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Sunita Acharya

Drama

4  

Sunita Acharya

Drama

प्रेम का सूरज

प्रेम का सूरज

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घड़ी के हिसाब से क्या वक़्त हो रहा था दोनों को नहीं पता था दोनों पहली बार एक साथ थे वो भी इतनी रात को, कोई नहीं था आसपास उनके एक गहन अंधकार के अलावा, अकेले थे दोनों। पतंगो की आवाज़ के अलावा कोई और आवाज़ उनकी शांति में खलल नहीं डाल रही थी। जुगनूओ और चांदनी ने मिल के एकदूसरे के दीदार के लिए पर्याप्त रौशनी का इंतज़ाम कर रखा था।

इतनी शांति के बीच दोनों एक दूसरे की हद से ज्यादा बढ़िया हुई धड़कनो को साफ सुन सकते थे,श्याम ने हिम्मत जुटा कर नज़रे उठाई और एक नज़र रूपा को देखा। रात का सारा शबाब उसके चेहरे पर चमक रहा था,उसके होंठ काँप रहे थे, पूरा चेहरा गुलाबी हो रखा था वो नज़रे नीची किये चुपचाप बैठी थी मानो पहली बार श्याम से मिली हो। 

बरगद के उस पेड़ के तने से सट कर बैठे थे दोनों लेकिन थोड़ी दूरी बनाकर। प्रेम के इस मिलन का हर पल रूमानी सा लग रहा था श्याम थोड़ी सी हिम्मत करके रूपा के पास खिसका और धीरे से उसका उसके चेहरा अपनी ओर घुमाया और उसकी ठोड़ी को छूआ रुपा ने घबरा कर आँखे ऊपर उठाई, दोनों की नज़रे एक दूसरे के टकराई एक अदभुत प्रेम की तरंगे दोनों के दिलों में हिलोरे मारने लगीं। श्याम रूपा की सुंदरता को अपनी आँखों में समेट लेना चाहता था। काफ़ी देर तक दोनों यूँ ही बैठें रहे चुपचाप एक दूसरे की आँखों में आँखे डाले,ख़ामोशी भी आज बातें कर रही थी ना जाने कितने शिकायतें, इज़हार और इकरार करते रहे दोनों तभी एक ठंडी हवा के गुस्ताख़ झोंके ने दोनों की खुमारी को तोड़ा दोनों अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आये, रूपा ने मुस्कुरा कर आसमान की तरफ़ देखा चाँद अब भी मुस्कुरा रहा था दोनों को देख़ कर, वो धीरे से खिसक कर श्याम के करीब आ गयी श्याम ने भी अपने हाथ आगे बढ़ा कर उसे अपनी मजबूत सी छाती सी सटा लिया अब दोनों आराम से एक दूसरे की धड़कने सुन रहे थे , साँसों का उतर चढ़ाव भी महसूस कर रहे थे। श्याम ने रूपा का हाथ अपने हाथ में लिया और अपनी और उसके हाथों की लकीरों को अपनी लकीरों से मिला कर देखने लगा।

आखिर कब तक अपने हाथों की लकीरों को म्हारी लकीरों से मिलाते रहोगे श्याम, अब मैं ही थारी किस्मत हूँरूपा बोल उठी। तू सही केवे है रूपा लेकिन के करूँ बिस्वास ही ना होवे, थारा माहरे इतने पास होणा किसी सपने सा लागे है ख़ुशी के आँसू श्याम की आँखों में छलक आये ये सपना नहीं सच है म्हारे छैल भंवर कहकर रूपा ने उसका हाथ दबा दिया। श्याम मुस्कुरा कर रूपा को देखा उस स्याह रात में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।

उसने दोनों हाथों में रूपा के चेहरे को भर लिया, रूपा ने भी अपनी बाहों का कसाव बढ़ा लिया, दोनों के होठ काँप रहे थे पहली बार दोनों के दूसरे के इतने करीब थे। पौष की इस सर्द रात में दोनों पसीने से भर उठे थे। दोनों के होठ एक दूसरे के स्पर्श के लिए बेताब थे अंदर ही अंदर कोई लावा सा पिघल रहा था तभी श्याम ने देखा की रूपा की ओढ़नी उसके आँचल से खिसक गयी है वो थोड़ा सा संभला और रूपा की ओढ़नी को ठीक करने लगा, रूपा भी संभल चुकी थी। अभी वक़्त ना आया था दोनों के एक होने का श्याम एक लंबी साँस ली और रूपा के बालों को सहलाने लगा। दोनों का प्रेम शारीरिक आकर्षक से ऊपर उठ चुका था

रात का आखरी पहर चल रहा था तभी दोनों को किसी के क़दमों की आहट सुनाई दी, एक पल के लिए दोनों घबरा उठे फिर दोनों को कुछ याद आया दोनों निश्चिंत हो कर बैठे गए। कदम तेजी के पास आ रहे थे ये गाँव का चौकीदार था। 

उसने कुछ देखा और घबरा कर गाँव की तरफ़ दौड़ पड़ा थोड़ी ही देर में पूरा गाँव इकठ्ठा हो गया हर कोई हैरान था पेड़ से लटकी दो लाशों को देख़ कर श्याम और रूपा की लाश , दोनों के परिवार वाले कल शाम से दोनों को ढूंढ रहे थे लाशों को देख़ कर रोना पीटना शुरू हो गया दोनों उस दृश्य को गौर से देख़ रहे ये वही लोग थे जिन्होंने जीते जी उनकी खुशियों को कोई महत्व नहीं दिया जिनके लिए धर्म, जाति और खोखली परम्पराये सब कुछ थी वो hi आज उनके लिए आंसू बहा रहे थे। कुछ लोगों ने मिल कर उनकी लाशों को नीचे उतारा दोनों के हाथ अब तक एक दूसरे के हाथों में थे। सब कोशिश करने लगे दोनों के हाथों को अलग करने की लेकिन लाख कोशिश के बाद भी सफल ना हो सके।

दोनों को अलग किये बिना अंतिम संस्कार सम्भव नहीं था। काफ़ी प्रयास के बाद यही निर्णय हुआ की दोनों का अंतिम संस्कार एक साथ एक ही चिता पर कर दिया जाये। आनन फानन में चिता तैयार की गयी दोनों पक्षो के रिश्तेदारों ने मिल कर मुखाग्नि दी।

दोनों के शरीर जलने लगे साथ ही जलने लगे समाज के बनाये हुए वो जात पात और धर्म के वो सारे बंधन जो प्रेम को पूर्ण नहीं होने देते। शरीर जल गए और आत्माएं पूर्णतया मुक्त हो गयीं। दोनों एक दूसरे का हाथ थामे चल पड़े एक नये सफ़र की ओर जहाँ दोनों एक होने वाले थे बिना किसी बंधन के। दोनों ने फिर से आसमान की ओर देखा आज एक नया ही सूरज ऊगा था श्याम और रूपा के प्रेम का सूरज जो अपनी रोशनी से उन्हें प्रेम के पूर्ण होने की बधाई दे रहा था।


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