मौन
मौन
मौन ज़िन्दगी में कई बार अमृत समान होता है और कई बार मौन हमें विपरीत परिणाम भी देता है। मेरा और मौन का समावेश कुछ ऐसे था के मैंने मौन को अपने लिए एक पर्दे सा समझ लिया था जिसके खीच देने पे सब कुछ ढक सकता है। पर मेरा ये मानना हमेशा सही नहीं रहने वाला था।
एक दिन ऐसी ही एक घटना की वजह बना मेरा मौन।
कहानी उस समय की है जब मैं और मेरे पति दिल्ली में नए नए आए थे।हमारी सोसायटी के पास एक गांव था ,वहां के बहुत सारे लोग हमारे सोसाइटी में काम किया करते। कोई सफाई का कोई माली का कोई ड्राइवर का तो कोई खाना बनाने का।अक्सर सुबह मै सैर पे जाया करती थी। इससे मुझे इस जगह के बारे में बहुत कुछ पता चला।मेरी बिल्डिंग के पास एक फुटपाथ था वह एक यही कोई १२-१३ साल का लड़का रोज बैठा दिखता था। मैं हर रोज उस मासूम को अपने घर की बालकनी से पास के एक फुटपाथ के नजदीक बैठ खाना खाते देखती थी।वो पूरा दिन अख़बार बांट के थक जाता तो वहां कुछ देर आराम कर रोटियां खाता था और फिर पुराने अख़बार इकट्ठा कर उनसे लिफाफे बना बेचने निकल जाता था। कभी उसको देख के गर्व महसूस होता तो कभी मन करता के उसके करीब जा उसे गले से लगा उसका सारा गम दूर कर दूं। फिर एक दिन अचानक से हमारी पार्किंग में सफाई करने वाला राम एक लंबे अवकाश पर चला गया और हमे गाड़ी साफ कराने में बहुत असुविधा हो रही थी। तभी अचानक मुझे उस लड़के का खयाल आया । मैंने वहां जाके उसको पूछा, "सुनो! तुम्हारा नाम क्या है?" लड़का! "मेरा नाम सुंदर है ।",
"क्या करते हो सुंदर तुम?"
"मैं पास की बिल्डिंग में अख़बार डालने का काम करता हूं और बाद में लिफ़ाफे बना के बेचता हूं।"
"अच्छा! चलो अच्छा है । सुनो क्या तुम मेरे लिए काम करोगे ? "
"जी कैसा काम?"
"वो हमारा सफाई वाला छुट्टी पर गया है । कुछ दिन तुम हमारी गाड़ी साफ कर दोगे।"
"जी मैडम जरूर ।"
"ठीक है तो तुम कल से आ जाना ।"
"जी ! "लड़का बहुत खुश नजर आ रहा था। वो रोज मेरी पार्किंग में गाड़ी की साफ सफाई करने आने लगा । चाभियां ले जाता और सफाई करता । एक दिन अचानक मेरे घर में कोहराम मचा हुआ था । आके देखा तो वो मासूम जोर जोर से रो रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या हुआ।मै चुप चाप सब देख रही थी। वो रों रों के कह रहा था साहब मुझे नहीं पता आपका पर्स कहाँ है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था के जिस मासूम को मैं घर लाई थी वो ऐसा कुछ कर सकता है। मेरा विश्वास डगमगा उठा और मैं शांत सब सुनती रही। मुझे लगा मैंने कोई ग़लती कर दी ।पर जब मैंने उसकी आंखो में देखा तो वो मासूम मुझे सच्चा लगा पर मै कुछ बोल नहीं पाई। अगले ही पल उसे काम से निकाल दिया गया। जो मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। पर मौन रहना मेरी मजबूरी थी। उसकी नज़रें मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी।
पर मैं कुछ नहीं कह पाई। अगले दिन मैंने जैसे ही मैले कपड़े मशीन में डालने के लिए उठाए वो पर्स नीचे गिर पड़ा। पर्स देख के मुझे बहुत ख़ुशी हुई ।पर अब देर ही चुकी थी वो मासूम काम पे दुबारा नहीं दिखा। बहुत ढूंढने और पूछने पे पता चला वो गांव चला गया उसका काम छूट जो गया था। उस घटना के बाद मेरा मौन और गहरा हो गया । उसकी वो उदास आंखे जैसे बोलती हो "मेमसाब आप तो कुछ कहो" अब लगता है काश मैं कुछ बोलती तो वो कुछ बेहतर कर रहा होता। अपने दिल पे यकीन करती।
