Mirha

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तारीख़ थी 12 मार्च 2011, गर्मी के दिन जिनकी शामें खुशनुमा हुआ करती है, ढलता सूरज उस शाम को और हसीं बना रहा था, लेकिन मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर अफरातफरी के माहौल में इस शाम की खूबसूरती को पल भर निहारने की फुर्सत किसे थी। सब रोज़ की तरह जल्दी में थे, कोई घर जाने के लिए लोकल ट्रैन की राह देख रहा है तो कोई किसी का इंतज़ार कर रहा था, इतनी भीड़ में भी सब तन्हा थे, लेकिन एक लड़का और लड़की, इस शोर से बेपरवाह होकर बस अपनी दुनिया में खोये हुए थे। धीमी सी मधुर आवाज़ में उनके ठीक पीछे वाले टी -स्टाल में रेडियो पर गीत चल रहा था।


"चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था "

अचानक ख्यालों में खोए हुए उस लड़के का ध्यान गाने की ओर जाता है, उसके साथ बैठी हुई खूबसूरत लड़की जो उसके बैग में कुछ ढूंढने में मशरूफ है, प्यार से उसकी तरफ देखकर गाने की आगे की पंक्तिया गुनगुनाने लगता है।


"हाँ तुम बिलकुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था !"

मिरहा ( शर्माती और मुस्कुराती हुई ) - "क्या हुआ तुम्हें रिहान? जब से यहाँ बैठे हो बस सामने वाले प्लेटफार्म को देखे जा रहे हो और अब मुझे देखकर गाना भी गुनगुना रहे हो, जनाब की तबियत को ठीक है ना !"

रिहान ( हलकी मुस्कुराहट के साथ लम्बी आह भरते हुए) - "बस यूंही..उस प्लेटफार्म को देखो, वहीं मैंने तुम्हें पहली बार देखा था। तुम अकेली सहमी सी, बार -बार अपनी घड़ी देखती हुई ट्रैन का इंतज़ार कर रही थी। तुम्हारा वक़्त कट नहीं रहा था और मेरा वक़्त तुम्हें देख जैसे थम सा गया था, उस दिन से तो जैसे तुम्हें बिना देखे रह पाना नामुमकिन सा हो गया, हर रोज़ शाम को उसी वक़्त तुम्हारा दीदार करने आ जाया करता था और एक तुम थी जिसकी मुझ पर निगाह ही नहीं पड़ती थी।"

मिरहा ( इठलाती हुई ) - "तुम भी ना ! ऐसा नहीं है की मैंने तुम्हें देखा नहीं था, मुझे इल्म हो गया था की कोई पागल है जो रोज़ उस तरफ के प्लेटफार्म से मुझे देखता है, शुरू में तो मैं घबरा ही गई थी बाबा ! लेकिन तुम्हारे देखने के तरीके में प्यार और इज़्ज़त की झलक थी, एक अपनापन सा था। (ज़ोर से हँसते हुए ) कुछ दिनों बाद तो मुझे ये बात परेशान करने लगी थी की या अल्लाह, ये लड़का बस देखता ही रहेगा या कभी आकर बात भी करेगा।"

रिहान ( अपनी हँसी रोकते हुए ) - "क्या करता, हिम्मत ही नहीं जुटा पाता था ( ये कहते हुए रेहान मिरहा का हाथ थाम लेता है और दोनों करीब आ जाते है)

उस प्लेटफार्म पर आते जाते लोग रिहान को घूर रहे थे, वो इसे लोगों का जलना समझ कर और भी ज़्यादा इठलाते हुए मिरहा के करीब आकर उसके चेहरे से जुल्फ हटाने लगा।"


सामने के प्लेटफार्म पर दादर से आयी लोकल ट्रैन से एक सामान्य कद काठी का लड़का बाहर आया, जिसके बढ़े हुए भूरे रंग के बाल और हाथ में टैटू देख जान पड़ता है जैसे कोई कॉलेज का विद्यार्थी हो , उसकी नज़र दूर से रेहान पर पढ़ते ही मानो जैसे उसकी साँसे थम गयीं, वो भागता हुआ स्टेशन परिसर से बाहर निकल गया।

स्टेशन परिसर से थोड़ी ही दूर माँ दुर्गा के एक भव्य मंदिर में शाम की आरती संपन्न हुई थी, मंदिर के पुजारी भक्तों को प्रसाद देने के लिए आगे बढ़े तो उनका रास्ता अपनी बड़ी मूछों को ताव देते हुए, माथे पर लाल तिलक लगाए, सफ़ेद कुरता पहने एक 32 साल के रघु नामक युवक ने रोका।

