मानविकता
मानविकता
मैं एक दिन ऐसे ही रात में टहलने गया। नींद नहीं आ रही था। उस समय सड़क में ज्यादा गाड़ी नहीं थी। बहुत सुंदर ठंडी हवा आरही था। कुछ समय चलते चलते । मैंने देखा एक माँ को और उसके के साथ एक साल का बच्चा को। वो अपने बच्चे को चुप करन के लिए का कुछ नहीं किया लोरी सुनाई, कहानियों कही, फिर भी वो रोता रहा। मैंने उस को जरा गौर से देखने के लिए ओस पेड़ के पास छुप के उस की बातें सुनी । वो कह रहती के वो चार दिनों से कुछ नहीं खाया।
हमारे राष्ट्र में एस कितने लोगों है,जिन्हें को दो बक्त की रोटी नसीब नहीं होती। मगर हमारे यहां बिबाह के समय में खाना कचरे में जाते हैं।
क्या एक अच्छा नागरिक की कोई जिम्मेदारी नहीं उनकी मदद करना। मैंने सोचा उसकी अब मद द करनी चाहिए।
हम घर की ओर गए । रोटी और दूदु लेकर उस के पास गए और वो देख कर वोहत खुश हुई। मैं वहां से चला आया । मेरे मन को आत्मतृप्ति मिली।
सच मैं लोगों की मदद करने में जो आनंद मिलता है वो किससे नहीं मिलता।
