"मां की पीड़ा"
"मां की पीड़ा"
एक मां जो अपने बच्चो को हर दुख से दूर रखना चाहती है उसको ही अगर किसी पीड़ा में देखना पड़े तो उसके बच्चो पर क्या गुजरती है मैं आपको इस कहानी के माध्यम से बताना चाहूंगी
मेरी मां को ब्रेस्ट में दर्द की समस्या थी हम शुरु में उसे हल्के में ले रहे थे क्युकी हमें नही पता था कि ये दर्द बीमारी में बदल जायेगा । दिन ऐसे ही गुजरते जा रहे थे और मेरी मां का दर्द भी बढ़ता जा रहा था ।मां को अगर दर्द होता तो मां दर्द की गोली लेकर अपना काम कर लिया करती थी।हम चारो भाई बहिनों का ज्यादातर समय स्कूल में ही गुजरता था और छुट्टी के दिन हम सब घर पर रहा करते थे। पापा जो की एकमात्र घर का सहारा थे हमारे घर को चलाने के लिए घर से बाहर अपने काम पर रहा कर ते थे। हम में से किसी को भी ये नही पता था कि मां के स्तन का ये दर्द एक दिन हम सब को रोने पर मजबूर कर देगा। सुरुआत में जब ये दर्द कभी कभी होता था तो इतना ज्यादा दखल नही देता था,न ही हम और न ही हमारी मां को लेकिन जब इसका समय खत्म हो गया और ये दर्द बीमारी में बदल गया तो इसने हम सब के जीवन को ही बदल दया।
दर्द बड़ता गया तो मा हमें बताने लगी हमने मां को हमारे गांव के ही हॉस्पिटल से दवाई दिलाना शुरु कर दिया जैसेही दवाई
खतम होती मां का दर्द शुरू हो जाता हम फिर से मां को हॉस्पिटल ले जाते और फिर वो ही दवाई मां को दिलाकर घर ल आते। कुछ दनो बाद मां के स्तन से गाड़ा दूध अपने आप निकलना शुरू हो गया और इसके निकलने से मां का दर्द भी बढ़ता जा रहा था।
अब तक मां का ये दर्द केवल हमारे घर तक ही सीमित था लेकिन जैसे जैसे मा की तबियत ज्यादा खराब होंगी धीरे धीरे
सबको पता लगने लगा की फलानी को इस प्रकार की बीमारी हो गई है तो लोगो ने हम सलाह देनी शुरु कर दी,की वहां ले जाओ वहां इस बीमारी का इलाज है वहां ले के जाओगे तो ठीक हो जाएगी तुम्हारी मां।
शुरुआत में जसे जैसे लोगो ने सलाह दी तो हम मां को लेकर गए।
दवाई चली मां की लेकिन मां को कोई फायदा नही हो रहा था।
फिर किसी रिश्तेदार ने खा की इनका देसी इलाज करवाओ क्युकी हॉस्पिटल की दवाई से कोई फायदा नही हो रहा था।
तो हमने ये भी किया जहांभी आस पास देसी दवाई मिल
ती थी वहांभी मां को लेकर गए लेकिन कोई फायदा नही हों
था। लंबे समय तक दवाई चलने के बाद भी जब मां को कोई फायदा नही हो रहा था तो लोगो को ये लगने लगा की सैयद ब्रेस्ट कैंसर हो गया है जिसका कोई इलाज नही है
आस पड़ोस और रिश्तेदार भी के प्रति दया भाव दिखाने लगे पर इसी के साथ वो तरह तरह की नकारात्मक ऊर्जा भी मां के दिमाग में भरते जा रहे थे जो की मेरी मां के लिए घातक होने लगी थी।
अब तक सब सामान्य था लेकिन एक टाइम ऐसा आया जिसने हम सब को हिला के रख दिया। अब तक मेरी मां जो की दवाई लेकर घर का काम कर लिया करती थी तो हम सब भी अपनी पढ़ाई में लगे हुए थे लेकिन अब वो दर्द हद से ज्यादा दखल देने लगा था ।
अब मां अपना कब्जा भी नही पहन सकती थी क्युकी अब मां के स्तन को कोई भी चीज नही सुहाती थी अगर मां अपना कब्जा पहन लेती थी तो उनका दर्द बढ़ जाता था ।
