मेरी बहू कमाल की
मेरी बहू कमाल की
आजकल की दुनिया में जात पात की भावना इतनी जहर की तरफ फैल चुकी है कि प्रत्येक मनुष्य केवल अपने जात को बढ़ावा देना चाहता है। इससे हमारे भारत देश में कभी एकता नहीं बन पाएगी। क्यों न इस जात पात की खाई को अन्य जात वर्ग व समाज में कन्यादान कर इसे भरे।
इस कहानी में एक महेश नाम का लड़का है जो बी ए पास है वह अपनी माँ से रिश्तेदारों से अन्य जात की लड़की राधा से शादी करने को ज़िद करते हैं, पर उसके घर वाले हैं माँ पिता अपनी जात की लड़की रामा से शादी करने को ज़िद करते हैं। क्योंकि उसे बहुत ज्यादा मात्रा में दहेज भी मिलेगा वह अपने समाज की लड़की भी मिलेगी।
कहानी गाँव छतरपुर की है तेजू सेठ और उनकी पत्नी सीता देवी खुशी खुशी जीवन यापन कर रहे थे उनका बेटा महेश बीए पास किया हुआ नौकरी की तलाश में दर-दर की ठोकरें खा रहा था, आखिरकार उसके भाग्य के ताले भी खुल ही गए उसे बैंक में बाबू की नौकरी मिल गई घर में खुशी का माहौल छा गया। महेश बाबू के नाम से जाना जाने लगा। सारे गाँव में मिठाई बँटी और ख़ुशियाँ मनाई गयी। महेश की दिनचर्या बदल गयी सुबह उठकर बैंक आना जाना समय पर हर काम करना लेकिन महेश का दिल एकदम साफ पानी की तरह था। महेश बाबू का धीरे-धीरे बैंक में कार्य करने को अच्छा मन लगने लगा महेश बाबू भी शादी ब्याह नहीं किए थे, वह पहले नौकरी की तलाश में थे कि जैसे ही मुझे नौकरी हाथ लग जाएगी वैसे ही हमें किसी अच्छी सुंदर सुशील लड़की के साथ शादी कर लूंगा। दिन पर दिन बीत गए वहीं ऑफिस मे एक चपरासी की लड़की राधा नाम की काम करती थी। महेश बाबू का हाव भाव उसे बहुत अच्छा लगा वह उससे धीरे धीरे प्यार करने लगी, महेश बाबू को भी राधा का भी व्यवहार अच्छा लगा वह भी उससे प्रेम करने लगे हैं। धीरे धीरे महेश के माता पिता के पास खबर आने लगे कि महेश बाबू की शादी मेरी बेटी से कर दो हम इतना पैसा तिलक देंगे लड़की देखने को बुलावा भी आने लगा। महेश बाबू के पिता रिश्तेदारों के साथ लड़की देखने भी जाने लगे उन्हें पास के लगे गाँव सोनपुर के धन्ना सेठ की लड़की रामा पसंद भी आ गयी। ब सभी ने मन में ठान लिया महेश बाबू का ब्याह रामा से ही होगा।
एक दिन की बात है शाम को महेश बाबू काम से घर आया उसके माता पिता ने शादी का प्रस्ताव रखा और बोला कि बेटा रामा की तस्वीर है तुम्हारी शादी उसी से करनी है। आवाज़ सुनते ही मानो पैरों तले से ज़मीन खिसक गई हो, क्योंकि उसके दिल पर किसी और का नाम लिखा चुका था। अपने जीवन में वह संकल्प कर चुका था कि मैं राधा से ही शादी करूँगा शादी की बात की ज़िद सुनकर महेश ने अपने घर वालों को सारी कहानी बताई और बोला कि मैं राधा के अलावा किसी और लड़की से शादी नहीं कर सकता, जिस पर उसी माँ बोली अगर ऐसा हुआ तो तुम्हें घर में रहने नहीं दूंगी।
