पुतली और सितारा
पुतली और सितारा
वह, एक सितारा था, शहर के ऊपर घने बादलों के पार चाँद की दुनियां से भी बहुत दूर और वह औरत उसकी रौशनी में अंधेरों को मिटाती अकेले दुनियां के सफ़र में लोगो के लिए उसकी दुनियां चार दीवारी थी पर खुद वह भी उस दीवार को कभी नहीं तोड़ पायी थी, न ही उस दरवाजे के ताले की चाभी उसके पास थी और दरवाजा भी ऐसा की जिसके पलड़े कभी भी बाहर की ओर नहीं खुलते थे।
वह रात को घर की छत पर लेट अपने टुकड़े के आकाश पर बिछी काली चुनर पर, किरणों से लटके सितारे देखती और देखती कि वह एक सितारा अपेक्षित सा मुंह चुरा रहा होता वह मुस्कुरा जाती, कहती, कितना पगला है तू, देख न छत पर तेरी ही तो रौशनी है जिसके आने पर वह भी गुनगुनाती है। वह उसको बताना चाहती कि उसकी आँखों में बसी रौशनी और चमक उस सितारे के लिए है, लेकिन उसके मन की आवाज वहां तक न पहुँच पाती। पर अँधेरे से निकलकर चार जोड़ी चमकती आँखे चमगादड़ों की, उसे डरा जाती, वह दौड़ती हुई छत की सीढ़ीयों से उतर कर चार दीवारी के भीतर अपने अंधेरों में खो जाती।
कितना अजनबी था यह तारा, पर कितना ख़ास हो गया था उसके लिए, इन चंद दिनों में पश्चिम का वह सितारा दूर आकाशगंगा के किनारे मद्दिम सा यदाकदा चमकता सा वह लड़की आँखें बंद करती और उस दुनियां तक सैर कर आती और समझ न पाती कि आखिर उस दुनियां में क्या है जो उसे इतना लुभाता है।
यकायक वह फिर उठती और उठती हर भय से ऊपर, उस अनजान सितारे की रेशमी किरणों को पकड़ वह सितारे की ओर बढ़ती चली जाती, शायद वह आज बताना चाहती है कि वह कितना अहम है उसके लिए, लेकिन जब तक वह उस सितारे तक पहुँच पाती, धूप खिल जाती और वह सितारा रौशनी में डूब कर खो जाता, उस जगह दुनियां की आवाजाही और भीड़ का काफिला सड़कों में फ़ैल जाता है, सितारा दिन के उजाले में डूब जाता, उदास मन से वह चूल्हे पर बर्तन रख देती है क्यूंकि दिन पेट की आवाजों का होता है और रात चुप्पी की चाहे भूखी हो| सूरज के साथ उसके आँगन में फूल मुस्कुरा उठते हैं और ये फूल क्या जमीन पर उगे सितारे से उसे दिन भर उस सितारे की याद दिलाते रहते हैं और उसका जीना और भी मुश्किल कर देते हैं
तब उसकी आँखों के कोनो पर आंसू होते पर मजबूर पलके उनको भी अन्दर ही दबा लेती क्यूंकि उस की तरह उसके आंसू भी कैद होने के लिए बने हैं, ऐसे दरवाजों के भीतर जहाँ से बाहर जाने पर लगभग पाबंदी और पचास प्रश्नों के पुलिंदों के पेच में फड़फड़ाती पतंग सी वह जिसकी डोर उसे अपने मनमुताबिक हिसाब से साधे रहती।
वह उदास है कब शाम ढलेगी कब वह दिन के बेदर्द उजालों से दूर अपने अंधेरों में उस चमकते हुए सितारे को देखेगी जो उसका अपना सितारा है।
बहुत देखी थी दुनियां उसने। लोग बात बात पर छाती पर खंजर चलाने से भी कतराते नहीं थे, पीठ तो कबकी छलनी हो चुकी थी, मुंह से आह न निकले, यही वजह थी कि उसे उन दीवारों के अन्दर कैद कर लिया गया था कि यह उसकी सलामती की दुहाई थी, बमुश्किल बाहर जाने कि इज़ाजत मिलती तो उसके साथ सुरक्षा कवच बन कुछ चमगादड़ साथ चलते, जिनकी आँखें उसकी सांस पर भी नजर रखतीं मौका मिले तो वो हीं न कहीं उसे कच्चा चबा जाएँ जिनके बीच वह खुले में भी अप्रत्यक्ष रूप से कैद हो चुकी है भीड़ एक क्षद्म था और वह किंतनी एकाकी।
