सच्ची आज़ादी की खोज
सच्ची आज़ादी की खोज
"आज़ादी" बहुत ही व्यापक शब्द है ये। जो घर में कैद है उसके लिए घर से निकलना आज़ादी है और जो घर से बाहर है उनके लिए घर में सुकून की चाय और दफ्तर की छुट्टी आज़ादी है। जो स्कूल में पढ़ते है उनके लिए हॉस्टल आज़ादी है और जो हॉस्टल में हैं उनके लिए नौकरी। हमने आज़ादी की इतनी सारी परिभाषा सुन ली है कि आज़ादी का वास्तविक अर्थ कहीं खो गया है। बाह्य रूप से हम कितने भी आज़ाद हो जाए अंदर से हम गुलाम ही है अपनी सोच के, समाज में झूठे दिखावे के, छल के, कपट के, झूठ के, ईर्ष्या के, बुराई के और उन सपनो के जो नेताजी चुनाव के वक़्त हमें दिखते है।
वैसे तो असली आज़ादी इन सब चीज़ों से मुक्ति है लेकिन ये एक इंसान की बात हो गयी। मेरे लिए आज़ादी का मतलब एक इंसान, समाज के एक दबके , एक शहर से कई ज़्यादा बड़ा है। मेरे लिए आज़ादी का मतलब देश की आज़ादी है उसके रक्षक के रूप में बैठे बक्षकों से। देश को सिर्फ अंग्रेज़ों से नहीं बल्कि उन लोगों से आज़ादी की ज़रूरत है जो भारत में कोख में बैठ कर उसी की जड़ों को खोकला कर रहे है।
"हमारा भी खुद का घर होगा, हम भी ऐसा जीवन व्यतीत करेंगे जिसमें प्रत्येक सुविधाएँ उपलब्ध होंगी, हमारा बच्चा भी अच्छे स्कूल में शिक्षा ग्रहण करेगा, महंगाई की मार नहीं झेलनी पड़ेगी, हम भी चिंता मुक्त जीवन व्यतीत करेंगे"- ये है स्वपन। नहीं नहीं ये स्वपन मेरा नहीं है ये वो स्वपन है जो "नेता जी" अपने लम्बे चौड़े भाषण में लोगों को दिखते है। लेकिन स्वपन तो ठहरा स्वपन झूठ और छल। "नेता जी" वादें तो ऐसे करते है, आश्वासन तो ऐसे दिलाते हैं मानो कुर्सी मिलते साथ ही इसे पूरा करने में जुट जाएंगे। कोई कसर नहीं छोड़ेंगे जनता की परेशानियों को दूर करने में या फिर दूसरे शब्दों में बोलू तो अपनी परेशानियों को अपने हित में कार्य करने में ज़रा कसर नहीं छोड़ेंगे।
नेता जी लम्बे भाषण,
लम्बे चौड़े इनके वादे,
कुर्सी की राजनीती ने,
बिगाड़ दिए इनके इरादे।
बोलबाला है कुर्सी के "पॉवर" का हर कोई एक दसरे से आगे निकलने की होड़ में है नेता जी कोई कसर नहीं छोड़ते अपने प्रतिद्वंदी की टांग खींचे में, देश की दुहाई देने में लेकिन शायद वो भूल जाते है उनकी टांग भी उसी दलदल में फँसी है। इतने स्वपन दिखाते हैं कि चुनाव आते आते जनता खुली आँखों से सपने देखने लगती है। मेरे लिए आज़ादी का मतलब है इस स्वपन से आज़ादी। जनता की आड़ में जो खुद के स्वप्न पूरे होते हैं उस स्वपन से आज़ादी। भारतीय संस्कृति का आदर्श है -
"औरों को हँसते देखो मनु, हँसो और सुख पाओ,
अपने सुख को विस्तृत कर लो, सबको सुंखी बनाओ।"
और नेता जी का आदर्श है-
स्वयं को हँसते देखो, औरों को दुःख पहुँचाओ,
जनता के हित को भूलकर, अपना सुख बढ़ाओ।
मेरी बात से नेता जी को छोड़कर शायद सब सहमत होंगे। लोग कई मुद्दों पर बात करते है शोषण, हत्या, चोरी, गरीबी, बेरोज़गारी। लेकिन असल में तो ये समस्या ही नहीं है समस्या है वो सरकार जो इन सब परेशानियों को दूर करने में असमर्थ है। हम एक "डेमोक्रेटिक" देश में रहते है जिसमें हम अपना "लीडर" चुनते है अपना मत देकर ताकि वो देश से समस्याओं का अंत करके उसे फिर से सोने की चिड़िया बना सके। मेरे लिए आज़ादी का मतलब झूठे वादों से आज़ादी है, झूठे स्वपन से आज़ादी है, लम्बे चौड़े चुनावी भाषण से आज़ादी है, कुर्सी के आराम से आज़ादी है, दकियानूसी सिस्टम से आज़ादी है। मेरे लिए आज़ादी का मतलब ऐसे "नेता जी" से आज़ादी है।