STORYMIRROR

Satpreet Singh

Drama

4  

Satpreet Singh

Drama

नेताजी की रैली

नेताजी की रैली

6 mins
521

आगामी चुनावों का बिगुल बजते ही राज्यभर में चुनावी सरगरमियां तेज हो गईं। विभिन्न पार्टियों के दफ्तरों में भीड़ जुटने लगी। शहरों और गाँवों के चौक- चौराहे नेताओं की तस्वीरों से पटने लगे। नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल भी बढ़ने लगा। फूलवालों, मिठाईवालों, बैनरवालों का कारोबार भी चढ़ने लगा। हर घर के बाहर विभिन्न पार्टियों के पोस्टर सटने लगे। पिछले चुनावों के मुद्दे फिर उछलने लगे। कुल- मिलाकर चुनाव के इस मौसम में पूरे राज्य की आबोहवा ही बदल गयी।

हमारे राज्य में एक पार्टी के एकमात्र स्थानीय, राजकीय एवं राष्ट्रीय नेता का दबदबा था। बोलते हैं बड़ी कुर्बानियाँ दी हैं उनहोंने राज्य के लिए। मगर बेचारे पिछले दफ़ा बुरी तरह हार गए। वो तो अपनी तरफ से फ़ुल कॉन्फिडेंट थे, पर पता नहीं कहाँ चूक हो गयी। बस तब से जनाब अपने कार्यकर्ताओं से थोड़ा नाराज़ रहने लगे। भई उनकी हार-जीत का पूरा दरोमदार उनके कार्यकर्ताओं पर ही तो होता है। दरअसल, मामला ये है कि नेताजी कि जमीनी पकड़ तो है ही नहीं। यानि कि आम जनता के साथ उनका दूर- दूर तक कोई वास्ता नहीं है। सारी मेहरबानी तो बस उनके कार्यकर्ताओं की है। नेताजी का काम बस अपने कार्यकर्ताओं को खुश रखना है, बाकी सब उनके कार्यकर्ता संभाल लेते हैं। 

पर अबकी चुनावों के मौसम में बारिश के पहले गीली आँधी और बारिश के बाद सूखी आँधी आ रही है। यानि कि सब कुछ उल्टा- पुलटा हो रहा है। इस बार तो हमेशा फुल कॉन्फिडेंट रहने वाले हमारे नेताजी के भी पसीने छूट रहे हैं। दरअसल हुआ यूँ कि पिछले चुनाव कि गलतियों से सबक लेकर हमारे नेताजी ने इस बार की तैयारियों में ज़बरदस्त बदलाव किए थे। सबसे बड़ा बदलाव ये कि उन्होंने सोचा कि चुनाव से पहले क्यों न अपने जिलों का एक–एक चक्कर लगा लिया जाए। क्योंकि पिछली बार ये फुल कॉन्फ़िडेंट नेताजी कई चुनाव क्षेत्रों का दौरा करना ही भूल गए थे। तो इस बार तय हुआ कि चुनाव से पहले तक नेताजी राज्य के हर एक जिले का दौरा करेंगे। प्लान के मुताबिक नेताजी की हमारे शहर में भी रैली तय थी। मगर दौरे से ठीक दो दिन पहले कमबख़्त उनकी जुबान फ़िसल गयी। हालांक इससे पहले भी कई दफ़ा उनकी जुबान फ़िसली है। कभी दंगों पर, तो कभी औरतों पर। पर इस बार फ़िसली तो सीधे उनके अपने कार्यकर्ताओं पर। बड़ा बवाल हुआ। मीडिया तो मीडिया, कार्यकर्ताओं ने भी आसमान सिर पर उठा लिया। अब नेताजी उनको कसे समझाएँ की उनकी जुबान पर उनका खुद का बस नहीं चलता। हालांकि हमारे नेताजी ने वो बयान सेंसर कर दिया है, इसलिए ये पूरा लेख बिना उस बयान के प्रकाशित हो रहा है। 

इधर बेचारे मर्माहत कार्यकर्ताओं ने भी अपनी आवाज़ बुलंद कर ली। शाम तक ऐलान कर दिया कि पार्टी के सभी कार्यकर्ता एक साथ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा रहे हैं। हमारे नेताजी को तो अपच सी होने लगी। भला दो कौड़ी के कार्यकर्ताओं में इतनी हिम्मत? मेरा हड़ताल वाला फॉर्मूला मुझपर ही आजमाने लगे? 