रघु (अपनी दाढ़ी को सहलाते हुए ) - प्रणाम पंडित जी, हमसे पहले किसे प्रसाद देने जा रहे हैं, भूल गए क्या? हर शाम आरती की बाद प्रसाद सबसे पहले हम और हमारे दोस्त ग्रहण करते हैं। आपके लिए लड़ कर मंदिर के सामने से दारु की दुकान हटवाई, दो चार के हाथ पैर भी तोड़ने पड़े और आप हैं की..


पुजारी ( थोड़ा घबराते और बीच में बात काटते हुए ) - "अरे रघु भैया, आप भी क्या कह रहे हैं, आपसे ज़्यादा महत्वपूर्ण कोई और हो सकता है भला, छोड़िये सब लीजिए प्रसाद लीजिए !"

रघु सब दोस्तों के साथ प्रसाद बाँटा, उसकी नज़र किनारे खड़े लड़के पर पड़ी।

रघु - "अरे समीर ये कौन है?"

समीर -" ये मेरे मामा का लड़का है रवि, छुट्टियों में यहाँ घूमने आया है।"

रघु( ठहाका लगाते हुए ) - "अच्छा है, आज इसको अपने स्टाइल में मुंबई दर्शन कराते हैं।"

सभी दोस्त हँस रहे थे तभी जो लड़का स्टेशन से भागा था, हाँफते हुए रघु के सामने खड़ा हो जाता है और कुछ कहने की कोशिश करता है लेकिन सांस फूलने के कारण कह नहीं पा रहा था।

रघु ( गंभीर और रौबीली आवाज़ में ) - "क्या हुआ बोल बंटी"

बंटी - "रघु वो....."

रघु - "बोलेगा या लगाऊं उलटे हाथ का एक"

बंटी - "रघु, वो स्टेशन पर मैंने रेहान को देखा"

ये सुनते ही सन्नाटा सा छा जाता है, रघु ने बस अपनी आँखों से इशारा किया और गुस्से में अपने दोस्तों के साथ स्टेशन की ओर चल पड़ा। इस बात से बेखबर रिहान और मिरहा अपनी प्यार की बातों में खोए हुए थे।


मिरहा - "पता है? मुझे तो लगा था की तुम कभी मुझसे बात करने नहीं आओगे, फिर एक दिन जब मैंने तुम्हें खुद से थोड़ी दूर पे खड़े देखा तो क्या बताऊँ मेरी तो जान ही निकल गई थी !"

रिहान - "मोहतरमा, आपसे ज़्यादा बुरा हाल था मेरा।"

मिरहा ( रिहान की आँखों में देखते हुए ) - "पर एक बात कहूं तो तुमसे पहली मुलाक़ात में ही मैं अपना दिल हार गई थी, जिस नज़ाकत से तुमने मुझसे दोस्ती करने की इज़ाज़त मांगी थी... उफ़ उसी पल से तुम्हारी हो गई थी मैं।"

रिहान - "ओह हो, काफी अच्छी अदाकारी कर लेती हो, उस वक़्त शक्ल तो ऐसी बनायी थी तुमने जैसे मुझ पर एहसान कर रही हो, और सिर्फ तभी नहीं जब कहीं हम साथ घूमने जाते थे, सिनेमा देखने जाते थे और यहाँ तक की हमारे निकाह के रोज़ भी ऐसा लग रहा था जैसे मुझ पर तरस खा कर मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बन रही हो।"

मिरहा (ठहाके लगाते हुए ) - "हाँ तो तरस ही खाया तुम पर, ये सोच के की बिचारे लड़के से कौन शादी करेगा?"

रेलवे स्टेशन के ब्रिज से बंटी ऊँगली का इशारा कर रघु को दिखाता है, रिहान को देखकर रघु और उसके दोस्त आक्रामक रूप से दुगनी तेज़ी से रिहान की तरफ बढ़ते हैं।

रिहान - "अच्छा बेग़म तो ये बात है, सुनते वक़्त जी तो चाह रहा था की तुम्हें इस बात का कोई अच्छा जवाब दूँ, लेकिन सच कहूं तो मेरा दिल जानता है की तुमने सच कहा, मैं कभी उम्मीद नहीं कर सकता था की तुम जैसी कोई लड़की मेरी बंजर ज़िन्दगी में आकर उसे हसीन बना देगी, मुझे इतना समझेगी, इतना प्यार करेगी, मैं बहुत खुशनसीब हूं.. जो तुम मुझे..."

