नलनि का चन्द्रपरिहास
नलनि का चन्द्रपरिहास
मधुमास की मधुयामिनी और अष्टमी की चाँदनी रात एक नव युगल सरोवर तट पर हाथों में हाथ डालकर स्नेहिल भाव-विभोर हुआ बैठा था मद्धिम मद्धिम बयार चल रही थी नायिका ने अम्बर की ओर नजरें उठाकर गुनगुनाना शुरू किया 'आधा है चन्द्रमा रात आधी, रह न जाए तेरी मेरी बात आधी, मुलाकात आधी------इतने में ही नायक अपनी उंगलियाँ उसके स्फुरित होंठो पर रख कर बोलता है,नहीं नहीं ऐसा नहीें हो सकता हमारे स्वप्न अवश्य साकार होंगे। नायिका बोली---मेरे गीत के बोल का गलत अर्थ न लगाएँ प्रियवर!किन्तु वक्त को कौन जानता है,कल किसने देखा है?पर हां मुझे इतना विश्वास है कि हम हमारे सपने को किसी भी दशा में अधूरा नहीं छोड़ेंगे। ये आज का अर्धचन्द्र इस संकल्प का सदैव साक्षी रहेगा। कुछ समय तक प्रकृति का आनन्द उठाकर दोनों अपने कक्ष में चले जाते हैं क्योंकि उन्हें कल ही अपने शहर के लिए निकलना था। अगले दिन वो लोग खुशी-खुशी अपनी यात्रा का लुत्फ उठाते हुए अपने घर-परिवार के बीच जा पहुँचे। वहां घर वाले पलक पांवड़े बिछाए उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहे थे।घर पहुँचते-पहुँचते रात के दस बज गए थे। लोकाचार निभा कर सभी लोग अपने-अपने कक्ष की ओर हो लिए क्योंकि नवल की अभी दस दिन की छुट्टी घर-परिवार में सबके साथ का आनन्द उठाने के लिए अवशेषित थी। अगले दिन डाकिया एक अर्जेन्ट तार लेकर आया जो कि नवल के कार्य-प्रकोष्ठ से आया था।उसमें उसे दो दिन के अंदर ही ड्यूटी ज्वाइन करने के आदेश थे।पूरे घर-परिवार में मानो सन्नाटा छा गया। फिलहाल 'ड्यूटी इज ब्यूटी' मुहावरानुसार सभी उसकी तैयारी में ऊपरी शांत भाव से जुट गए, नलनि भी चुप चुप सी पर चेहरे पर दृढ़ता और हँसी खुशी का भाव लिए नवल की तैयारी में पूरा सहयोग दे रही थी। इधर नवल बहुत ही गुमसुम सा एकान्त में बैठा नलनि के साथ दो तीन दिन पहले ही हुए वार्तालाप-स्मृति में निमग्न था। उसे ऐसी अवस्था में देखकर नलनि से रहा न गया। बोली "कैसे फौजी हैं आप, आखिर इतनी भी दुविधा की क्या बात है?यदि नहीं इच्छा है तो मत जाइए लेकिन अगर जाना है तो हँसी खुशी वीरों की भाँति जाइए।" नवल ने भी सर झटकते हुए कहा-"अरे नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रही हो" इतना कहकर मुस्करा दिया।तदनंतर अगली सुबह नवल रवाना होने को तैयार हुआ, पूर्व की ही भाँति मां द्वार पर पानी की भरी हुई बाल्टी रखकर हाथ में तिलक-थाल लेकर खड़ी हो गई। मां ने हमेशा की तरह नवल को तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया, नलनि ने भी खुशी खुशी तिलक कर नवल के चरण स्पर्श कर लिए। नवल ने भी भावातिरेक में वहीं सबके सामने उसको गले लगाकर आशीर्वाद भी दिया। विदा ले स्टेशन के लिए चल दिया। स्टेशन तक छोड़ने के लिए नवल के पापा साथ में गए।
