मॉर्निंग वॉक
मॉर्निंग वॉक
मॉर्निंग वॉक पर निकले कुछ बुद्धिजीवी लोग देश की बिगड़ती व्यवस्था पर बतियाते हुए अपना आज़ का मॉर्निंग वॉक पूरा कर रहे हैं। लंबी-चौड़ी डींगे हाँकते हुए सभी पसीने से सराबोर होकर कभी सरकार को गरियाते हैं तो कभी सरकार की नीतियों को।
कोई कह रहा...सरकार देश की गिरती अर्थव्यवस्था पर ज़रा भी ध्यान नहीं दे रही। तो कोई कह रहा...सरकार को अपनी जनता की जरा भी परवाह नहीं है। कोई कह रहा यह अब तक की सबसे निकम्मी सरकार है। यदि ऐसी ही दशा रही तो आने वाले दिनों में हमारी गिनती विकासशील देशों में भी नहीं हो पाएगी।
आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला ज़ारी है। इन सभी बुद्धिजीवियों के पीछे एक अनपढ़ बुजूर्ग भी मॉर्निंग वॉक पर निकले हैं। परंतु वह इन सब की चर्चा-परिचर्चा से दूर है। वह गप्पें नहीं हाँक रहा वह सरकार को नहीं गरिया रहा। वह किसी पर भी अपनी भड़ास नहीं निकाल रहा है। वह तो सिर्फ रात भर से बिज़ली के खंबों पर जल रहे बिज़ली के बल्बों का स्वीच ऑफ करते हुए अपना मॉर्निंग वॉक पूरा कर रहा है।