इस समय मां ने चारपाई पकड़ ली थी साथ ही हम सब ने अपनी पढ़ाई को एक तरफ रख कर मां की देखभाल में
गए थे
मां का दर्द अब इतना बढ़ गया था की मां रोने लगी थी
अब हमारे पास कोई विकल्प नही था हम भी मां के साथ साथ रोने लग जाते और मां को कहने लगते की मां तुम ठीक हो जाओगे।
इस दौरान हम रिश्तेदार और आस पड़ोस के लोग मां के दिमाग में नकारात्मक ऊर्जा भर दे थे की तु नही बच पाएगी क्युकी उनको लगता था की स्तन कैंसर हो गया था
।लेकिन ऐसा कुछ नही था मां को सिर्फ स्तन में गाठ हो गई थी
मां भी इनके बहकावे में आ जाती और फूट फूट कर रोने लगती और रोती हुई हमसे बोलती की मैं अब नही बचूंगी ये सुनकर बस हम चुप हो जाते और मां के आसू पोछने लगते।
क्युकी अब मां को आसपास की दवाई हम दिला चुके थे तो किसी पड़ोसी ने सलाह दी की जयपुर लेकर जाओ तो पापा वह भी मां को दिखाने लेकर गए।पैसे इतने थे नही की मां का लगातार और किसी अच्छे हॉस्पिटल में इलाज करा सके क्या पापा की कमाई इतनी ही आती थी की वो हमे पढ़ा रहे और हमारा खर्च चला लेते थे हमारे पास कोई जमा पूंजी नही थी।
पापा के पास जितने भी रुपए थे वो लेकर मां को जयपुर लेकर गए वहा मां को दवाई दी गई और खा गया की अगर इस ने कोई फायदा नही होता है तो फिर आपके स्तन के अंदर की जो गाठ है उसको ऑपरेशन करके निकालना पड़ेगा।
मां पापा वह से दवाई लेकर आ गए कोर्स चल रहा था मां का और मिलने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी जो भी मिलने आते अपनी अपनी सी कह कर चले जाते ।
रिश्तेदार भी मोबाइल फोन पर बात कर के मां के समाचार ले लिया करते और साथ में मां के मनोबल को गिरा दिया था की इस बीमारी में कोई नही बचता है ऐसा वैसा कह कर मां के दिमाग में ये भर्म डाल दिया । अब मां भी रिश्ते दार या आस पड़ोस के लोग जो भी कहते उसको ही सच मानने लगी थी। मां को लगने लगा था की अब नही बच पाऊंगी।
हमने ये बात नोटिस की कि मां को लोगो की बातो पे ज्यादा विश्वास होने लगा है मां अब दवाई से ठीक नही हो सकती क्युकी मां के मन में बहम ने जगह लेली है और इस बहम को दूर करना होगा।
मैने और मेरे पापा ने ये निर्णय लिया की अब मां से किसी को भी नही मिलने देंगे क्योंकि वो आकर मां के बहम को हवा देकर जाते है। और साथ ही हमारे रिश्तेदार भी तो हमने फल मां के आस पास के वातावरण को सकारात्मक बनाने की ठानी।
रिश्तेदार के नंबर को ब्लॉक कर दया जो भी आस पड़ोस के लोग मां से मिलने आते उनको भी नही मिलने देते और अब मां को जल्द से जल्द ठीक होने के लिए कहते।
इसका रिजल्ट वास्तव में सकारात्मक रहा अब मां जो लोगो की नकारात्मक बातो को सुनकर रोने लग जाती थी वो रोना बंद हो गया था और मां अब थोड़ा खिली खिली रहने लगी थी।
मां को हम दवाई देते और मां को कहते की तुम जल्दी ठीक हो जाओगी।
कुछ समय के बाद मां की तबियत में सुधार हुआ। और अब मेरी मां बिलकुल ठीक है।
इस कहानी को मै ने अपने सब्दो में इसलिए उतारा है क्युकी अगर इस कहानी को पढ़कर ये पता चलता है की अगर आपने आस पास का वातावरण सकारात्मक हो तो हम बीडीआई से बड़ बीमारी को भी हरा सकते है।।
