मेरी संजीवनी
मेरी संजीवनी


संजीवनी बन तुम,कब आई जीवन में,
पता नहीं चला मुझे, अहसास हुआ है।
घर-बार छोड़कर, घर-बार सम्हाला है,
तेरे आने से जीवन, विकसित हुआ है।
नारी बन कर आई, संजीवनी बनी अब,
घर मेरा महकाया, दिल खुश हुआ है
घुल मिल गई यहां, दूध पानी एक हुआ
नहीं कोई चमत्कार,,परिश्रम हुआ है।।