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P.R.I.N The Great

Inspirational

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P.R.I.N The Great

Inspirational

सीखना और सिखाना – एक ही सिक्के

सीखना और सिखाना – एक ही सिक्के

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 ठीक ही कहा गया है ‘सीखने की कोई उम्र नहीं होती है’। जीवन पर्यन्त ये प्रक्रिया अनवरत रूप से चलती रहती है| जीवन एक पाठशाला है, जहाँ हम अपने अनुभवों से शिक्षा प्राप्त करते हैं। बतौर शिक्षिका मुझे प्रत्येक दिन नए अनुभवों के माध्यम से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। मुझे अपने आसपास ऐसे बहुत से लोग नज़र आते हैं जो भले ही उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो लेकिन उनमें सीखने की उमंग निरंतर बरकरार है। वे हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करने को तत्पर रहते हैं| मुझमें भी सीखने का एक अनोखा उत्साह है। कहीं न कहीं मैं अपने विद्यार्थियों की भी विद्यार्थी बन जाती हूँ। चाहे वे विषय से सम्बंधित हो या तकनीकी ज्ञान। साथ ही साथ प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इन विद्यार्थियों से सफलता के लिए आवश्यक मूलमंत्र भी सीखने को मिलते रहते हैं। छात्र-छात्राएँ हर रोज़ कुछ न कुछ नया बताते रहते हैं, जिसमें रोचकता तो रहती साथ ही साथ गहन चिंतन की बात भी रहती है। उनकी कही गई बातों को मैं अपने शिक्षण के दौरान भी उपयोग में लाती हूँ।

मुझे याद है, एक बार मैं बच्चों से शहर में बढ़ते प्रदूषण के बारे में चर्चा कर रही थी। तभी एक छात्र ने बताया कि वह दशहरे की छुट्टियों में अपने दादाजी के गाँव गया था। मैंने भी उसकी बातों में रूचि दर्शाई और उसे उस गाँव के बारे में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया। उसने गाँव की खूबसूरती का बारीकी से विश्लेषण किया। उसने सुबह में पक्षियों के कलरव से लेकर गौधूली बेला में लौटती गायों का वर्णन बहुत ही मनोरंजक रूप से किया। ठंडी और ताज़ी बयार का वर्णन करते हुए उसने बताया कि वह भी खुली छत के नीचे टिमटिमाते तारों के बीच सोया था। उसका यह सादगी पूर्ण वर्णन सभी छात्रों को बहुत मन भाया। उसके इस वृतांत से मुझे एक ही बार में इतने उपाय सूझे कि जिससे छात्रों की सृजनात्मकता बढ़ाई जा सकती है| मैंने गाँव की प्रकृति का वर्णन, ग्रामीण और शहरी वातावरण में अंतर, प्रदूषण की समस्या, अन्न और जानवरों का महत्व आदि विभिन्न विषयों पर छात्रों को

रचनात्मक लेख लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। उस दिन मैंने जाना कि बच्चो की कल्पनाशक्ति बहुत ही उच्च स्तर की होती है, क्योंकि उनका ह्रदय साफ़ होता है।

वर्तमान में कहीं न कहीं नैतिक मूल्य कम होते जा रहे हैं। हमारे मन में जो सम्मान और आदर के भाव अपने शिक्षक के प्रति होते थे, वे आज काफी कम हो गए हैं। लेकिन आज भी ऐसे बहुत से विद्यार्थी हैं जिनकी आँखों में शिक्षक के प्रति सम्मान देखा जा सकता है। मेरा एक विद्यार्थी है, अध्ययन की तुलना में खेल के प्रति उसकी रूचि अधिक है। वह है भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी। खेल के प्रति उसकी लगन तारीफे काबिल है। वह भी खेल और पढ़ाई में संतुलन बनाए रखने की भरसक कोशिश करता है। इसमें उसकी माँ की भूमिका महत्वपूर्ण है। उसकी माँ नियमित रूप से शिक्षकों के साथ तारतम्य बनाए रखती है और हर एक चीज को पूरा करवाने का उत्तरदायित्व भी लेती हैं। उसकी सतत अनुपस्थिति, उसके अध्ययन में कभी अड़चन नहीं बनती। लगातार कठिन परिश्रम और मेहनत करने के कारण वह कभी-कभी बहुत ही थका रहता है। लेकिन शिक्षकों के प्रति सम्मान भाव के कारण वह अपनी थकान भुलाकर अध्ययन जारी रखता है।

