मानव की श्रद्धा
मानव की श्रद्धा
वो दिन शायद शनिवार था। मानव को घर जाने की जल्दी थी। ऐसा नहीं था की वो पहली बार घर जा रहा था। पर हर बार की तरह इस बार भी उसे घर पहुँच कर माँ से मिलने की जल्दी थी। तभी बस स्टैंड पे उसे एक साया दिखा। लग रहा था कोई लड़की खड़ी थी। अब मानव ठहरा एक पुरुष तो बढ़ चला उस साये की ओर।
"आप यहाँ बस का इंतज़ार कर रही हैं" मानव कुछ डरते हुए बोला। लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। मानव थोड़ा झेप गया फिर पूछने को हिम्मत ना थी। परंतु फिर भी था तो पुरुष ही फिर बोला "आजकल ठण्ड बहुत बढ़ गयी हैं"। लड़की बिना मुँह खोले बोली"हम्म्म।" मानव का साहस बढ़ गया और बोला "मैं यही पास के मॉल में काम करता हूँ।" "वैसे आपने अपना नाम नहीं बताया।"
"श्रद्धा" वो बोली कुछ ऐसी खनकती आवाज़ में मानो शाम को मंदिर में बजती घंटियाँ। पल भर के लिए मानव को लगा की कोई नदी बह रही हो।
"मैं यही पास के जनता कॉलेज से बी•एड• कर रही हूँ।"
मानव खुश हुआ भारी मन से बस पकड़ कर माँ से मिलने चल दिया।
कुछ दिनों तक यूँ ही श्रद्धा से मुलाकात होती रही दोनों बात करते फिर अपने अपने रास्ते चले जाते।
शायद कुछ सपने भी बुन लिए थे मानव ने श्रद्धा को लेकर।
एक दिन उसने सोचा की आज श्रद्धा से बात कर ही ली जाई।बढ़िया ब्रांडेड कमीज पहनी महंगा डीओ लगाया जिससे लड़कियां इम्प्रेस हो चल पड़ा ये आशिक़ गुलाब का फूल लेकर इज़हारे मोहब्बत करने। श्रद्धा वही स्टैंड पर खड़ी थी शायद आज ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी। शायद प्यार का एहसास किसी व्यक्ति को ज़्यादा खूबसूरत बना देता हैं बजाय की शारीरिक संरचना के जैसे हर माँ के लिए उसका बच्चा सबसे ज़्यादा सुन्दर होता हैं। श्रद्धा के चेहरे पे आज अलग चमक थी। उसने हाथ से एक लिफाफा निकाला और मानव के हाथ में रख दिया। "कल मेरी सगाई थी 1 महीने बाद मेरी शादी हैं।" ईश्वर से। "वो मेरा बचपन का प्यार हैं बहुत मिन्नतों के बाद घरवाले माने हैं।" "मैं चाहती हूँ आपको भी आपका प्यार मिले मानव जी" कुछ छेड़ते हुए वो बोली। "ऐसी दुआ ना करो श्रद्धा क्या पता मुझे प्यार ना मिलने में आपका ही भला हो" मुस्कुराते हुए मानव बोला।" ईश्वर साहब बहुत भाग्यवान हैं" बनावटी मुस्कुराहट के साथ वो बोला। मानव अवाक् था परंतु फिर भी बोला "कांग्रेट्स'।
आश्चर्यचकित मानव इस बात पर था की जैसा उसने सोचा था वैसा कुछ नहीं हुआ। उसका गला रुआंसा नहीं था उसके होश नहीं उड़े थे वो होश में था। शायद उसे सचमुच प्यार हो गया था या वो दीवाना हो गया था
वो मुड़ा और बस में चढ़ गया। आज उसे हर मनुष्य में श्रद्धा की मूरत दिख रही थी। उसे हर मानव से प्रेम हो गया था। शायद येही सच्चा प्रेम हैं जब हर मानव के पास श्रद्धा हो हर मानव में श्रद्धा हो।
श्रद्धा से प्रेम करो हर मानव से होगा।