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Rashid Gouri

Inspirational

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Rashid Gouri

Inspirational

पराया दर्द

पराया दर्द

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लॉकडाउन में कुछ छूट दी गयी। परचूनी सामान की दुकानें सुबह आठ बजे से बारह बजे तक खुली रखने की घोषणा होने के दूसरे ही दिन सरला काकी अपनी जरूरत का सामान लेने के लिए किराणा की दुकान पर पहुंच गयी। दुकान उनके घर के पास ही थी।उस दुकान पर सुबह से ही ग्राहकों की भीड़ लगी थी।काकी ने जब वहां के हालात देखे तो उनसे चुप रहा नहीं गया। तुरंत उनके भीतर की शिक्षिका जागृत हो गयी।


" तुम लोग समझते क्यों नहीं हो... ? सब एक मीटर की दूरी पर लाइन में खड़े हो जाओ।" उस अधेड़ काकी की बात का तुंरत असर हुआ। वहां खड़े ग्राहक सोशल डिस्टेंस रखते हुए खड़े हो गए। काकी भी सबसे पीछे जाकर खड़ी हो गई।काकी के पड़ौस में रहने वाली महिला ने प्रात: घर का दरवाज़ा खोला तो उसे दरवाजे पर प्लास्टिक का एक सफेद सा कुछ रखा हुआ नजर आया। हल्का-हल्का अंधेरा उजाला सा था। सुबह होने को थी। पति ने उस प्लास्टिक- कट्टे को खोलकर देखा। उसमें आटा, दाल, चांवल, तेल, चाय - शक्कर का सामान था।


काकी ने कल रात, छत से, अचानक ही अंधेरे में नीचे झांका तो पड़ौसी दम्पत्ति को अपने घर की दयनीय हालत पर चर्चा करते हुए सुना। परिवार ने अभी कुछ नहीं खाया है...। पत्नी लगातार रोये जा रही थी...। अपनी पीड़ा किसे बताये।उनके जमीर और शर्म ने उन्हें बाँध रखा था। काकी के करूणा से भरे हृदय को उनका का दर्द आहत कर गया। काकी विचलित हो गई।


पड़ोसी परिवार उस अनाम - अनदेखे फरिश्ते के प्रति सच्चे मन से नतमष्तक होकर उसे दुआएं दे रहा था। जिसे, काकी का हृदय साफ- साफ महसूस कर रहा था।




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