“प्रेम पर उम्र का पर्दा नही”
“प्रेम पर उम्र का पर्दा नही”
संस्कारों के घने आँचल में जैसे एक कहानी लिखी जा रही थी। समय पर उठना समय पर खाना समय पर सोना जैसे एक टाइम टेबल में जीवन के सभी कामों को पँक्ति बद्ध करने की किसी ने ठान रखी हो, और उधर दूसरी ओर वो दबे पाँव अपने वजूद की दस्तक मेरे दिल पर देने को जैसे तैयार बैठी थी। एक तरफ मैं अपनी पढ़ाई में लगा था और साथ ही दूसरे विषयों पर अपने हाथ आजमा रहा था वहीं मेरी मुलाक़ात हुई उससे जिसे मैं नहीं जानता था पर शायद जानना चाहता था, मैं खुद को यूँ वयस्त दिखाता था कि बस वो उसमे कोई रूचि नहीं रखता। हम दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं कहते पर आँखों से ही एक दूजे को देखते रहते थे। वो पता नहीं कैसे पास आने लगी थी, उसने कहा भी की हमारे बीच कुछ नहीं हो सकता, हमारे बीच छः वर्ष का एक छोटा सा अंतर था पर कोई इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगा ऐसा उसका कहना था, कोई प्यार का इज़हार नहीं हुआ था हमारे बीच सीधे बस साथ रहने की एक ज़िद मन में जगह बना बैठी थी, लगता था उसके साथ ही जीवन सधा रहेगा वो दूर न हो जाए डर था, उसके साथ हर पल अच्छा लगता था, चार वर्ष हो गए समय कहाँ रुकता है मैंने हार नहीं मानी थी दो विपरीत रीति रिवाजों को मिलना था जो सहज नहीं था, बहुत कोशिशों के बाद दोनों पक्षों की सहमति मिली और अंततः हमारे प्रेम की जय हुई हम एक लम्बे समय अंतराल के पश्चात एक हो गए, और हर स्थिति परिस्थिति से स्वयम् ही दोनों साथ मिलकर दो से तीन हुए और एक सच्चे रिश्ते में बंधे आज जीवन को खुशहाली से व्यतीत कर रहे हैं।।