शीर्षक -"उस आवाज़ का रहस्य "
शीर्षक -"उस आवाज़ का रहस्य "
"ए बदरी --------"आज भी यही करकश आवाज़ कानों में पड़ी तो नीलू खड़ी होकर सामने दूर बने एक छोटे से झोपड़े की ओर देखने लगी । ये किसी बुजुर्ग महिला की आवाज़ दिन में करीब सौ बार सुनाई देती इतना ही नहीं "ए बदरी तू नी सुणे?"
"ए बदरी थारो नाश जाये,"
"म्हारी बात नी सुनेगो तो थारे डंडा की दई पाड़ूँगी ।""थारो हाथ पग तोड़ी दुवा ।"
"ए बदरी "के साथ और नये -नये उपसर्ग जुड़ जाते जो गाली -गलौच, अपशब्दों वाले होते ।
अभी 15 दिन ही हुए नीलू को इस क़स्बाई गाँव में स्कूल प्रिंसिपल के रूप में ट्रांसफर होकर आये हुए ।
यहाँ एक हाईस्कूल, एक छोटा सा अस्पताल, पुलिस चौकी, चार छोटी -छोटी किराना दुकाने, कुछ कच्चे, कुछ पक्के मकान आदि। सब्जियों और बाकि सामान के लिए साप्ताहिक हाट लगता है, जिससे यहाँ के ग्रामीणों का सामान्य जनजीवन चलता हैं ।नीलू यहीं एक ग्रामीण के यहाँ मकान में किराये से रहने लगी ।जिस दिन से यहाँ आयी है, सामने बने झोपड़े में से इस तरह की आवाज़े अक्सर आती रहती है ।लेकिन हमेशा उस महिला की ही आवाज़ आती है, कभी भी बदरी की प्रतिकार करने की आवाज़ नहीं आयी ।बदरी बेचारा चुपचाप उस औरत के अत्याचार सहता रहता ।अब तो नीलू को बदरी से सहानुभूति होने लगी थी और उस औरत पर गुस्सा आने लगा था ।
आसपास पूछने पर पता चला कि बदरी के माता -पिता मजदूरी करने शहर गए हैं, और अपने बेटे को उसकी दादी के पास छोड़ गए ।
कोई भी औरत इतनी निर्दयी कैसे हो सकती हैं?आज तो कुछ ज्यादा ही आवाज़ आने लगी, और साथ ही उठा पटक की आवाज़ भी आने लगी ।अब तो नीलू की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया, वो दौड़कर सामने झोपड़े में गई तो वहाँ का नजारा देखकर दंग रह गई ।
बदरी चार साल का बच्चा पुरे झोपड़े को बिखेरकर, मिट्टी का मटका तोड़कर,खुद चूल्हे की राख से सराबोर होकर चूल्हे की ही जलती लकड़ी उठाकर अपनी दादी को पीटने के लिए उनके पीछे -पीछे दौड़ लगा रहा था!।
और असहाय दादी खुद को बचाने के लिए बदहवास सी अपना लुगड़ा सँभालते हुए आगे -आगे दौड़ी जा रही हैं और चिल्ला रही है ----------"ए बदरी थारो नास जाये, म्हारे दई दे यो टिन्डक्यो, म्हारे दई दे नी तो थारे दई पाड़ूँवा ।"यह दृश्य देखकर नीलू की हँसी छूट गई, क्योंकि बदरी का रहस्य जो उजागर हो गया था ।
