हरि शंकर गोयल

Comedy

4.5  

हरि शंकर गोयल

Comedy

सैंया बेईमान, मोसे छल किये जाय

सैंया बेईमान, मोसे छल किये जाय

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आज रेडियो पर एक पुरानी सुपर डुपर हिट मूवी "गाइड" का गीत बज रहा था "सैंया बेईमान, मोसे छल किये जाये" । सुनते सुनते मैं भाव विभोर हो गया । ख्वाब देखने लगा कि वो सैंया कैसा होगा जिसकी पत्नी या प्रेयसी सार्वजनिक रुप से यह घोषित कर रही हो कि उसका सैंया उसके साथ छल कर रहा है और वह सैंया कितना खुश किस्मत है जो उसे ऐसी पत्नी या प्रेयसी मिली जो उसके प्यार में आकंठ डूबी हुई है । 

बस, हम तुरंत ही धरातल पर आ गये । अब सैंया की गिनती ना तीन में होती है और ना तेरह में । ना उसे बीवी गांठती है और ना ही बच्चे । पड़ोसन का तो पूछो ही मत । जितनी भी बेगार करानी होती है, सब करवाती है मगर वो नहीं करवाती जो करने योग्य है । सैंया बेचारा दिन भर कोल्हू के बैल की तरह जुतता है । गधे की तरह कुम्हार (यानी बॉस) से लतियाता, धकियाता, डंटियाता (डांट खाना) है और घर में घुसते ही बम्बार्डमेंट झेलता है । ऐसे में ना तो उसके पास छल यानी षड़यंत्र रचने के लिए समय है और ना ही दिमाग । क्योंकि एक तो बॉस ही बहुत है चाटने के लिए और थोड़ा बहुत बचा खुचा रह भी जाता है तो घर आकर तो माशाअल्लाह ! अब क्या कहें ? नारीवादी ब्रिगेड मेरा बहिष्कार कर देगी इसलिए मौन साधना ही श्रेयस्कर है । इसीलिए पुराने जमाने में साधु संत पुरुषों को मौन व्रत रखने के लिए कहते थे । महिलाओं के लिए यह व्रत निषेध है । एक यही तो व्रत है जिसे पुरुष बड़ी शिद्दत से करते हैं । क्योंकि इसी व्रत से घर में सुख शांति बनी रहती है । 


जहां तक छल करने की बात है तो यह बीमारी बहुत पुरानी है । ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्याबाई से इंद्र और चंद्रमा ने छल किया । माता सीता से छल रावण ने किया । दुर्योधन ने पांडवों से छल करके उन्हें द्यूत में पराजित किया । छल करने का तो इतिहास भरा पड़ा है हमारा । जब विपक्षी को बल से नहीं जीता जा सकता हो तब छल का सहारा लेते आये हैं लोग । यह सदियों से परंपरा रही है । 


कुछ पाश्चात्य देश यहां पर व्यापार करने आये थे लेकिन यहां के राजा महाराजाओं की आपसी लड़ाई को देखकर खुद राज करने की इच्छा को रोक नहीं पाये और शासन करने लगे । पर नाम क्या दिया गया कि असभ्य भारतीयों को सभ्य बना रहे हैं । वाह । क्या गजब का छल था । 


भारत आजाद हो गया और लोकतांत्रिक देश बन गया । मगर लोकतंत्र के नाम पर कुछ खानदानों ने छल करके अपना राज बनाये रखने का प्रपंच रचा । धर्मनिरपेक्षता के छलावे में एक समुदाय विशेष का तुष्टिकरण किया । समाजवाद के छलावे में परिवारवाद का पोषण किया । और तो और राजनीति की दशा दिशा बदलने आये कुछ स्वयंभू ईमानदारों ने छलपूर्वक झूठ, बेईमानी, मक्कारी, निर्लज्जता के नये कीर्तिमान स्थापित कर दिये । 


इन सबके परिप्रेक्ष्य में नायिका का गाना बिल्कुल सटीक बैठता है "सैंया बेईमान .... " ।


ऐसा ही एक छल चीन ने किया । विश्व परिदृश्य में आगे निकलने की होड़ में बाकी सबको पीछे धकेलने की मंशा से उसने कोरोना नामक वायरस फिजां में छोड़ दिया । बस , तबसे यह वायरस पूरे विश्व के साथ छल किये जा रहा है । 


एक दिन एक कोरोना वायरस मुझे मिल गया । उसने ना कोई मास्क लगा रखा था और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग की पालना कर रहा था । हमने पूछा कि यह क्या है ? तुम खुद तो नियमों की पालना करते नहीं हो और हमसे करवाते रहते हो । तो वह बोला 

"मेरा काम है वायरस फैलाना । जब मुझे वायरस फैलाना ही है तो फिर मैं क्यों लगाऊंगा मास्क ? क्यों रखूंगा सोशल डिस्टेंसिंग ? तुमको बचना है तो करो नियमों का पालन" । 


हमारी तो बोलती ही बंद हो गई । अब क्या बोलते ? थोड़े से कन्फ्यूजिया गये थे कि यह कौन सा कोरोना है ? ऐल्फा, डेल्टा या ऑमीक्रॉन ? 


