सुबह चार बजे की चाय
सुबह चार बजे की चाय
बात शायद 1994 के आसपास की है ख़ैर उस से ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ेगा मैं दिल्ली से जयपुर जा रहा था रात की बस थी 2×2 मेरी बगल वाली सीट पर एक बुज़ुर्ग बैठे थे बस चली तो कुछ बातें होने लगी।
आमतौर पर मैं देखता हूँ उम्र के इस पड़ाव पर लोग बहुत संतुष्ट नहीं होते और वे रोज़ अपनी बीती ज़िन्दगी को रीप्ले कर कर के देखते हैं अपनी ग़लतियों पर पछताते हैं और जो जीवन वे जी रहे होते हैं उस से भी उन्हें अनगिनत शिकायत होती हैं पर इस सबके विपरीत यह बुज़ुर्ग बिलकुल शांत, ख़ुश और अपने जीवन से संतुष्ट नज़र आ रहे थे कोई झल्लाहट नहीं थी उनके चेहरे पे एक गहरी शांति थी सुकून था एक तेज़ था।
इधर उधर की बातें होती रही और वे बिना किसी लाग लपेट के मुझ से अपनी सब बातें कर रहे थे। जैसे उन्होंने बताया की उनके चार बेटे हैं चारों व्यापार संभालते हैं सभी का विवाह हो चुका है और सभी लोग एक ही घर में रहते हैं पत्नी का स्वर्गवास बहुत पहले ही हो चुका था। पर उन्होंने दूसरी शादी नहीं की ख़ुद ही व्यापार और अपने चारों बेटों को संभाला, फिर वे अपनी बहुओं की तारीफ़ करने लगे और बोले बस यूँ समझो स्वर्ग में हूँ।
ये सब सुन कर मेरी उनमें उत्सुकता और बढ़ गई, अब मुझ से रहा ना गया और मैंने सीधे ही पूछ लिया की "कैसे यह संभव हुआ, क्या इसके लिए कोई प्रयास करने पड़े या यह सब स्वाभाविक रूप से हो रहा है। चार बेटे फिर भी समझ आ सकता है पर चार बहुएँ एक साथ बिना किसी विवाद के कैसे। तो वे बोले छोटे मोटे विवाद तो होते हैं पर वह स्वाभाविक हैं पर कोई बड़ा विवाद नहीं है बहुत प्यार से रहती है सब बहुएँ।"
फिर उन्होंने बताया की पत्नी के देहांत के बाद क्यूँकि घर और व्यापार उन्ही को संभालना था तो उन्होंने सुबह चार बजे उठना शुरू कर दिया था जब बेटों का ब्याह नहीं हुआ था तो वे सुबह उठ कर रसोई जो कि घर के आँगन के दूसरे छोर पर थी का ताला खोलते थे और अपने लिए चाय बना लेते थे। तब रसोई के ताले की चाबी उन्ही के पास रहती थी, जब सबसे बड़े बेटे का ब्याह किया तो उन्होंने बहु के घर संभालते ही वो रसोई की चाबी उस बहु को सौंप दी और साथ ही कहा की, "बेटा ये चाबी रात को जहाँ भी रखो मुझे बता देना मुझे सुबह चार बजे रसोई का ताला खोलना होगा तो मुझे चाबी ढूँढनी नहीं पड़ेगी।" बहु ने पूछ लिया की "पिताजी आप सुबह चार बजे रसोई में क्या करेंगे" तो उन्होंने बताया की "बेटा मुझे बहुत साल से सुबह चार बजे उठने की आदत है और मैं उठ कर अपने लिए चाय बनाता हूँ।" बहु ने कहा "पिताजी अब मैं आ गई हूँ आप को सुबह चार बजे की चाय आप के कमरे में ही मिल जाया करेगी ये ज़िम्मेवारी अब मेरी है।" इस पर वे बोले "बेटा चार बजे बहुत जल्दी हो जाता है तुम इतनी जल्दी क्यूँ उठोगी और मुझे तो आदत है ही इतने साल से मैं ख़ुद ही चाय बना लिया करूँगा।" पर बहु नहीं मानी और उसने उन्हें रोज़ सुबह चार बजे चाय देना शुरू कर दिया फिर बाक़ी बेटों की भी धीरे धीरे शादी हो गई और उन्हें बीच में डाले बिना उन्होंने घर के काम बाँट लिए और सुबह चार बजे की चाय भी।
यह बता कर वे मुस्कुराए और बोले "देखो कोई भी काम अगर किसी पे थोपा जाए तो वह बोझ बन जाता है पर अगर वही काम स्वेच्छा से किया जाए तो बोझ नहीं लगता, वे बोले अगर मैं बड़ी बहु को यह कहता की मुझे सुबह चार बजे चाय चाहिए तो वह चाय तो संभवतया बना देती पर एक थोपे गए काम की तरह स्वेच्छा से नहीं जब मैंने ख़ुद से चाय बनाने की बात की तो उसने स्वेच्छा से वह काम अपने ज़िम्मे ले लिया और अब ख़ुशी ख़ुशी चारों बहुएँ उस काम को कर रही हैं।" वे आगे बोले "मैंने व्यापार और परिवार दोनों ही जगह किसी पर कभी कुछ नहीं थोपा सबको सब काम उनकी इच्छा से दिए इसी लिए परिवार और व्यापार दोनों जगह सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हुई और बढ़ती रही यही वजह है की परिवार और व्यापार दोनों जगह छोटे मोटे विवादों को छोड़ कर सभी प्रसन्न रहते हैं।"
आज ऐसे ही किसी मित्र से बात हुई जो कह रहा था की "हमें रिश्ते निभाने अपने आप को बदलने की आवश्यकता नहीं है हम जैसे हैं ठीक हैं पर मैं उसकी बात से सहमत नहीं था मैंने कहा जीवन में कुछ समझौते कर लेने चाहिए चाहे उनके लिए हमें अपने स्वभाव या आदतों को छोड़ना या बदलना क्यूँ ना पड़े। रिश्ते महत्वपूर्ण हैं तो ऐसे छोटे मोटे समझौते कर लेने चाहिए कहीं ऐसा ना हो की हम क़ीमती रिश्तों को खो दें। इस जीवन में हर चीज़ के लिए मोल चुकाना ही पड़ता है।" इसी संदर्भ में मुझे उन उन बुज़ुर्ग की याद आ गई कैसे उन्होंने अपने व्यापार और परिवार में सभी को छोटे मोटे समझौते करने की प्रेरणा दी और किसी पर कुछ थोपा नहीं तो सभी प्रसन्न रहे और कैसे उन्होंने और उनकी पुत्रवधू ने अपने स्वभाव में थोड़े से परिवर्तन से जीवन सरल बना लिया उन्होंने अपनी पुत्रवधू पर सुबह चार बजे की चाय नहीं थोपी पर फिर भी उन्हें सुबह चार बजे रोज़ हमेशा अपने कमरे में चाय मिली।
मैं इस बात को यही छोड़ रहा हूँ शायद मेरी बात पूरी हो गई है।।
