मंदला

मंदला

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एक बार एक बुढि़या थी । वह कई दिनों से अपनी बहन के यहां जाने की सोच रही थी । सो एक दिन उसने निश्चय किया और चल पड़ी अपनी बहन के यहां । रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था । रास्ता पैदल जाने का था और बिल्कुल सुनसान बीहड़, झाड़ झंखाड़, पथरीला, रेतीला रास्ता था वह । बुढि़या बेचारी करती भी तो क्या ? बहन से मिलने की इच्छा जो थी । अपनी बहन से मिलने के लिए वह हर जोखिम उठा सकती थी । बुढि़या राम का नाम लेकर चल पड़ी ।

रास्ते में बुढिया को एक गीदड़ मिला । वह गीदड़ उस बुढि़या को देखकर कहने लगा -

बुढि़या - बुढि़या, मैं तो तुझे खाऊंगा ।

बुढिया डर गई मगर हिम्मत बांधकर कहने लगी - ना भाई, जीजी के जाऊं, मोटी - झोटी होके आऊं, जब खाईए

गीदड़ - चलो ठीक है । तुम जा सकती हो । पर जल्दी आना । मैं यहीं पर तुम्हारे रास्ते में मिलूंगा ।

आगे चलने पर बुढिया को भालू मिला । वह भालू उस बुढिया को देखकर कहने लगा -

भालू - बुढि़या - बुढि़या, मैं तो तुझे खाऊंगा ।

बुढिया ने सोचा इससे कैसे बचा जाए । वो तो गीदड़ था सो मान गया । मगर उसने सोचा जो होगा सो देखा जाएगा । इसे भी वही बात कहती हूं जो गीदड़ को कही थी । सो वह कहने लगी -

बुढिया - ना भाई, जीजी के जाऊं, मोटी - झोटी होके आऊं, जब खाईए ।

यह सुनकर भालू ने कहा - चल ठीक है जा और हां, जल्दी आना ! मैं यहीं पर तुम्हारा इंतजार करूंगा ।

इस प्रकार से भालू ने भी उस बुढि़या का रास्ता छोड़ दिया । अब बुढि़या आगे चलने लगी । वह डरते - डरते आगे बढ़ी चली जा रही थी । तभी रास्ते में उसे एक शेर मिला । वह शेर उस बुढि़या को देखकर कहने लगा -

शेर- बुढि़या-बुढि़या, मैं तुझे खाऊंगा । बहुत दिनों के बाद आज मानव मिला है खाने को । आज मैं तुझे नही छोडूंगा ।

अब तो शेर को देखकर बुढि़या थर-थर कांपने लगी, मगर हिम्मत से काम लेते हुए वह शेर से भी कहने लगी -

बुढि़या- ना भाई, जीजी के जाऊं, मोटी-झोटी होके आऊं, जब खाईए ।

शेर ने सोचा अब तो बुढि़या के शरीर की जो खाल है वो भी हड्डियों से चिपकी हुई है । सो खाने में इतना मजा नही आयेगा । इसे मोटा होकर आने दो फिर खाने में अलग ही मजा आयेगा । उसने बुढि़या से कहा -

शेर- ठीक है तुम जा सकती हो और हां, जल्दी आना ! मैं यहीं पर तुम्हारा इंतजार करूंगा ।

बुढि़या अपनी बहन के यहां पहुंच गई । बहन ने अपनी उस बुढि़या की खूब आवभगत की । और खूब सेवा की । क्योंकि वह बुढि़या उसकी छोटी बहन थी। वह बुढि़या अपनी बड़ी बहन के यहां करीब दो महीने रूकी । बड़ी बहन अपनी छोटी बहन को खूब खाने को देती । मगर वह मोटी न होती । एक दिन बड़ी बहन कहने लगी -

बड़ी बहन- अरी बहन मैं तुझे अच्छे-से-अच्छा खाने को देती हूं । अच्छा पिलाती हूं । फिर भी तु है कि सूखती ही जा रही है । क्या बात है । मुझे बता । तुझे किस चीज की फिक्र है ? तु आई थी उससे भी कहीं ज्यादा बोदी होती जा रही है ।

यह सुनकर वह बुढि़या अपनी बड़ी बहन से कहने लगी -

बुढि़या- बहन जब मैं आ रही थी तो रास्ते में मुझे कई भयानक जंगली जानवर मिले । जिन्होंने मुझे खाना चाहा । मैं उनसे यह कहकर आई हूं कि जब मैं वापिस आऊं । तभी मुझे खाना । अब वो जानवर मुझे नही छोड़ेगें । यह सुनकर उसकी बहन बोली -

बस इतनी सी बात हैं। तु घबरा मत। मैं तेरे लिए खाती के यहां से एक मंदला घड़वाकर दूंगी। जिसके अन्दर बैठने पर वे जीव तेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगें।

अब तो वह बुढि़या बहुत खुश हुई। कुछ दिन बाद उसने अपनी बहन से विदाई ली और मन्दले के अन्दर बैठकर अपने घर की ओर चलने लगी। अब रास्ते में वह वन लगता था वहां पर शेर बुढि़या के इंतजार में खड़ा था। जब उसने देखा कि बुढि़या आ रही हैं तो वह बहुत खुश हुआ। जब वह बुढि़या नजदीक पहुँची तो वह शेर कहने लगा कि बुढि़या अब तो मैं तुम्हें खाऊँगा ही। तब वह बुढि़या कहने लगी कि - कहाँ की बुढि़या कहाँ की तु चल मेरे मंदले चरक चूँ। मंदला आगे निकल गया। और शेर देखता रह गया वह कुछ भी न कर सका सिवाय हाथ मलने के।

आगे चलने पर बुढि़या को वह भालू मिला वह भी बड़ी बेशब्री के साथ बुढि़या की बाट जोह रहा था। वह भी बुढि़या को देखकर कहने लगा कि बुढि़या अब तो तुम मोटी होकर आई हो अब तो मैं तुम्हें जरुर खाऊँगा। बुढि़या बोली - कहां का तु, कहां कि बुढि़या चल मेरे मन्दले चर्रक चूँ। बेचारा भालू भी एकाएक देखता रह गया। और मंदला आगे निकल गया।

आगे चलने पर बुढि़या ने देखा िकवह गीदड़ भी अभी तक उस रास्ते पर ही खड़ा था वह भी औरों की तरह बुढि़या से बोला - बुढि़या-2 अब तो मैं तुझे खाऊँगा ही। बुढि़या बोली - कहां की बुढि़या, कहां का तु। चल मेरे मन्दले चर्रक चूँ। मंदले को आगे निकल निकलता देख वह गीदड़ उस मन्दले पर टूट पड़ा। इससे मन्दले के टुकड़े-2 हो गये। अब तो बुढि़या डर गई मगर जल्दी ही वह संभल गई। वह गीदड़ से बोली देख भई तु मुझे वैसे ही खाना। पहले तो यहां पर यह रेत इकट्ठा करके एक ढेर बना ले। मैं उस पर बैठ जाऊंगी तब तु मेरे पैरों से खाना शुरू करना।

गीदड़़ ने जल्द ही रेत इकट्ठा किया और बुढि़या को उस पर बैठा कर उसके पैरों को खाने वाला ही था कि बुढि़या ने रेत की मुट्ठी भर कर गीदड़ की आँखों में झोंक दिया। अब गीदड़ आँखें मसलने लगा। इतना मौका ही बुढि़या के लिए बहुत था वह भाग निकली इस प्रकार बुद्धि का इस्तेमाल कर के बुढि़या सही सलामत अपने घर पहुँच गई।


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