कुदरत के दो रास्ते
कुदरत के दो रास्ते
एक बच्चा दोपहर में नंगे पैर फूल बेच रहा था। लोग मोलभाव कर रहे थे। एक सज्जन की उस बच्चे के पैरों की तरफ नज़र गई तो उसके पैरों को नंगा देख उस सज्जन को बहुत दु:ख हुआ। सज्जन जल्दी से भागकर पास की जूतो की दुकान से उस बच्चे के लिए जूते लेकर आया और बच्चे से कहा - "बेटा इन जूतों को फहन लो।" सज्जन के अनुरोध फर बच्चे ने जूतों को फहन लिया। जूतों को फहनकर बच्चे ने सज्जन के हाथ खुशी से पकड़ लिए और सज्जन से कहा - "आप भगवान हो?" सज्जन घबराकर बच्चे से बोला - "नहीं... नहीं... बेटा मैं भगवान नहीं हूँ।" इसपर बच्चे ने कहा - "तब तो आप जरूर भगवान के दोस्त होगें क्योंकि कल रात ही मैनें भगवान से अरदास की थी कि भगवान जी, फूलों को बेचते समय गर्मी से मेरे पैरों में बहुत जलन होती है। मुझे जूते लेकर दे दो।" सज्जन के आँखों में पानी भर आया और मुस्कुराते हुए वहाँ से चला गया। लेकिन सज्जन जान गया था कि भगवान का दोस्त बनना ज्यादा मुश्किल नहीं है। कुदरत ने दो रास्ते बनाये है। पहला - देकर जाओ और दूसरा - छोड़कर जाओ। साथ ले जाने की कुदरत ने कोई व्यवस्था नहीं की है।