महेश ने बहुत समझाया लेकिन उसके घर वालों ने एक नहीं सुनी अब महेश बाबू के पैर दो तरफ हो गए उसे कामकाज में भी मन नहीं लग रहा था। उधर राधा को भी सारी बातों की भनक लग गई वह भी उदास रहने लगी, सोच लो अगर मुझ से शादी नहीं हुई तो मैं कुछ भी कर जाऊंगी आखीर मैं तो राधा और महेश अपने घर वालों के खिलाफ मंदिर में शादी कर लिया, तथा राधा अपने ससुराल गयी, जब महेश की माँ अन्य जाति कन्या को अपने घर में देखी तो वह रो कर बोली हमारी मान मर्यादा की सीमा आज सब मिट्टी में मिल गई, "नाक कट गई मेरी" घर से निकलने को उसके माता-पिता ने कहा। महेश और राधा को अलग नजर से देखा जाने लगा, एक कमरा में वे दोनों रहते हैं साथ में अपना बैंक का काम करने जाते थे गाँव समाज सभी उनको हेय दृष्टि से देखते थे। अपने पत्नी राधा से महेश ने वचन मांगा कि अपने जीते जी मेरे घर वालों को कभी यह महसूस नहीं होने देगी कि तुम दूसरी जात की बहू हो। उसके माँ -बाप छुआछूत की भावना उससे मानने लगे, अपना अलग बना के खाते थे। सब अपना अलग अलग हो गया मंदिर जैसे घर लड़ाई का मैदान बन गया राधा को कितनी भी गाली गलौज प्रताड़ना मिलती सब कुछ अमृत समझ कर पी जाती थी।
राधा कामकाज से आने के बाद अपने पति का सेवा फिर गहरी नींद आने के बाद माँ को पैरों को दबाती पिताजी के पैरों को दबा आती है। कभी कभी वह सहम जाती थी कि कहीं जग ना जाये मम्मी पापा और डांटने मारने ना लगे। एक दिन वह पैर दबा रही थी उसकी सासु माँ की आँख खुल गई और बोली अपना चेहरा मुझे मत दिखाना। फिर भी वह बुरा इस बात को नहीं मानी दिन भर महेश बाबू के माँ पिता काम करने चले जाते थे लेकिन शाम को आते तो कुछ अलग परिवर्तन मिलता था घर का अलग ही नज़ारा देखने को मिलता था। घर द्वार झकाझक साफ कपड़े पूरे रस्सी पर सूखते हुए बर्तन साफ मटके में पानी भरे हुए देखकर उन्हें आश्चर्य होता था कि हम लोगों के घर में कौन सब करता है। धीरे-धीरे संदेह हुआ और पता चला कि किसी का कमाल है, इस तरह एक रोज महेश बाबू की माँ को जोर से बुखार आया, राधा रात भर नहीं सोई कभी गर्म पानी तो कभी गिला पट्टी तो सिर दबाती पैर दबाती रही, फिर भी उससे किसी ने बात नहीं की एक शब्द नहीं बोली। एक दिन महेश बाबू की माँ गाँव के बाजार जा रही थी रास्ते में एक तेज दौड़ते हुए बैल आ रहा था नुकीले सिंगे थी वो डर गई और समझ गई कि आज मैं नहीं बचूंगी लेकिन "जाको राखे साइयां मार सके ना कोय" वहीं पर राधा भी सहेली से मिलने आई थी देखी कि माँ जी हैं दौड़ते हुए गई और माँ को सड़क के किनारे खींचकर बचा ली, लेकिन खुद फँस गई वह बैल के पैरों वाले सिंग से बुरी तरह से घायल हो गई। जब महेश बाबू की माँ की नजर राधा पर पड़ी आँख से गंगा निकल पड़ी, राधा के पैर पकड़ ली उसे किसी तरह उठाकर अस्पताल में भर्ती करवाया गया। महेश बाबू की माँ बोली मेरी माँस के टुकड़े-टुकड़े को बेच दो लेकिन मेरे दिल के टुकड़े को बचा लो राधा का इलाज चला धीरे धीरे राधा स्वस्थ हो गयी। महेश बाबू को यह सब बात पता चला तो अत्यंत खुश हुआ गाँव वाले अपने आप पर शर्मिंदा हुये ।
"सासु माँ के मुख से आवाज़ आई मेरी बहू कमाल की।"