मीठा रिश्ता
मीठा रिश्ता
आज मालिनी जी कुछ चिंतित नजर आ रही थी। एक उधेड़बुन उनके दिमाग में चल रही थी, तभी मालिनी जी के पति विनोद जी आ गए| मालिनी जी को चिंतित देखकर विनोद जी ने पूछा,
"मालिनी कहां खोई हो, क्या हुआ?"
"अरे आप कब आए?"
"मेम साहब जब आप पता नहीं कौन से ख्यालों में खोई हुई थी तभी आया" मुस्कुराते हुए विनोद जी ने कहा।
"अच्छा आप पहले फ्रेश हो जाइये, मैं चाय लेकर आती हूं, फिर साथ में बात करते हैं।"
असल में मालिनी जी अपनी बेटी राहत के लिए आए हुए रिश्ते के बारे में सोच विचार कर रही थी। वह तय नहीं कर पा रही थी कि इस रिश्ते को हां कहें या ना। वैसे रिश्ता बहुत अच्छा है, अंकुश बहुत ही अच्छा होनहार लड़का है और बहुत ही अच्छी नौकरी में भी है| घर में बस अंकुर और उनके पिताजी ही हैं, पिताजी रिटायर हो चुके हैं। पर परिवार के नाम पर घर में यही दोनों मर्द हैं, घर में कोई भी औरत नहीं है। अंकुश की मां बहुत पहले ही उन्हें छोड़कर जा चुकी हैं। बिना औरत का घर कैसा होता है मालिनी जी समझ रही थी। अगर बेटी राहत की शादी वहां करती हैं तो उसको तालमेल बिठाने में शायद परेशानी हो।
अंकुश और उनके पिताजी वाकई में बहुत सज्जन व्यक्ति हैं, मना करने का कोई कारण भी नहीं मिल रहा| बस इसी उधेड़बुन में वह चाय बनाकर विनोद जी के पास ले गई। विनोद जी ने समझाया कि देखो इतने सज्जन लोग मिल रहे हैं तो हमें निश्चिंत होकर अपनी बेटी की शादी वहां करनी चाहिए। बाकी हमारी बेटी खुद ही इतनी समझदार है, सब कुछ अच्छे से व्यवस्थित कर लेगी। और फिर राहत को भी इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं है| वह भी तो तैयार ही है ना। तो बस ज्यादा मत सोचो, भगवान का नाम लो और यह शुभ कार्य को कर डालो।
राहत और अंकुश की शादी बहुत ही धूमधाम से हो गई और राहत अपने ससुराल को आ गई। मालिनी जी ने राहत को बहुत अच्छे संस्कार दिए थे, जिसकी वजह से राहत को उस बिन औरत के घर में तालमेल बिठाने में कोई परेशानी नहीं हुई। जिंदगी की गाड़ी खुशियों के साथ चलने लग गई। कुछ दिन बाद मालिनी जी ने राहत को घर बुलाया। राहत कुछ ही देर के लिए घर आई थी। मालिनी जी ने पहले तो उसका बहुत लाड़ किया और उसकी खातिरदारी की फिर बोली "चल बेटी थोड़ी देर हम लोग भी गपशप करते हैं|"
"हां तो बता कैसा चल रहा है तेरे घर में, अंकुश जी कैसे हैं? और तुम्हारे ससुर जी कैसे हैं, सब खुश तो हैं ना तुझसे?"
"मां मैं बहुत खुशकिस्मत हूं जो मुझे अंकुश जैसे पति और पापा जी जैसे पिता मिले हैं| पता है मां, पापा जी मेरे साथ में खाना बनाते हैं"| मुस्कुराते हुए राहत बोली।
"अरे!यह क्या! तुम उनसे खाना बनवाती हो राहत?" हैरानी से मालिनी जी तेज स्वर में बोली।
"उफ़ मां पूरी बात तो सुनो, जब मैं किचन में खाना बनाती हूं पापा जी आ जाते हैं और फिर इतनी सारी बातें करते हैं मुझसे कि मेरा खाना कब बन जाता है मुझे पता ही नहीं लगता। लगता है जैसे हम दोनों ने साथ में मिलकर ही खाना बनाया है। फिर मैं और पापा मिलकर अंकुश की बहुत सारी शिकायतें और गॉसिप करते हैं। पता है मां, मैं और पापा मिलकर दुनिया जहान की बातें करते हैं। जो बात पापा जी अंकुश या किसी और से नहीं कह पाते वह मुझसे कहते हैं| पापा जी हर बात के अंत में मां (सासूमां) को याद करना नहीं भूलते, हर बात में वो यह कहते हैं सुमन होती तो ऐसा कहती सुमन होती तो ऐसा करती। बहुत प्यार करते हैं वह सासू मां से। पापा जी तो मेरे दोस्त बन गए हैं, मेरे फिलॉस्फर मेरे गाइड। मैं उनकी बातें गौर से सुनती हूं और वह मेरी बातों को बहुत गौर से सुनते हैं। मां मैं उनके प्यार भरे रिश्तो की पोटली को बहुत प्यार से संजोती हूं
मालिनी जी राहत की बातें सुनकर और राहत का मुस्कुराता चेहरा देखकर गर्व से भर उठी, अपनी बेटी की परवरिश और उसकी समझदारी पर। बड़े बुजुर्गों की छत्रछाया बहुत नसीबों से मिलती है। उनके पास हमें देने के लिए अमूल्य निधि के रूप में उनका प्यार वह अनुभव का भंडार होता है, जो वह हमें देते हैं और उस अमूल्य निधि की हमें कद्र करनी चाहिए। बस वो हमसे तवज्जो और प्यार चाहते हैं बदले में और वैसे भी मां बाप से बढ़कर दुनिया में कुछ भी नहीं। वे हमें अपना पूरा जीवन देते हैं, बदले में उनके इस अंतिम पड़ाव में हमें उनको खुशियां जरूर देनी चाहिए।
