प्यार और फर्ज
प्यार और फर्ज
बंटी एक गरीब परिवार का लड़का था। ग्रामीण परिवेश में उसका निवास था जहाँ उत्तम दर्जे की पाठशाला, सड़क, बिजली एवं जीवनोपयोगी संसाधनों का अभाव था। जब उसकी उम्र चौदह वर्ष की थी तभी से उसे अहसास था कि वह एक गरीब परिवार में जन्मा है। उसके परिवार में माता-पिता एवं उससे तीन वर्ष छोटा एक भाई था। बंटी बहुत ही भाग्यशाली था जब उसकी उम्र लगभग चार वर्ष की थी तब उसके सर से माँ का साया उठते-उठते बचा था। दरअसल उसकी माँ सुबह-सुबह कुएं से पीने का पानी लाने गई थी तब उनका पैर फिसलने से वह कुएं में गिर गई थी किंतु समय पर घर के सदस्यों एवं पड़ौसीयों द्वारा बंटी की माँ को बचा लिया गया था। बंटी पर बेशक गरीबी का साया था किंतु माता-पिता रुपी धन के साथ वह धनाड्य था।
बंटी का बचपन आर्थिक तंगी में व्यतीत हुआ। छः वर्ष की उम्र में उसका दाखिला गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय में करवाया दिया गया था। वह अध्ययनचातुर्य की प्रतिमूर्ति एवं प्रखर बुद्धि वाला छात्र था। प्राथमिक स्तर की सभी कक्षाओं में वह उच्चतम अंकों से उत्तीर्ण हुआ। अब आगे की पढ़ाई के लिए उसके गाँव में विद्यालय नहीं था। पूर्वमाध्यमिक कक्षाओं में अध्ययन के लिए उसे अपने गाँव से पाँच किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित दूसरे गाँव के विद्यालय में जाना पड़ा। उसके अधिकतर सहपाठी साइकिल से विद्यालय जाते-आते थे किंतु बंटी को दरिद्रता के चलते ये सुविधा नहीं थी। वह प्रतिदिन सुबह पाँच बजे उठकर पहले एक घंटा दौड़ने और व्यायाम करने जाता था तदुपरांत गौशाला की सफाई, घरेलू कार्य एवं कभी-कभी खेत पर भी माता-पिता के साथ कृषि कार्य करने जाता था फिर आकर पैदल विद्यालय जाता था। चूंकि वह माता-पिता के कार्यों में बचपन से ही हाथ बंटाता था अतः घर पर अध्ययन कार्य अधिकांशतः मध्यरात्रि के बाद जाग कर करता था। इधर उसके माता-पिता अथक मेहनत से अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई तथा गृहस्थी की नैया को जैसे-तैसे पार लगाने के लिए कमर कसे हुए रात-दिन खून-पसीना एक करके जुटे हुए थे। बंटी अपने परिवार की इस दयनीय हालत को देखकर बहुत बेचैन रहता था बावजूद इसके उसने कक्षा आंठवी की संभागीय बोर्ड परीक्षा बाहत्तर प्रतिशत अंकों से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया।
बंटी को अब उच्च एवं उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के अधययन के लिए अपने निवास स्थान से आठ किलोमीटर दूर एक नगर में दाखिला दिलवाया गया। वह जैसे-जैसे उच्च कक्षाओं में पहुँच रहा था उसके अध्ययन का खर्च बढ़ते जा रहा था। उसके छोटे भाई की शिक्षा भी उसके पीछे-पीछे जारी थी। चूंकि बंटी का विद्यालय दूर था अतः उसके लिए एक पुरानी साइकिल खरीदी गई थी जो अक्सर आये दिन खराब हो जाती थी। वह इससे परेशान हो जाता था किंतु इसी से विद्यालय जाता-आता था। उसने राज्य शिक्षा बोर्ड की दसवीं तथा बारहवीं की परिक्षाएं भी प्रथम श्रेणी में सत्तर प्रतिशत से अधिक अंकों से उत्तीर्ण किया और माता-पिता का नाम रौशन किया।