हाँ! आज उसे बहुत इंतजारी है सितारे की, एक एक पल भारी लग रहा है उसे। आँखें हैं कि आसमान से हटती नहीं, तीन दिन हो चुके हैं, आसमान में बादल गहराए हुए है, आसमान खुलता नहीं आँखें रो रो कर सूज गयी हैं आज चूल्हें पर सिर्फ बर्तन चढ़ा है, खाना उसने नहीं बनाया उस पर दया आ गयी उसकी मिट्टी की औरत को, जिसने आज अपने भीतर की औरत को खुल कर रोने दिया है और खुद खाना बनाती रही है बाहर बाहर से आज यह बाहर की औरत घर की जिम्मेदारियां उठाती रही है जबकि अन्दर की औरत रोती रही है आज जल्दी है उसे छत पर जाने की, तीन दिन हुए सितारा बादलों के पीछे छिपा रह गया।
आज शाम हवाएं तेज चली थी शायद उसका साथ दे रहीं थी, सुरमयी रौशनी में आसमान भी साफ़ नज़र आता था धीरे धीरे अँधेरा पसरने लगा था रात्री भोजन के बाद जल्दी जल्दी उसने बर्तनों को खंगाला और आड़े तिरछे अलमारी में पलट कर छत की ओर दौड़ी आज आकाश और दिनों से भी साफ़ था आज वह अपनी शक्तियों को बढ़ दिशाओं से खींच कर एकमुश्त जोर से सितारे को आवाज लगाएगी, बताएगी कि वह उसको कितना प्यार करती है, और आज इस साफ़ आसमान में उसकी आवाज वहां तक पहुँच भी पाएगी और वह कहेगी सितारे से इन डरावनी आँखों से दूर उसे अपने पास उड़ा ले चल अपनी किरणों के साथ
वह छत पर पहुंची और जैसे ही उसने आकाश की ओर देखा उसे एक तारा टूट कर गिरता नजर आया उसने देर नहीं की और कह दिया टूटते तारे से कि उसको उसके सितारे का साथ दे सुना था उसने भी की टूटते तारे से माँगा वरदान खाली नहीं जाता सो उसने जल्दी से आँख मूंदी और मांग लिया तारे का साथ और कितना खुश हुई वो, आज बताएगी अपने सितारे को कि अब उससे उसको कोई अलग नहीं कर सकता, नजर भर भर कर उसने आकाश में देखा। एकटक आकाश की ओर नजरें गाढ़ दी पश्चिम की ओर आकाश गंगा के किनारे लेकिन वह सितारा अपनी जगह कहीं नहीं था, वह जगह खाली थी, निस्तेज थी, सुनसान थी हाय! ये क्या हुआ ? तीन दिन में ही उसको देखे बिना सितारा भी इतना टूटा, इतना टूटा कि टूट कर अपना सब कुछ खो कर, खुद ही मिलने चल पड़ा उस जमीं पर जहाँ वह औरत रहती थी, और वह अभागी समझ न सकी यह गिरने वाला तारा कोई नहीं उसका अपना सितारा था। नहीं तो वह रोक लेती, आवाज लगा लेती या सारे बन्धनों को तोड़ कर उस दिशा की और उड़ लेती जिधर समुद्र था, जमीन थी और जिधर उधर वह तारा गिरा था ।
और जमीन के उस किनारे पर जहाँ समुद्र था, सितारा वहां डूब गया सुना है कि वहां समुद्र में सितारे जैसी मछलियाँ रहा करती हैं और वे आँखें, वो दो आँखें जो आकाश की ओर अपलक देख रही थी, देखते देखते हुए पथरा गयी, कहतें हैं कि आज भी समुद्र के किनारे पत्थरों की उन पुतलियों में सितारे की सी चमक है।
