नजरिया
नजरिया
'अरे ये क्या, फिर से लड़की हुई!!'
नर्स ने ये कहते हुए सरिता को बेटी होने की सूचना दी। साथ ही बोली कि उसने पहले परिक्षण नहीं ं करवाया था क्या?
सरिता अवाक सुनती रह गई। एक स्त्री होकर ऐसी बातें? एक नवजात बच्ची का ऐसा स्वागत!!?? अगर वो पहले पता कर लेती तो क्या नियति को बदल पाती? एक जीव-हत्या का पाप अपने सर पर ले पाती? स्त्री स्नेह देना जानती है, जीवन लेना नहीं ।
हमारे समाज ने एक स्त्री को देवी का रूप तो मान लिया, किन्तु उसे जीवित इंसान समझने में चूक गया। इन दकियानूसी बातों
से बाहर निकल कर बेटियों को खुलकर सांस लेने दीजिए।
उन्हें लक्ष्मी मानिये या मत मानिये, उनके अस्तित्व को अनदेखा मत कीजिए। बेटी को भी भरपूर स्नेह और सम्मान की जरूरत है। उनके मनोबल को बढ़ाने की आवश्यकता है।
केवल " नज़रिया" बदलने की जरूरत है, ' नज़रे' स्वयं स्वच्छ हो जाएंगी।
अपने विचारों में खोई सरिता का ध्यान भंग करते हुए उसके पति ने पूछा--"घर नहीं जाना क्या" ?
खुद को संभालते हुए उसने अपनी नन्ही सी परी को देखा, दूध सी धवल और कितनी मासूम लग रही थी वो। उसे गले से लगाकर वो अपने घर की तरफ मुड़ गयी। ।