मुखौटा
मुखौटा
पाखी का विवाह हुए कुछ ही दिन बीते थे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ। हो भी क्यों ना भई विवाह भी तो शहर के नामचीन व्यापारी रामबदन राय के इकलौते बेटे से हुआ था सहेलियां और घरवाले उसका भाग्य सराहते न थकते थे, पाखी को भी अपनी किस्मत पर बहुत नाज़ था। सब ठीक चल रहा था विवाह की सारी रस्में में हो जाने के बाद सभी रिश्तेदार अपने घर को रवाना हो गए थे पाखी के दिन सोने से और रातें चांदी हो गई थी यानी कोई फिक्र नहीं सब कुछ मन मुताबिक चल रहा था पर घर पर बैठकर कब तक रहती आखिर वह पढ़ी-लिखी आधुनिक विचारों वाली प्रगतिशील लड़की थी उसने तय किया अपने पति से इस बारे में चर्चा अवश्य करेगी, वह भी अपना करियर बनाना चाहती है और काम करना चाहती है।
जब शाम हुई और अभिजीत दफ्तर से घर आया पाखी ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया और बोली "अभिजीत तुम्हारा आज का दिन कैसा रहा?"
अभिजीत ने मुस्कुरा कर कहा "मेरा दिन तो बहुत अच्छा था तुम बताओ कैसा बीता तुम्हारा आज का दिन?" पाखी ने कुछ जवाब ना दिया सिर्फ एक फीकी- सी मुस्कान उसके चेहरे पर देखकर अभिजीत ने पूछा "क्या बात है कोई परेशानी है तो कहो?" सही मौका जानकर पाखी ने कहा "परेशानी तो कुछ नहीं पर मुझे घर पर यूं ही बैठना ठीक नहीं लगता मैं भी काम करना चाहती हूं क्या मैं नौकरी के लिए आवेदन दे दूं?"
यह सुन अभिजीत की तैयारियां चढ़ गई बोला "तुम कहीं और नौकरी क्यों करोगी? हमारा इतना बड़ा बिजनेस है ऐसा करो कल से ही ऑफिस आ जाओ।"
ऐसा कह वह शरारती हंसी हंसा पाखी ने पहले तो उसे घूरा फिर हंस कर बोली "तुम भी ना तुमने तो डरा ही दिया था मुझे।" जब वह रसोई में जाने के लिए उठी तो उसे रोककर अभिजीत बोला "पर पहले पापा से बात कर लेना।"
थोड़ा सोचने के बाद पाखी ने सहमति में सिर हिलाया, इस पर अभिजीत बोला "वैसे तो पापा प्रगतिशील विचारों के हैं तुम तो जानती ही हो कि वह महिला सशक्तिकरण के कितने समर्थक है और महिलाओं को आगे बढ़ने में सहायता करने के लिए उन्होंने कितने ही समाजसेवी कार्य किए हैं" पाखी -"हां वो तो है वे जरूर खुश होंगे या जानकर कि मैं काम करना चाहती हूं।"
अगले दिन सुबह पाखी तैयार होकर अपने ससुर जी के पास पहुंची उनकी आज्ञा लेने।
जाते ही उनके पैर छूकर प्रणाम किया तो राय साहब ने आशीर्वाद की झड़ी थी लगा दी "सुखी रहो सौभाग्यवती रहो"
बोले "पाखी आओ बेटा बैठो।"
पाखी चुपचाप बैठ गई उसे विचारों में खोया देखकर राय साहब ने पूछा "कुछ कहना है पाखी?" पाखी की सकुचाहट देखकर राय साहब बोले- "बेटा जो कहना है बेझिझक कहो क्या चाहिए तुम्हें?"
पाखी ने साहस बटोर कर कहा "पापा मुझे नौकरी करना है क्या मैं काम कर सकती हूं?" राय साहब के चेहरे का रंग अचानक बदल गया "क्यों क्या कमी है हमारे पास जो तुम्हें काम करना पड़े?"
" नहीं पापा आप गलत सोच रहे हैं मेरा मतलब मैं आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं।" राय साहब कुछ गुस्से से बोले-
"यह सब फिजूल की बातें हैं इनमें वक्त न गंवाओ और सिर्फ अपने घर-संसार के प्रति जिम्मेदारियां निभाओ इन फिजूल बातों में अपना समय नष्ट ना करो यदि मैंने तुम्हें काम करने दिया तो समाज में सब लोग क्या कहेंगे हमारी कितनी थू -थू होगी, आखिर हमारे खानदान की कुछ मर्यादा है सम्मान है समाज में। लोग क्या कहेंगे?"
" पर पापा अभिजीत ने कहा कि मैं अपनी कंपनी में भी काम कर सकती हूं ।"
"अच्छा!! ऐसा कहा नवाबजादे ने" राय साहब ने तुरंत अभीजीत को बुलवाया "यह सब क्या है अभिजीत बहू यह सब क्या कह रही है?"
" पापा तो इसमें हर्ज ही क्या है?"
" तुम दोनों अभी नादान हो कुछ दुनियादारी नहीं समझते बस इतना जान लो बहु नौकरी नहीं करेगी और हमारी कंपनी में भी काम नहीं करेगी।"
अभिजीत ने तर्क दिया "पर पापा आप ही तो नारी सशक्तिकरण पर जोर देते हैं फिर पाखी को क्यों नहीं आगे बढ़ने दे रहे?"
रे साहब गुस्से से लाल पीले होकर बोले "यह सब दुनियादारी की बातें हैं, तुम नहीं समझोगे बस बहुत हो गया बहुत फर्क पड़ता है समझे ।"
"पर पापा!"
" अभिजीत!!! एक बार कह दिया ना यह नहीं होगा क्या तुम्हारी मां ने काम किया बाहर जाकर क्या वह पढ़ी-लिखी नहीं है बस बहुत हुआ अब आज के बाद इस विषय पर कोई चर्चा नहीं होगी।"
अभिजीत पिता की घुड़की सुनकर सिर झुकाए चला गया । पाखी यह सब कुछ चुपचाप खड़ी देखती रही थी वह हतप्रभ रह गई यह देख कर कि यही वो सम्मानीय राय साहब हैं जिनका समाज में इतना नाम है, जिनकी दरियादिली और नारी के प्रति सम्मान की भावना के लिए सदैव सराहना होती रहती है हर पेपर में हर मैगजीन में टीवी में आने वाले इंटरव्यूज में छाए रहते हैं क्या यह सब एक झूठ दिखावा, छलावा, आडंबर है?
कितना नकली है यह सब जिस चेहरे को सत्य माना उस पर तो मुखौटा लगा है जो आज के सामने उतर गया।