बंटी विज्ञान विषय का छात्र था और आगे की शिक्षा भी विज्ञान संकाय से ही करना चाहता था। जिसके लिए उसे घर से पच्चीस किलोमीटर दूर शहर में रहकर पढ़ाई करना पड़ता लेकिन उसके पिता शहर का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं थे। जिसके कारण उसकी विज्ञान संकाय से आगामी अध्ययन करने की ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकी। अंततः पिता ने साहस जुटा कर उसे द्विवर्षीय प्रायमरी स्कूल शिक्षक प्रशिक्षण करवाने की सोची। इसमें प्रवेश के लिए जिला स्तर पर प्रतिभागियों का चयन होना था अच्छे अंकों और सौभाग्य से बंटी का चयन जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में शिक्षक प्रशिक्षणार्थ हो गया। चूंकि उसके परिवार की आर्थिक परिस्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से उसे संस्थान में संतुलित और संयमित रहन-सहन में रहना पड़ता था जबकि सह प्रशिक्षणार्थी कभी-कभी रंग-बिरंगे परिधान भी पहनकर कक्षाओं में आते थे किंतु बंटी के पास बमुश्किल दो ही जोड़ी कपड़े थे। अभावों के कारण उसका मन फीका रहता था।
बंटी की उम्र अब लगभग बीस वर्ष थी उसका शरीर सुगठित था। दौड़ना न केवल उसकी रोजमर्रा की दिनचर्या में शामिल था अपितु वह दौड़ की कई स्पर्धाएं भी वह जीत चुका था। अध्ययन के साथ ही साथ खेलकूद में भी सहपाठियों के बीच उसकी अलग ही पहचान थी। अब बंटी की यौवनावस्था थी अतः उसमें भी प्राकृतिक रूप से प्रेम प्रसंग या लड़कियों के प्रति लगाव होना स्वाभाविक था। उसे शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान में उसकी एक सहपाठी वीनू नाम की लड़की से प्यार हो गया। वीनू मध्यम परिवार की थी किंतु वह बंटी की आर्थिक विपन्नता की परवाह नहीं करती दोनों एक-दूसरे को बराबर चाहते थे। लेकिन वीनू को अपने माता-पिता से डर था कि वो एक गरीब लड़के से प्यार करती है। बंटी, वीनू की मनोदशा को भांप चुका था। इस कारण उसे वीनू का साथ छूट जाने का डर लगा रहता था।
बंटी परिवार में ज्येष्ठ पुत्र था। उसके कंधे पर अपना भविष्य संवारने के साथ-साथ माता-पिता एवं छोटे भाई की शिक्षा-दीक्षा की भी जिम्मेदारी थी। किंतु वह भी उम्र की गिरफ्त में फंस कर जमाने के अनुरुप मोहब्बत और प्रेमजाल से अछूता नहीं रहा था। उसे प्रशिक्षण के दौरान रहने-खाने के लिए जितने रुपये मिलते वे भी आवश्यकता से कम थे। उसके नि:सहाय माता-पिता की ही बेजोड़ मेहनत से जैसे-तैसे घर-बाहर का खर्च चल रहा था अब उनकी भी शारीरिक हालत और ताकत दिनों-दिन क्षीण हो रही थी, यह चिंता भी बंटी को चाबुक की तरह चुभती थी। बंटी को इतनी पढ़ाई के दौरान भारतीय प्रतिरक्षा के अंतर्गत जल, थल और वायुसेना की जानकारी थी शायद इसीलिए वह शरीर साधना पर भी ध्यान देता था। बंटी में ईमानदारी और देशप्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ था।
बंटी अपनी प्रेमिका वीनू को हर हाल में पाना चाहता था। उसने महसूस किया कि यदि उसे शासकीय नौकरी मिल जाए तो वीनू के घर वाले शायद उसकी तत्कालीन आर्थिक स्थिति के बावजूद उससे वीनू की शादी करवा देंगे। बंटी ने सेना में भर्ती होने का निर्णय ले लिया। अब तक शिक्षक प्रशिक्षण के सात महीने ही हुए थे कि किस्मत से थल सेना में भर्ती के लिए विज्ञापन जारी हुआ। बंटी सेना की भर्ती में सम्मिलित हुआ चयन प्रक्रिया के सभी चरणों को भी बड़ी ही सहजता से उत्तीर्ण कर लिया और उसका चयन सेना में सैनिक लिपिक के पद पर हो गया। वह बहुत खुश हुआ तथा उसके माता-पिता और संबंधी भी अत्यंत खुश हुए कि अब वह देश सेवा के साथ-साथ घर पर आर्थिक मदद में भी मददगार होगा।