रघु प्लेटफार्म पर पहुंच कर थोड़ी दूरी से, ज़ोर से रिहान का नाम पुकारता है।

रिहान (चौंक कर ) - "अरे रघु....."

रघु ( रिहान के थोड़ा करीब जाकर ) - "तू यहाँ कब से बैठा है और कर क्या रहा है यहाँ? तुझे आज डॉक्टर के पास जाना था ना"

रिहान - "क्या बोल रहा है तू, मैं तो बस यहाँ मिरहा के साथ वक़्त बिता रहा था, तू किस डॉक्टर की बात कर रहा है? मैं समझा नहीं"

रघु ( रिहान के एकदम करीब आकर, उसके कंधे पर हाथ रख, जिन कुर्सियों पर वो बैठे थे, वहां इशारा करते हुए कहता है ) -"भाई... वहाँ पर कोई नहीं है, मिरहा को इस दुनिया से गए 6 साल हो चुके हैं।"

रिहान ने चौंक कर मुड़कर देखा, वहां सच में कोई नहीं था, रिहान की आँखों से एकाएक आँसू टपकने लगे और हाथ पैर सुन्न से हो गए, कांपते होंठ, लम्बी साँसे और उन आँसू को लिए चारों तरफ मिरहा को ढूंढ रहा था उसे पागलों की तरह आवाज़ दे रहा था।


रिहान ( गीली पलकें और हकलाती आवाज़ में ) - "र.. र.. रघु, वो यहीं थी मेरे साथ, मेरा यकीन कर यार"

रघु की आँखों से भी आँसुओं की धारा बहने लगती है, वो रिहान को कस कर गले से लगा लेता है, रघु के गले लगाते ही रिहान फूट - फूट कर रोने लगा। वहाँ खड़े सभी दोस्तों की आँखें नम हो गयीं। कुछ देर बाद सारे दोस्त रिहान को लेकर वहां से चले गए। रवि ये सब देख हतप्रभ था, उसके ज़हन में एक साथ कई भाव और सवाल आ रहे थे। घर पहुंच कर झिझकते हुए उसने समीर के सामने अपने सवाल रख दिए।

रवि - "समीर भैया, रिहान को क्या हुआ है और ये मिरहा कौन है?"

समीर ( लम्बी सांस लेते हुए, गंभीर मुद्रा में ) - "रिहान हमारे ग्रुप की जान था, हमेशा सबको हँसाते रहने वाला एक ज़िंदादिल इंसान, किसने सोचा था की ज़िन्दगी उस से इस कदर खफा हो जाएगी। आज से 6 साल पहले 11 जुलाई को उसके जन्म दिन के रोज़ उसकी बीवी मिरहा जिसे वो दिलो जान से चाहता था, रिहान के लिए तोहफ़ा लेने, अपने काम से जल्दी लौट कर लोकल ट्रैन से वापस आ रही थी और 11 जुलाई 2006, मुंबई के लिए वो काला दिन था जब लोकल ट्रेनों में सिलसिलेवार धमाकों में करीब 209 लोगों की मौत हुई थी, मिरहा उन में से एक थी।

उसके जिस्म के टुकड़ों को समेट कर एक थैली में भर के पुलिस वालो ने दे दिया था, रिहान को ऐसा सदमा लगा की वो आज भी इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाया, कई जगह इलाज कराया पर कोई फायदा नहीं, मिरहा आज भी उसके लिए ज़िंदा है।"


यह सुनकर रवि का भी गला भर आया, समीर ( दीवार पर टंगी, दोस्तों के साथ ली गई तस्वीर में रिहान को एकटक देखते हुए, रुंधे गले से ) - "क्या बिगाड़ा उन दोनों ने किसी का? जिहाद के नाम पर इस घिनौने काम को अंजाम देने वालों ने एक पांच वक़्त की नमाज़ी लड़की के साथ कितने लोगों की जान ले ली और ना जाने कितने घर बर्बाद कर दिए। इस वहशी दुनिया के बाद भी अगर कोई दुनिया है, तो मेरी भगवान से यही प्रार्थना है की उस जहान में रिहान और मिरहा को कोई अलग ना पाए।"



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