अगले दिन नलनि का भाई नितिन बहन को लेने आ पहुँचा। वह हँसी-खुशी पर ससुराल के घर को सूना कर अपने मां-पापा के घर जा पहुँची।हँसते-खिलखिलाते दस दिन कब बीत गए पता ही न चला और फिर नलनि विदा होकर ससुराल आ गई। यहाँ पर सास ससुर और उसकी छोटी ननद नलनि का बहुत ख्याल रखते,पूरा ध्यान रखते कि उसे एकाकीपन का एहसास न हो। ननद छोटी बहन से भी अधिक रात-दिन हर पल उसी के साथ रहती। चार पांच दिन बाद नलनि की अचानक तबियत बिगड़ गई, डाक्टर के पास ले जाने पर पता चला कि नलनि मां बनने वाली है।अब तो घर भर में खुशी की लहर दौड़ गई। हर पल उसका हर तरह से और भी अधिक ख्याल रखा जाने लगा। उधर नवल का फोन आया उसने घर-परिवार में नलनि के साथ साथ सबसे बात की,उसे भी पापा बनने की खुशखबरी दी गई। निश्चित रूप से उसकी खुशी का भी कोई पारावार न रहा होगा। अन्त में नवल ने पापा को बताया कि सीमा पर युद्ध की स्थिति बन रही है,मेरी पोस्टिंग सीमा पर हो रही है आज ही वहां के लिए निकल रहा हूँ, आप सभी लोग अपना अच्छे से ख्याल रखिएगा।
यद्यपि मां-पापा का मन उदास हो गया फिर भी वो तटस्थ रहे।नलनि ने उनको ढांढस बंधाया कि यह तो हम सबका अहोभाग्य है कि हमारे बीच से ही नवल जी देशहित कार्य को अंजाम देने जा रहे हैं हम सबको गर्व महसूस करना चाहिए।
धीरे-धीरे आठ माह कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। वह शुभ दिन भी आ गया जब नलनि को अस्पताल ले जाया गया विशेष बात ये थी कि उसी दिन नवल का जन्मदिन भी था पर आने-जाने की आपाधापी में किसी को ख्याल ही न रहा।रात में नवल की छोटी बहन घर पर अकेली थी।रात्रि नौ बजे लैण्डलाइन पर कॉल आई कि नवल युद्ध भूमि में आज ही शहीद हो गया है।बहन तो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। इतने में नवल के पापा की कॉल आती है "बेटा तेरे प्यारे भतीजे ने पदार्पण कर लिया है" नीति की स्थिति बड़ी विकट हो रही थी फिर भी उसने रोते-रोते बताया कि बिलकुल अभी-अभी एक फोन आया था कि नवल भैय्या शहीद हो गए, पापा कितना ही अच्छा होता कि ये खबर झूठी हो और उसने फोन रख दिया, धम्म से वहीं बैठ गई।
अम्बिका जी ने बड़ी हिम्मत, और सूझ-बूझ से काम लिया। अपनी पत्नी से बहुत जरूरी काम बता कर और डाक्टर को सही सूचना देकर नलनि और पत्नी को न बताएं ऐसा कहकर अपने घर लौट आए। घर आकर बेटी को सम्हाला एवं नलनि के मायके वालों को दोंनो ही सूचनाओं से अवगत कराया। अगले दिन सुबह सुबह बेटी को लेकर अस्पताल पहुँच कर परिस्थिति अनुसार नलनि को डिस्चार्ज करवाने की प्रक्रिया में जुट गए। इतने में नलनि के मायके वाले भी आ गए। सबके एकदम शांत चेहरे को देख कर नलनि और उसकी सास बहुत ही असमंजस में थे कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा है जो हमें नहीं बताया जा रहा है।