दुनिया की सभी खुशियाँ एक तरफ हो जाती हैं जब किसी प्रेमी को उसकी प्रेमिका से बिछड़ने का वक्त आ जाए। जबकि अब तक बंटी और वीनू के प्रेम संबंधअति प्रगाढ़ हो गए थे। बंटी को सेना में जाने के लिए मात्र एक माह ही बचा था। उसकी दिली स्थिति में कश्मकश थी एक तरफ शासकीय नौकरी पर जाने की खुशी थी वहीं दूसरी तरफ वीनू से बिछड़ने का गम रात-दिन उसे सता रहा था। आखिर वह दिन आ ही गया जब उसे शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान छोड़कर वापस घर जाना था और फिर सेना में जाना था। इस दिन वीनू अति प्रसन्न थी किंतु बंटी के वियोग के लिए नाखुश भी थी उसकी दोनों आँखों में आंसू झलक रहे थे मानो एक आँख में खुशी के और दूसरी आँख में विरह वेदना के आंसू हों। आज वह कक्षा में अकेली बैठकर रो रही थी। "एक बात है गरीबी में धन कम हो सकता है धाक कम नहीं हो सकती।" बंटी उसके पास वाली मेज पर जा बैठा और बोला - यदि तुम कह दो तो मैं सेना में नहीं जाऊंगा हम भविष्य में शिक्षक बनकर ही एक साथ जीवन गुजारेंगे।
लेकिन वीनू के प्रेम में स्वार्थ नहीं था बल्कि देश के लिए त्याग की भावना थी। वीनू ने बंटी के माता-पिता के सपनों को सर्वोपरि मानते हुए कहा तुम सेना में नियुक्ति स्वीकार कर लो परिवार और देश का सहारा बनों मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी, ईश्वर ने चाहा तो हम अवश्य जीवन पथ के सहयोगी बनेंगे। वीनू की इन ढाढस बंधाती बातों से बंटी का साहस जागा और वह उसी दिन इस विश्वास के साथ कि वह यह नौकरी पाकर वीनू से शादी के लिए योग्य होगा यह मानकर वापस घर चला गया। कुछ दिन माता-पिता के साथ रहकर वह सेना में चला गया। सेना का बुनियादी प्रशिक्षण आरंभ हो गया। सेना का पूर्णतः चुस्त-दुरुस्त, कठिन और साहसिक प्रशिक्षण में भी बंटी अपनी प्रेमिका के ही ख्यालों में खोया रहता था। वह जैसे ही खाली समय पाता छावनी की कंटीली बाड़ फांद कर एस.टी.डी. पर वीनू को फोन करने चला जाता था इन हरकतों के कारण उसे दंड भी मिल चुका था। किंतु उसे खुशी भी थी कि अब वह शासकीय नौकरी में था। इससे भी ज्यादा माता-पिता को सुकून था कि अब उन्हें कुछ सुख शांति मिलेगी।
बुनियादी प्रशिक्षण के उपरांत बंटी एक महीने की छुट्टी में घर आया। खुशी का माहौल था वह सैनिक बनने के बाद पहली बार वीनू से मिलने गया उस दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी। प्रेमिका से मिलने की अद्भुत चाह और उत्साह के बीच उस दिन छः महीने बाद उनकी मुलाकात हुई। दोनों ने खूब बातचीत की, सुख-दुख की बातचीत हुई। उन्हें सुख की अनुभूति हुई ही थी कि एक नई समस्या वीनू के पापा की थी कि वे पुत्री का विवाह सैनिक से एवं कमजोर आर्थिक परिस्थिति के लड़के से नहीं करेंगे। यह जानकर बंटी के होश उड़ गए। उसने शेष छुट्टियाँ निराशा में ही व्यतीत किया और पुनः छावनी ड्यूटी पर लौट गया। बंटी अब तक जीवन के सभी क्षेत्रों में अव्वल और सफल था किंतु किस्मत का मारा था जैसे-तैसे आर्थिक तंगी से छुटकारा मिला तो प्यार में असफलता का खतरा मंडराने लगा। फिर क्या था अंततः उसने सेना छोड़ने का मन बना ही लिया इधर माता-पिता को सूचना मिलते ही उनके पांव तले जमीन खिसक गई किंतु उन्होंने इस निर्णय को उसी के विवेक पर छोड़ दिया। बंटी ने अपनी प्रेमिका वीनू के परिवार की मंशा के अनुरूप सेना से स्तीफा दे दिया।