उसका हर बात के लिए कहा गया ‘जी मेडम’ शब्द मुझे बहुत प्रभावित करता है। उसका ये आदर भाव सिर्फ हम शिक्षकों के प्रति तक ही सीमित नहीं है, वह अपने प्रत्येक सहपाठी के प्रति यही भाव रखता है। है भी वह सभी छात्रों का चहेता। मुझे एक घटना याद आ रही है| एक बार मेरा यह विद्यार्थी लगभग १८ दिनों से विद्यालय में अनुपस्थित था। अन्य छात्रों से मुझे पता चला कि वह खेलने के लिए विदेश गया हुआ था | उस दिन वार्षिक परीक्षा का दिन था और मैं व्याकुल हो रही थी कि आज तो ये परीक्षा में शामिल नहीं हो पाएगा| तभी देखती हूँ कि ये दौड़ा-दौड़ा चला आ रहा है| मैंने पूछा कि “तुम १५ मिनट देरी से क्यों आए?” वह बोला “मैडम, मैं तो सीधा एयरपोर्ट से आ रहा हूँ। सुबह ३ बजे विमान में बैठा और बस अब एयरपोर्ट से सीधा यहीं चला आ रहा हूँ। उसकी आँखों से साफ़ झलक रहा था कि वह रात को अच्छी तरह से सोया भी नहीं है। उसके पास न तो पेन था और न ही कोई पुस्तक। लेकिन उसके आने पर उसके मित्रों में जो ख़ुशी की लहर दौड़ी वो भुलाए, न भूलती। वे सभी उसे परीक्षा के लिए आवश्यक सुझाव देने लगे। उनकी ये एकता और मित्रता देखकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई।

अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जीवन में संतुलन बहुत आवश्यक है। और इस संतुलन का आधार है अपने आप से किया गया वादा। मेरी एक विद्यार्थी में ये खूबी बखूबी देखने को मिलती है। किस तरह वह अपने तैराकी के गुण और अध्ययन में संतुलन बनाए रखती है, वह प्रशंसनीय है। उसे विद्यालय की तरफ से विशेष रूप से अनुमति मिली है, दो कालांश के बाद वह विद्यालय आती है| यदि वह मेरे कालांश में कभी अनुपस्थित हो भी जाए तो स्वयं पहल करते हुए मुझे खोज ही लेती है। अपनी गैरमौजूदगी में हुए कार्य और शंकाओं का निवारण करने के लिए हमेशा उत्साहित रहती है। उसकी ये लगन मुझे बहुत प्रभावित करती है। एक बार अतिरिक्त कक्षा में उसने मुझे अपनी दिनचर्या के बारे में बताया तो सुनकर मैं हतप्रभ रह गई। उस दिन मुझे इस बात का अहसास हुआ कि किसी भी व्यक्ति की सफलता में कितने लोगों का हाथ होता है। उस छात्रा के माता-पिता का सहयोग और प्रोत्साहन ही उसे अपने मार्ग में अविचलित रूप से गमन करने को बढ़ावा देता रहता है। कहते हैं न ‘मेहनत एक ऐसी सुनहरी चाबी है जो बंद भाग्य के दरवाज़े भी खोल देती है’। यह कथन बिलकुल सही है, मेरी इस छात्रा की मेहनत उसकी उपलब्धियों में साफ़ नज़र आती है। 

ये बात तो हम सब जानते हैं कि कोई भी इन्सान पूर्ण नहीं होता है। सभी में कुछ न कुछ कमी और कुछ अच्छाई रहती है। लेकिन अपनी इन कमियों को बाधा न मानकर अपनी अच्छाइयों का उभारना मैंने अपने एक विद्यार्थी से सीखा। विशेष रूप से मेरे विषय में वह पढाई में थोड़ा कमज़ोर था। अपितु उसकी वाकपटुता, तर्कशक्ति और हाज़िरजवाबी का कोई जवाब नहीं था। था भी वह मस्त-मौला प्रकार का। उसमें एक कुशल वक्ता के सारे गुण मौजूद थे। उसकी यह खूबी कभी भी कमज़ोरी के आड़े हाथों नहीं आती थी। वह सभी शिक्षकों का पसंदीदा छात्र था, क्योंकि वह अपने इस अंदाज़ से किसी भी समस्या का हल आसानी से निकाल लेता था| एक बार, कक्षा में ‘वर्तमान में नारी की स्थिति’ पर वाद-विवाद गतिविधि के दौरान उसने इतने सटीक तर्क प्रस्तुत किए, जिन्हें सुनकर मैं दंग रह गई। ‘दृष्टिकोण’ शब्द के बारे में तो मैं जानती थी परन्तु उस दिन इस शब्द के कई मायने समझ आए। उचित ही है, ‘इस दुनिया में विभिन्न किस्मों के लोग हैं और सबके सोचने का नजरिया भी भिन्न-भिन्न है’।

इन सभी विद्यार्थियों की लगन और प्रतिभा देखकर मेरा रोम-रोम पुलकित हो जाता है। हर दिन, हर एक कक्षा में कुछ नया सीखने को जरूर मिलता है और इसी को ही कहते हैं, अनुभव। निश्चित रूप से मैं कह सकती हूँ कि भविष्य में ये सभी विद्यार्थी अपने-अपने क्षेत्रों में नए कीर्तिमान स्थापित करेंगे। वास्तव में इन छात्रों की गतिविधियों को देखकर मेरे अपने जीवन में कई परिवर्तन आए हैं। पहले मैं छोटी-छोटी बातों में तनावग्रस्त हो जाती थी, लेकिन इनकी कार्य करने की गतिविधि देखकर मैं भी आजकल चिंतामुक्त रहने लगी हूँ। जिस तरह से बड़ी से बड़ी चुनौतियाँ का सामना ये हँसते हुए करते हैं अब मुझे भी हर समस्या एक अवसर सामान लगने लगी है। साथ ही साथ अब छोटी-छोटी बातों में आनंद ढूँढना भी आने लगा है। आज, मैं गर्व से कहती हूँ कि मैं एक शिक्षिका हूँ।


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