लिखा गया इतिहास खून से
लिखा गया इतिहास खून से
प्रताप नाम के एक सिंह ने, अकबर को ललकारा था।
अमरसिंह राठौड़ ने जाके, बैरी घर में मारा था।।
बचा लिया मेवाड़ मुकुट, फिर चेतक ने थे प्राण तजे-
गोरा के धड़ ने भी दुश्मन को, मौत के घाट उतारा था।
लिखा गया इतिहास खून से, वो गाथा तुम्हे सुनाता हूँ
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ
सौगन्ध मुझे इस मिट्टी की, ना महलों में आराम करुँ
चित्तौड़ दुर्ग ना हथिया लुँ, तब तक जंगल में वास करुँ
बैरी का काम तमाम करुँ, सौगन्ध ये आज उठाता हूँ
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ
सलेह् कंवर एक क्षत्राणी, चूण्ड़ा के संग थी परणाई।
कहीं याद ना रण में आ जाऊँ'थी सोच-सोच के घबराई।।
दी अमिट निशानी प्रियवर को' सिर को उपहार बनाता हूँ।
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ।।
बनवीर नाम का दुश्मन जो, पन्ना के सम्मुख आज खडा।
मेवाड़ राज्य का सिहासन भी खतरे में था आज पड़ा।।
कर दिया हवाले सुत अपना, बलिदान की सेज सजाता हूँ।
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ।।
नाम पद्मिनी था उसका, बैरी खिलजी को भायी थी।
ना करूँ वरण मैं किसी गैर का, सौगंध उसने खाई थी।।
सजी चिता जौहर की, अग्निदेव को आज बुलाता हूँ।
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ।।
बना निशाना जांघों को, धोखे से वार किया अरि ने।
दिया काट सर गौरा का, ऐसा प्रहार किया अरिं ने।
कदम बढ़ाये फिर धड़ ने, दुश्मन का सर कटवाता हूँ ।
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ
कट गया पांव चेतक का रण में, फिर भी दौड़ लगाई थी।
बड़ा सामने एक नाला था, आफत कैसी आई थी ।।
हिचका नहीं तनिक चेतक, छलांग एक लगवाता हूँ।
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ।
लिखा गया इतिहास खून से, वो गाथा तुम्हे सुनाता हूँ।
मेवाड़ धरा पावन मिट्टी, इसे नित-नित शीश झुकाता हूँ।।