फुटबॉल
फुटबॉल
बन कर खेलने लगे हो।“
“थोड़ी देर में आता हूँ, रोहन को नीचे भेज। उसके साथ फुटबॉल खेलता हूँ।“
पापा की आवाज सुनकर रोहन मम्मी को नजरअंदाज करके फुटबॉल लेकर सीढ़ियां कूदता हुआ नीचे पहुंचता है और पापा रितेश संग फुटबॉल खेलने लगता है।
रोहन संग खेलते हुए रितेश सोचता है।
“ऑफिस वालों ने जिंदगी फुटबॉल बना दी है। कभी इधर किक और कभी उधर।“