प्यार की भाषा
प्यार की भाषा
रेखा अपने स्कूल में बाहर बरामदे में बैठकर अपना रजिस्टर भर रही थी। उसका स्कूल बस्ती के बाहर खेतों से घिरा था। इसलिए वृक्ष व पेड़_पौधों के कारण चारों ओर हरियाली थी। रेखा को अपना स्कूल इस कारण बहुत सुंदर लगता था। पक्षी भी पेड़ों पर चहकते रहते थे।
रेखा अपने कार्य में व्यस्त थी, तभी किसी पक्षी की आवाज ने उसका ध्यान तोड़ा। पक्षी की आवाज में उसे एक दर्द महसूस हुआ। काफी देर से वह ये आवाज सुन रही थी पर अब उसने इस आवाज पर ध्यान दिया।
रेखा ने गर्दन उठाकर देखा तो सामने के नीम के पेड़ पर एक अकेला नीलकंठ पक्षी बैठा था। यही पक्षी अपनी आवाज में बोल रहा था। शब्द तो समझ नही आ रहे थे पर
ऐसा लग रहा था कि जैसे वो बहुत दुखी है।
एक हफ्ते तक वो नीलकंठ ऐसे ही उसी नीम के पेड़ पर बैठकर बोलता रहा। रेखा उसको रोज ध्यान से देखने लगी, आगे क्या होता है। एक हफ्ते बाद उसने देखा एक और नीलकंठ पक्षी नीम के पेड़ पर बैठा है। अब ये दोनो पक्षी स्कूल के ऊपर से जा रही बिजली की तार में बैठ गये थे। रेखा को अब उन्हें देखने में ज्यादा आसानी हो गयी थी। वो दोनों उसके ज्यादा पास आ गये थे।
अब रेखा को समझ आया शायद पहला वाला नीलकंठ नर था जो शायद अकेला होने के कारण मादा नीलकंठ को बुला रहा था। नर नीलकंठ की आवाज में शायद अकेलेपन का दर्द था जिसने रेखा का ध्यान तोड़ा था।उसे लगा की पक्षियों को भी अकेलेपन का उतना ही
दुःख होता है जितना इंसान को।
रेखा अब दोनों को रोज ध्यान से देखती। दोनों पक्षी अपने में मस्त चोंच से चोंच मिला कर खेल रहे है और बोल रहे हैं। अब उनकी भाषा से दुःख की आवाज नही बल्कि गाने जैसी मधुर ध्वनि सुनायी देती थी।
पंद्रह दिन तक वो दोनों नीलकंठ पक्षी ऐसे ही तार में बैठ कर गाते रहे। वो बस दोनों आपस में खोये रहते थे। सुबह से शाम तक वो वही बैठे आपस में गाते रहते।
लेकिन पंद्रह _सोलह दिन बाद रेखा ने देखा की दोनों पक्षी वहाँ से गायब थे।रेखा ने काफी दिनों तक उनका इंतजार किया, पर वो नही आये। रेखा समझ गयी थी शायद दोनों ने अपनी प्यार की दुनिया बसा ली थी। दोनों ही कही दूर जंगल में चले गये थे, जहाँ वो अपनी नयी दुनिया बसा सके। और अपना परिवार बड़ा सके।
रेखा को पंद्रह दिन से आदत हो गयी थी नीलकंठ को देखने की व उसके बारे में जानने की। उसे उन पक्षियों के उड़ जाने का दुःख भी था और खुशी भी थी कि दोनों प्यार की नयी दुनिया बनाने के लिए उड़ गये हैं।
रेखा ने सोचा कि हम इंसानों से तो ये पक्षी अच्छे है।
ना जोर ना जबरदस्ती, मन से उठी प्यार की एक आवाज और फिर दिल का साथ। दिल से दिल की बात हुई, दिल ने सहमति दी, और उड़ चले प्यार का घरौंदा बनाने को।
रेखा ने सोचा " काश! इंसान भी पशु_ पक्षियों की तरह समझदार होते तो हमारी धरती कितनी सुंदर होती हम
से ज्यादा तो ये प्यार की भाषा जानते हैं "।