सेना छोड़ने के बाद बंटी पुनः स्वाध्यायी अध्ययन में जुट गया। उधर वीनू की माताजी का अग्नि दुर्घटना में देहावसान हो गया। इधर बंटी के परिवार में पहले जैसे आर्थिक संकटों के बादल मंडराने लगे थे। बंटी भी अध्ययन के साथ-साथ किसी असैन्य नौकरी की तलाश में था ताकि उसकी शादी वीनू से हो सके। अभी उसे सेना छोड़ कर आये पाँच माह ही हुए थे कि पुनः उसको रक्षा विभाग में ही असैनिक भंडार सहायक के पद पर नौकरी गाँव से करीब सौ किलोमीटर के दायरे में एक शहर में मिल गई। एक छोटे अंतराल के बाद माता-पिता की खुशियाँ फिर से लौट आई वे फूले नहीं समाये, उन्हें अपने पर विश्वास और गर्व था। अब बंटी की जीवन संरचना वीनू के पिता के सपनों के लगभग अनुरूप बन चुकी थी। वीनू भी शासकीय अध्यापिका बन चुकी थी। बंटी ने पूर्ण विश्वास से अपने माता-पिता के समक्ष वीनू से उसकी शादी की बात रखा वे उसके इस प्रस्ताव से सहमत हो गए। बंटी की किस्मत में निराशा जैसे स्थायी तौर पर घर कर गई थी एक दिन उसकी मुलाकात वीनू के भाई से हुई विवाह की बात पर उसने बताया कि शासकीय नौकरी मात्र से मतलब नहीं है वे जिस आर्थिक स्थिति और बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं उसी के लगभग समतुल्य वर चाहिए। बंटी को यह सुनकर दुख हुआ उसका परिवार तो बमुश्किल अभी पटरी पर आया ही था। चूंकि बंटी के पिता उसकी खुशियों के लिए कुछ भी करने जैसे- विनती, निवेदन, प्रार्थना और मजदूरी तक करने के लिए तैयार थे।
एक दिन बंटी के पिता उससे बोले बेटा मैं वीनू से तुम्हारे विवाह की बात करने जा रहा हूँ तब बंटी का ईमान माता-पिता की इज्जत के खातिर प्रकट हुआ और वह अपने पिता से बोला - "पिताजी ! न तो जन्म लेने वाला दोषी है और न ही जन्म देने वाला इस धरती पर जिसकी जितनी इज्जत, शोहरत और धन माया है या तो वह उसके पूर्वजों की विरासत है या उनके जीवनकाल की अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का परिणाम है।" "मैं उनकी पुत्री के लायक हूँ किंतु हमारी आर्थिक स्थिति और बिरादरी उनके परिवार के लायक नहीं है। मैं नहीं चाहता कि आप किसी ऐसे घर उसकी बेटी का हाथ मांगने जाओ और खाली हाथ उल्टे पैर लौट आओ। मैं अपनी मोहब्बत और प्यार का त्याग कर सकता हूँ लेकिन आपकी इज्जत और मान-सम्मान की बलि होते नहीं देख सकता।"
समय का चक्र चलता गया। बंटी की शादी दूसरी लड़की से हो गई और वीनू की शादी भी किसी दूसरे लड़के से हो गई। संयोग से दोनों की मुलाकात विवाह के नौ वर्ष व्यतीत होने के बाद महाशिवरात्रि के दिन मेले में हुई। दोनों के चेहरे पर खुशी और निराशा झलक रही थी। बंटी अपने गृहस्थ जीवन से खुश था। वीनू को गृहस्थ जीवन में कुछ परेशानियां थी। दोनों के बीच सामाजिक औपचारिकताओं की बातचीत हुई। बातचीत के दौरान वीनू ने बंटी से कुछ मदद की गुहार लगाई। बंटी सहर्ष उसकी मदद करने तैयार हो गया। वापस घर लौटते समय बंटी ने वीनू से कहा -"बस तुमसे एक विनती है मेरी कि जितना गहरा दर्द तुमने मुझे दिया है इससे गहरा प्यार अपने पति को देना।" बंटी ने एक गरीब परिवार में पैदा होकर जीवन में ऊंच-नीच से संघर्ष करके अपने परिवार को संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ा। अपने "परिवार" की मर्यादा तथा मातृ-पितृ सेवा का परिचय देते हुए अपने प्यार की बलि देकर उत्तरदायी एवं जिम्मेदार सपूत होने का फर्ज निभाया। बंटी का जीवन सपरिवार सुख-समृद्धि से व्यतीत हुआ।