रुख #अपना बदल सकती हूं #मैं
रुख #अपना बदल सकती हूं #मैं
किस्मत की लकीर मेरे हाथों में
मेहनत कर तकदीर बदल सकती हूं मैं,
निराशा की लहर चारों ओर छाई
अपनों ने अपनों पर इल्जाम बहुत हैं लगाई,
खामोश रह सब का मुंह बंद कर सकती हूं मैं,
मां बाप की लाडली भाई बहन की चेहती हैं जो वो
बहती नदियों सी चंचल हूं मैं,
सुन दुनिया की ताने-बाने, सही गलत के उलझन,से
अंजानसच के साथ खड़ी चट्टान सी हूं मैं,
प्रेम,शक्ति अर्धांगिनी जीवनसंगिनी प्रिय,प्रेयसी
नाम है जिसके अनेक वह जीवन साथी,पत्नी हूं मैं ,
घूंघट के तले जीवन यापन कर लाज शर्म मर्यादा की आन हैं जो वो बहू,
आंगन की तुलसी सी नाज़ुक हूं मैं
रस्मो रिवाज निभाती रहूंगी कंधे से कंधा मिलाती रहूंगी
अपने पराए का भेद मिटाती रहूंगी
वह सृजन करता शक्ति सरूपा सी स्त्री हूं मैं..!
रुक अपना बदल सकती हूं मैं
मान मर्यादा संस्कृति सबका अभिमान कर सम्मान करू,किसी भी रूप में अब अत्याचार सहे ना जो वह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई नारी धरती सी अडिग हूं मैं..!