हमारे हावभाव से वह समझ गया था कि हम कन्फ्यूजिया रहे हैं । बोला "कन्फ्यूजियावे की कौनौ जरूरत नाहै । जनता की डिमांड पर हमने ये तीन वैरायटी बाजार में उतारी हैं । 


हम इस गुगली से बोल्ड होते होते बचे । कहा "हम कुछ समझे नाहीं"


"बड़ी सीधी सी बात है बचुआ । एक वैरायटी से लोगों का पेट नहीं भरता है । जैसे औरतें दुकानदार से कहती हैं कि दूसरी वैरायटी दिखाओ, दूसरा कलर दिखाओ । इसलिए जनता की मांग होने लगी कि कोरोना का कोई दूसरा वैरिएंट भी है क्या ? जब जनता की भारी मांग हो तब दो तीन वैरायटी तो बनती है ना । इसलिए अभी तो ये तीन वैरायटी ही बनी हैं । बाकी बाद में देखेंगे । 


उसकी सीधी सट्ट बात से हम बड़े खिसियाये । जब कुछ नहीं सूझा तो पूछने लगे 

"एक बात बताओ यार, ये तुम चुनावी रैलियों में क्यों नहीं जाते हो ? क्या किसी चुनावी पंडित ने तुम्हें राजा बाली की तरह से शाप दे दिया है कि अगर तुम वहां जाओगे तो सिर के परखच्चे उड़ जाएंगे ? वहां तो इतनी भीड़ होती है कि तुम आराम से लाखों लोगों को यह वायरस फैला सकते हो । मगर तुम वहां नहीं जाते । तुम जाते हो शादियों में , पार्टियों में, स्कूलों में , मॉल में । ये क्या राज है " ? 


कोरोना बड़ा दुखी हो गया । कहने लगा "मुझे बहुत दिनों से कुछ भी खाने को नही मिला । इसलिए शादी, पार्टियों में जाता हूँ । वहां पर लोग तरह तरह की डिशेज बनवाते हैं उन्हें टेस्ट करने जाता हूँ । स्कूलों में इसलिए जाता हूँ कि वहां पर मेरे खिलाफ बच्चों को क्या क्या पढ़ाया जा रहा है, यह देखना है । मॉल में दुनिया भर की सुंदरियां आती हैं , इसलिए उन्हें ताड़ने जाता हूँ । नैन मटक्का कर आता हूँ । विटामिन ए लेने जाता हूँ" 


"वो तो ठीक है मगर एक बात समझ में नहीं आई । रैलियों में तो लाखों की भीड़ में भी नहीं आते हो , मगर शादियों में 200 की संख्या पार होते ही दौड़े चले आते.हो । और शमशान में तो बीस के ऊपर इकट्ठे होने पर ही आप धावा बोल देते हो । ये माजरा हमारी समझ में नहीं आया " । 


कोरोना थोड़ी देर तक तो खामोश रहा । फिर धीरे से बोला "समझ में तो मेरे भी नहीं आया, पर , सरकारी आदेश है इसलिए मानना तो पड़ेगा ही न । सरकारों के बहुत से फैसले ऐसे होते हैं जो खुद सरकारों के भी समझ में नहीं आये मगर वे सरकारी फैसले हैं इसलिए उनको मानना तो पड़ेगा ना । इसी तरह मुझे भी समझ नहीं आया कि 50 % लोगों के ऑफिस आने से तो कोरोना रुका रहेगा लेकिन ज्यादा आने से कोरोना भी आ जायेगा जैसे कि कोरोना हर जगह हर दम लोगों की गिनती ही करता रहता हो कि अगर संख्या बढ़े तो मैं आऊं ? ये सब प्रोपेगेंडा है मुझे बदनाम करने का । और कुछ नहीं " । 


हमें समझ मे आ गया कि कोरोना बैरी बड़ा बेईमान है यह भी सैंया , नेताओं की तरह छल किये जात है । 



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