खैर, नाराज़ प्यादों को मनाने की सारी कोशिशें नाकाम हुईं। उनकी एक ही शर्त थी-“ नेताजी सार्वजनिक माफ़ी मांगें।“ पर अपने नेताजी भी थोड़े हठी थे। कह दिया माफ़ी नहीं मांगेंगे मतलब नहीं मांगेंगे। नेताजी ने अपने सेक्रेटरी से कह दिया- “ फौरन नए कार्यकर्ताओं का जुगाड़ करो।“ पर इतनी जल्दी ये सब भला कहाँ संभव था? अब तो नेताजी का रंग भी ये सोच-सोचकर पीला पड़ने लगा था कि अगर अपनी ही सीट से हार गए तो क्या इज्ज़त रह जाएगी? खैर, ऐवरी प्रोब्लम कम्स विथ इट्स सोल्यूशन। उनके एक तेज तर्रार चापलूस ने सुझाया- “क्यों न इधर- उधर की पार्टियों के लोग भाड़े में बुला लिए जाएँ?” योजना पर मुहर लगी और तुरंत फ़ंड भी निर्गत हुआ। हर पार्टी के प्यादे से बात हुई। किसी को सौ के पेट्रोल पर मनाया गया तो कोई एक जीबी नेट पैक पर राज़ी हुआ। तय दिन पर आखिरकार नेताजी हमारे कस्बे में पहुँच ही गए। पूरे पाँच बरसों बाद नेताजी ने यहाँ के लोगों को देखा था। हम तो फिर भी ठहरे खुशनसीब, जो पाँच बरस में ही नेताजी से आमना- सामना हो गया। वरना कई क्षेत्रों में तो नेताजी दो-दो चुनावों तक झाँकने भी नहीं जाते। और वैसे भी हम तो रोज़ ही नेताजी को देखते थे- कभी थाने में, तो कभी अदालत में। kभी संसद में, तो कभी लंदन में। 

खैर, रैली में जुगाड़ कार्यकर्ताओं की भीड़ देखकरनेटजी संतुष्ट थे। क्योंकि आम जनता की भीड़ तो उनकी रैली में कभी हुई ही नहीं थी। पर ये क्या? नेताजी को पूरे मैदान में अलग- अलग पार्टियों के बैनर- झंडे ही दिखाई दे रहे थे। अपनी पार्टी का तो कोई नामोनिशान ही नहीं दिख रहा था। अपने नेताजी को डाउट होने लगा कि वो अपनी रैली में ही आयें हैं या.....? 

इससे पहले कि नेताजी कुछ समझ पाते, एक सखे ने हिम्मत करके उनके कान में आवाज़ डाल दी- “ चिंता मत कीजिये जनाब, आपकी आँखें बिलकुल सलामत हैं। जो आपको दिख रहा है, वही सच है। सब अलग-अलग पार्टियों के लोग अपने – अपने झंडे लेकर आयें हैं। जब हमने उनसे कहा कि थोड़ी देर के लिए हमारे झंडे थाम लो तो वो हमसे ही उलझ गए। कहने लगे कि वो कोई गद्दार नहीं हैं जो अपनी ही थाली में छेद करेंगे।और तो और हमें धमकी भी दी कि हमने उन्हें सिर्फ भाड़े पर लिया है, खरीदा नहीं हैं।“

बेचारे डरे-सहमे नेताजी ने ऐहतियातन पूछा- “ फिर तो अपने नाम के नारे भी नहीं लगवा सकते?” 

“नहीं, बिलकुल नहीं, गलती से भी नहीं। और तो और किसी से तालियों कि भी उम्मीद मत कीजिएगा।“ 

“ना नारे आ जयकारे। तो फिर काहे की रैली।“

“कोई बात नहीं जनाब। आज ऐसे ही काम चला लीजिये।“

बेचारे मजबूर नेताजी मान गए। और लगे बिना किसी खास भीड़ की रैली को संबोधित करने। आज पहली बार नेताजी के मुंह से नपे – तुले शब्द निकल रहे थे। पहले पंद्रह मिनट तो स्वागत शबदों में ही बिता दिये। आगे क्या बोलें, क्या नहीं, ये सोचने में टाइम लग रहा था। पहले तो जनाब बिना तैयारी के एकदम बेबाक बोल लेते थे। क्योंकि उनका भाषण कोई सुनता ही कहाँ था ? पर अब यह संभव नहीं था। क्योंकि मीडिया हर वक़्त उन्हें कान लगाकर सुन रहा था। गुस्सा तो नेताजी को उनपर बहुत आ रहा था। पर चुनाव के मौसम में इनसे उलझना भी खतरे से खाली नहीं था।

काफ़ी देर तक नपा – तुला भाषण देने के बाद आखिर वही हुआ जिसका डर था। गलती से नेताजी ने अपने समय के सरकार की तुलना वर्तमान सरकार से कर दी। फिर क्या था? एक पार्टी का प्यादा उठा और चिल्लाया – “आपकी हिम्मत कैसे हुई हमारी सरकार के काम – काज पर अंगुली उठाने की ?” दूसरी पार्टी का हितैषी बोला – “अपने यहाँ बाढ़ से उबरने के लिए केंद्र मे बैठी हमारी सरकार से मदद मांगने कौन गया था।“ इतने मे तीसरी पार्टी वाले से रहा न गया और वह तपाक से बोला-“मत भूलो की तुम दोनों की सरकारें हमारे ही समर्थन से बनी थीं। “

इस तरह बात बढ़ गयी और बढ़ती ही चली गयी। इधर नेताजी की आवाज़ मंद पढ़ गयी और उधर हवा में उड़ती कुर्सियों की रफ्तार और तेज़ हो गयी। नेताजी किसी तरह अपनी जान बचाकर मंच से भागे। काफ़ी देर तक मंच के पीछे से छिप कर हवा में बम की तरह उड़ते पत्थरों को देख कर नेताजी पछताए – “खामखा किराए में अक्कल के दुश्मन मंगा लिए।“ फिर अगले ही क्षण सोच लिया –“ये लोग यहाँ लड़ने के लिए काफ़ी हैं, हम कहीं और से लड़ लेंगे।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama