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Harsh Jaiswar

Inspirational

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Harsh Jaiswar

Inspirational

पिता से परिवार

पिता से परिवार

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मै जब छोटा था तब मानों लगता था,की ये पुरी दुनिया मेरी है ना कोई काम और ना हीं कोई चिंता थी।खाना और दिनभर खेतो मे खेलना था,बस मै अक्सर अपने पिता जी चिंतित देखता था,ओ आंगन के द्वार पर बैठे घंटो कुछ सोचते थे।मै जब भी उनसे इस चिंता का कारण पूछता ओ हसकर मेरी बात टाल देते थे।पर समय के साथ मैने ओ चिंता पढ़ ली थी।मै और मेरे माता पिता के साथ मेरी तीन छोटी बहनें गाँव मे रहते है,शायद इन्हे ही परिवार कहते है।हमारी एक झोपड़ी है,जिसमे हम सभी रहते हैं गाँव मे होने के कारण हमारी आमदनी काफी कम थी।पिता जी रोज सुबह मजदूरी करने जाते थे और दिहाड़ी मे उन्हे १०० रुपये हीं बस मिलते थे।कभी कभी तो काम भी नहीं मिलता था,शायद पिता जी इसी की चिंता मे रहते थे हम रोज भर पेट खाना भी नहीं खा पाते थे।क्योंकि आमदनी कम थी और लोग ज्यादा ।परिवार को चलाना एक देश चलाने जितना भारी और मुश्किल होता है।हमारी गरीबी मानों चांद जैसी थी,जो कुछ दिन के लिए गायब जरूर होती थी पर फिर वापस आ जाती थी।पैसे पर्याप्त न होने की वजह से मुझे अपनी पढ़ाई बीच मे ही छोड़नी पड़ी।परिवार चलाने के लिए सिर्फ पिता जी ही नहीं बल्कि। मेरी मां का भी योगदान है।पिता जी अक्सर मुझसे एक बात कहते अपनी खेत बेचने की बात कहते और कहते इससे मिले पैसे से तुम अपनी बहन की शादी कर देना।मुझे समझ नहीं आता था की पिता जी ये मुझे क्यू कह रहे है,कुछ दिन बाद पिता जी बीमार पड़ गये,उन्हे कमजोरी ने जकड लिया था।डॉक्टर ने कहा की खाने की कमी के कारण ऐसा हुआ है,आज पिता जी इस दुनिया मे नहीं है।सच मे पिता जी ने एक परिवार चलाया था।


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