मेरी माँ की अवैज्ञानिकता
मेरी माँ की अवैज्ञानिकता
माँ: "विवेक, विवेक उठो जल्दी से रेडी हो जाओ बुढ़िया माई के मंदिर चलना है।"
(गोरखपुर का एक बहुत ही प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर, जिसके बारे में मान्यता है की वहां मांगी हुई सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।)
माँ ने मुझे जबरदस्ती नींद से जगाकर नहाने को बोला, मैंने उन्हें आग्रह किया कि : "माँ हम 11 तारीख को चल चलेंगे ना, आज मत चलो। मुझे सोने दो कल मेरी परिक्षा है।"
माँ: "चुप रहो तुम, जितना कह रहे हैं उतना सुनो। चुपचाप से नहा लो और चलो, और भाई को जगा दो गाड़ी वही चलाएगा ना।"
मैं मन मानकर आंखें मींजते हुए उठा। मुझे पता था कि वो सिर्फ मेरे परीक्षा की वजह से मुझे लेकर जाना चाह रही है मंदिर। उसके मंदिर जाने के पीछे और कोई वजह नहीं है।
मैं भी फटाफट से उठकर तैयार हो गया। सब गाड़ी में बैठ गए और मंदिर के लिए निकल गए।
प्रसाद की दुकान पर मेरी माँ : "भैया बस एक ही नारियल देना, बाकी तीन जगह फूल और माला दे दो। विवेक तुम अपने हाथ में नारियल और बाकी पूजा का समान लो, और ये लो एक सौ एक रुपए, पंडित जी के पैर छू लेना और ये पैसे उनको चढ़ा देना। भैया मुझे एक फूल माला दे देना।"
मैं अपनी माँ के मन की बात समझ रहा था। उसे सब कुछ पता है, की बिना मेहनत के कोई परीक्षा नहीं निकलने वाली, लेकिन हम सब लोगो में मेरी पूजा सबसे ज्यादा कारगर को इसलिए उसने मुझे ही नारियल दिलाया, ऐसा वो कभी नहीं करती है, परन्तु जब भी मेरी परीक्षा होती है, ऐसा कारनामा करती है वो, वही आज भी किया। अजीब है ना?
मेरा मन यह सोचकर हमेशा मुग्ध हो जाता है कि एक बच्चे कि बात आते ही माँ का सारा ज्ञान और वैज्ञानिकता खत्म हो जाती है। किसी भी तरीके से वो सोचती है कि उसका बेटा सफल रहे और सबसे उन्नत रहे। वो पूजा भी करती है तो ऐसे सुरीले स्वर में करती है जैसे भगवान को बुला के ही मानेगी।
मैं भी यही सोच कर हर बार उसकी बातों में आ जाता हूं, यद्यपि कभी कभी यह मेरे लिए ठीक भी नहीं रहता, पर उसकी खुशी मेरे लिए सर्वाधिक प्रिय होती है, हालांकि वो सब कुछ मेरे लिए ही करती है, फिर भी उसका में असंतुष्ट रहता है, और हर बार वह यही प्रक्रिया अपनाती है और में हर बार ऐसे ही उसे परेशान करके मानता हूँ।