अनिल कुमार निलय

Inspirational

4.4  

अनिल कुमार निलय

Inspirational

लाॅकडाउन पाॅजिटिव

लाॅकडाउन पाॅजिटिव

3 mins
177


"अथर्व!,अथर्व! कहाँ हो तुम?"यही रट लगाए हुये मीना मुकेश के कमरे में जा पहुंची।मुकेश जो कि एक साॅफ्टवेयर इंजीनियर है और आजकल लाॅकडाउन के चलते वर्क फ्राॅम होम में तल्लीन था।मीना की आवाज ने एकाएक उसका ध्यान तोड़ा।

मुकेश- "क्या हुआ मीना! क्यों पूरा घर सर पर उठा रखा है?" मीना ने बिना मुकेश से नजरें मिलाये ही जवाब दिया-"देखो न मुकेश! सुबह से अथर्व का कुछ पता नहीं है।जाने कहाँ चला गया?" बडबडाते हुए मीना कमरे से बाहर जाने लगी।

मुकेश-"अरे! कमाल करती हो 3 कमरे के घर में कहाँ खो जायेगा अथर्व।देखो दूसरे कमरे में होगा।"मीना ने दो कमरे पहले ही देख लिए थे अब बस आखिरी कमरा बांकी था।जिसमें अथर्व कभी जाता नहीं था,वो कमरा मुकेश के वृद्ध पिता जी का था,जो कि ढालती उम्र के चलते अक्सर ही बीमार रहा करते थे।मीना बिना उस कमरे में गये लाॅन की तरफ तेजी से गई और बिना कुछ देखे-सुने बोली- "अथर्व! तुमको समझ नहीं आता मैं कब से तुम्हें ढूँढ रही हूँ।कब से नाश्ता टेबल पर रखे-रखे _ _ _ " मीना की जबान में अचानक ताला लग गया।जैसे ही उसने देखा कि अथर्व वहाँ नहीं है।डर और किसी अनहोनी के भय से उसके हाथ-पांव कांपने लगे।वो भागती-भागती मुकेश के कमरे में गई और रोते हुए जोर-जोर से अथर्व का नाम पुकारने लगी।यह सब देख मुकेश तुरंत लैपटॉप टेबल में ही छोड कर मीना की ओर भागा।

"मीना! क्या हुआ मीना?"मुकेश ने पूंछा।मीना रोते हुए बोली- "मुकेश! अथर्व को पूरे घर में ढूंढ लिया कहीं नहीं मिल रहा है।मुझे डर लग रहा है कहीं कुछ_ _ _" मुकेश ने बीच में ही टोंका।अरे! कुछ नहीं हुआ होगा यहीं-कहीं होगा।तुमने शर्मा जी से पूँछा?"अच्छा तुम रूको मैं फोन से पूँछता हूँ।पक्का अर्नव के साथ वहीं खेल रहा होगा।"

"हैलो!शर्मा जी कैसे हैं आप?"मुकेश ने फोन उठते ही सवाल किया।शर्मा जी-"हम अच्छे हैं।आप बताइये कैसे हैं?कैसे कट रहा है लाॅकडाउन? ऑफिस वाले तो वर्क फ्राॅम होम_ _ _" शर्मा जी को बीच में ही रोंकते हुए मुकेश बोला- "सब बढिया है शर्मा जी।अच्छा हमारा अथर्व आपके ही घर में है न?" शर्मा जी ने जवाब दिया- "नहीं मुकेश भाई।अथर्व तो आज अभी तक नहीं आया।अर्नव तो सो रहा है मेरे सामने ही।अथर्व आया होता तो ये दोनों आसमान सर पर उठाकर घूम रहे होते ऐसे सो थोडी रहा होता अर्नव।" शर्मा जी की बात सुनते ही मुकेश ने झट से फोन काटा और अवस्थी जी को फोन लगाया और अथर्व के आने की बात पूँछी।वहाँ से भी अथर्व के न आने की खबर सुनकर मुकेश और मीना दोनों पडोस में अथर्व को ढूंढने निकलने ही वाले थे कि घर के बगीचे से पानी गिरने और जोर-जोर से किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी।दोनों ने जब वहाँ जाकर देखा तो देखकर स्तब्ध रह गये।अथर्व अपने दादा जी के साथ पौधों को पानी दे रहा था और यह कहकर हँस रहा था- "खुश तो बहुत होगे आज तुम।जो कभी इस बाग में कदम नहीं रखता था आज वो तुम्हें पानी दे रहा है।"यह सुनते ही मुकेश की आंखों में मानो बाढ़ ही आ गई क्योंकि किसी जब वो छोटा बच्चा हुआ करता था तो वो भी पापा के साथ ऐसे ही पौधों को पानी देता और यही डायलाॅग बोला करता था।देखते-देखते यादों के अनगिनत अनमोल पन्ने नजर के सामने से गुजर गये।मीना ने जैसे ही अथर्व को आवाज देनी चाही मुकेश ने उसके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा-"मीना! अथर्व के साथ मैं भी अरसे बाद वहीं जा खडा हुआ हूँ,जहाँ जिन्दगी गुमा आया था।अब आज फिर से जी लेने दो ये सब लम्हे और___" कहते-कहते मुकेश चुप हो गया हाँ मगर उसके आंसुओं की बहती हुई धारा बहुत देर तक बोलती रही।मीना ने मन ही मन बस इतना ही कहा- "लाॅकडाउन पाॅजिटिव मुबारक हो अथर्व!"



Rate this content
Log in

More hindi story from अनिल कुमार निलय

Similar hindi story from Inspirational