी की तलहटी में बसा एक छोटा सा गांव है।
गांव तक जाने के लिए बस से उतर कर लगभग तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और हमारे यहां से लगभग साठ किलोमीटर बस से जाना पड़ता था।
घर से हम चाहे कितनी भी सुबह चलें, तीन बसें बदलकर वहाँ पहुँचने में दोपहर हो ही जाती थी।
हम दोनों ठीक 12 बजे बस से उतरे और चल दिये पैदल गांव की ओर।
क्यों ना लंबे रास्ते के बजाए सूखे सोत (पहाड़ से बरसात का पानी लाने वाली एक गहरी नदी जैसी संरचना) से चलें जहां से हमे गांव जाने के लिए आधी दूरी (यही कोई दो किलोमीटर) ही चलना पड़ेगा, किन्तु उस रास्ते में तो जंगली जानवर ? अर्जुन ने कहा।
जंगली जानवर सदा अकेले आदमी पर हमला करते हैं, मैंने समझाया।
और चोर खले का छलाबा ?,अर्जुन फिर डरते हुए बोला।
अरे यार उस जगह का तो नाम ही चोर खला है वहाँ भूत का छलाबा नहीं रहता बल्कि चोर रहते हैं जो लोगों को डराकर उन्हें लूट लेते हैं, मैंने उसे बताया।
और हम दोनों आधा किलोमीटर सड़क पर चलकर सोत में उतर गए ये सोत मुख्य सड़क से लगभग दस मीटर गहरा और बीस मीटर चौड़ा किसी नदी के जैसा ही था जिसमें सुखी सफेद रेत भरी रहती थी और उसके दोनों किनारों पर घनी झाड़ियाँ तथा ऊँचे पेड़ लगे थे।
जून की भरी दोपहरी में भी उसके अंदर छाया के कारण अच्छी ठंडक हो रही थी।
हम दोनों लोग मज़े में चले जा रहे हैं तभी हमने देखा चोर खले के पास (लगभग दस मीटर दूर) एक सरदार अजीब सी हरकतें कर रहा था।
मैंने इशारे से अर्जुन सिंह को चुप रहते हुए रुकने का इशारा किया और सामने देखने को कहा।
वह सरदार डर से कांप रहा था वह अचानक जोर से गिर गया, ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे मार रहा है और वह अपने हाथ सामने करके बचने की कोशिश कर रहा है।
अचानक वह रेत में जोर से लुढका जैसे किसी ने उसे फेंका हो।
क्या है वहाँ ? अर्जुन ने पूछा ।
छलाबा, मैंने सामने देखते हुए कहा।
क्या ये सरदार छलाबा है ? अर्जुन ने फिर पूछा।
नहीं छलाबा इसके सामने है।
फिर हमें क्यों नही दिख रहा ? अर्जुन ने फिर पूछा।
तभी सरदार अपनी गर्दन अपने दोनों हाथों से पकड़ कर किसी से छुड़ाने के प्रयास में खुद ही दबाने लगा।
आओ अर्जुन, मैने अर्जुन का हाथ पकड़कर उधर दौड़ लगा दी और अपनी बोतल का पानी जोर से उसके मुंह पर फेंक दिया।
पानी पड़ते ही सरदार जैसे नींद से जगा हो, वह चोंकते हुए बोला, कहाँ गया भूत ?
तुम लोग कौन हो ?
हम हैं अर्जुन और पंडित, मैंने हँसते हुए कहा।
आपको क्या हुआ था ? अर्जुन ने पूछा।
भ......... भूत था यहाँ, मैं जैसे ही यहाँ आया वह इस खले (पाइप लाइन दबाने के लिए बने बड़े गड्ढे) से निकलकर अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ और हँसते हुए बोला आगे जाना है तो मुझे कुश्ती में हरा कर जाओ।
मैने उसके सामने हाथ जोड़ दिए कि वह मुझे जाने दे मैं उसके मुकाबले बहुत कमजोर हूँ।
लेकिन वह मुझे उठा उठा कर पटकने लगा, वह तो मुझे गला दबाकर मार ही डालता अगर तुम दोनों मुझे बचा नहीं लेते।
आपको भूत नहीं आपका डर मार रहा था, अगर आपने हिम्मत करके उससे कहा होता कि आजा लड़ ले फिर वह चुपचाप भाग गया होता मैंने हँसते हुए कहा।
आपको कहाँ जाना है, आइये चलिए हमारे साथ, अर्जुन बोला और हम हँसते हुए अपनी मंज़िल की ओर चल दिए।