दोंनो परिवार एकसाथ नलनि और शिशु को लेकर घर आ गए।घर पर धीरे-धीरे सही वस्तुस्थिति का भान कराया गया। सबकी आंखे मानो पथरा सी गयीं, कण्ठ अवरुद्ध हो गए। शनैः शनैः पास-पड़ोस में भी सबको पता चल गया। यह समाज है न कि जितने मुँह उतनी बातें कानोकान होते हुए न चाहते हुए भी नलिन के कानों में भी पहुँच रही थी। दो दिन बाद नवल का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ ससम्मान घर पर लाया गया अश्रुपूरित नयनों से सैन्य विधि-विधान से अन्तिम संस्कार सम्पन्न हुआ।
दोंनो परिवार बड़ी समझदारी से अग्रिम योजना पर विचार विमर्श कर रहे थे।नलनि ने बड़ी सौम्यता के साथ उनके मध्य बोलने का उपक्रम किया। उसने कहा कि यदि आप लोग अन्यथा न लें तो मैं कुछ कहना चाहती हूँ। सबने सहर्ष स्वीकृति दी, मना करने का प्रश्न ही नहीं था आखिरकार जिन्दगी तो उसकी ही थी।
उसने कहा वह पढ़ी-लिखी है, नवल की सर्विस के एवज में उसे कोई न कोई नौकरी मिल जाएगी फिर वो सबके सहयोग से बच्चे का लालन-पालन करते हुए अनजाने में ही नवल के साथ किए गए वादे को निभाते हुए एक उद्देश्य पूर्ण जीवन यापन कर सकेगी। सासु मां की एक मद्धिम सी आवाज आई-'बेटा जीवन बहुत लम्बा,उतार-चढ़ाव भरा संघर्षशील होता है अकेले---' नलनि बोली- मैं अकेली कहाँ हूँ मां आप सभी तो मेरे साथ हैं, यदि कोई नहीं होगा तो भी सबसे बड़ा साथी "मेरा मनोबल" और मेरा बच्चा होगा।मेरे जीवन का एक लक्ष्य होगा। सभी ने उसके विचारों से पूर्णतः सहमत होते हुए असंख्य आशीर्वाद से उसे नवाज़ा । इस प्रकार इक्कीसवें दिन शिशु का नामकरण संस्कार हुआ ।शिशु को "नवनील" नाम दिया गया सब लोग प्यार से उसे नील पुकारने लगे।
दोंनो परिवारों ने मिलकर नलनि की नौकरी के लिए कागजी कार्रवाई प्रारम्भ कर दी। फोर्स के कार्यालय और स्कूल में नलनि को नौकरी मिलने की संभावना दिखाई दे रही थी। एम् एस सी .तो थी ही पर बी एड . नहीं थी अतः एक वर्ष का समय लेकर नलनि ने बी एड का कोर्स कर डिग्री लेकर आर्मी स्कूल में नौकरी ज्वाइन कर ली। पढ़ाई के समय दादी ने बच्चे की पूरी जिम्मेदारी उठाई। फिर नौकरी शुरू होने पर जबतक नील पूरे समय स्कूल में मां के साथ पढ़ने जाने योग्य नहीं हो गया तब तक दादी,नानी और बुआ सबने मिलकर बारी-बारी से नील का सम्यक रखरखाव किया। इस तरह विभिन्न पड़ावों से गुजरते हुए जीवन-नौका चलती रही। नील ने इण्टर साइंस ग्रुप से 85% अंकों से उत्तीर्ण कर एन.डी.ए. की परीक्षा पास कर नेवी में प्रवेश पा लिया। इस बीच नील की बुआ की शादी भी हुई, नलनि ने भाई और भाभी दोंनो का फर्ज बखूबी अदा किया।
अब बातें बनाने वाला समाज तारीफ के पुल बांधते नहीं थक रहा था। इसे कहते हैं वक्त वक्त का फेर। ददिहाल और ननिहाल नील की बलैया लेते नहीं थकते, सबके जुबां पर एक ही बात थी मां हो तो नलनि जैसी, जिसने अपनी कोशिशों से हर वो सपना साकार कर लिया जो कभी अपनी खुली आँखों से देखा था।सही कहते हैं कि ऊँचा मनोबल और दृढ़संकल्प सभी बाधाओं को लांघ जाता है।
