कुछ भी नहीं बदलेगा !

कुछ भी नहीं बदलेगा !

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मैं बहुत पहले ही समझ गया हूँ कि बड़े लोग छोटों से बेहद बेवकूफ़ी भरे सवाल पूछते हैं। जैसे कि उन्होंने आपस में सलाह कर ली हो। नतीजा ये निकलता है, मानो उन सबने एक ही तरह के सवाल याद कर लिए हैं और सभी बच्चों से वे एक के बाद एक यही सवाल पूछते हैं। मुझे तो इस बात की इतनी आदत हो गई है कि मुझे पहले से पता होता है कि अगर किसी बड़े इन्सान से मेरा परिचय होगा तो आगे क्या क्या होगा। ये इस तरह से होगा।

घंटी बजेगी, मम्मा दरवाज़ा खोलेगी, कोई इन्सान देर तक बुदबुदाकर समझ में न आने वाली बातें कहेगा, फिर कमरे में नया बड़ा आदमी आएगा। वो हाथ मलेगा। फिर कान, फिर चश्मा। जब वह उसे फिर से पहन लेगा तो मुझे देखेगा, और हालाँकि उसे काफ़ी पहले से ही मालूम है कि मैं इस दुनिया में रहता हूँ, और ये भी बड़ी अच्छी तरह जानता है कि मेरा नाम क्या है, फिर भी वह मुझे कंधों से पकड़ेगा, उन्हें काफ़ी ज़ोर से दबाएगा, मुझे अपनी ओर खींचेगा और कहेगा:

”हैलो, डेनिस, तेरा नाम क्या है ?”

बेशक, अगर मैं बदतमीज़ इंसान होता तो उससे कहता:

“आप ख़ुद ही जानते तो हैं ! अभी अभी आपने मुझे मेरे नाम से ही तो पुकारा, फिर ये बेहूदापन क्यों कर रहे हैं ?”

मगर मैं एक शरीफ़ लड़का हूँ। इसलिए मैं ऐसा दिखाता हूँ कि मैंने ऐसी कोई बात सुनी नहीं, मैं बस मुँह 

टेढ़ा करके मुस्कुराता हूँ, नज़रें एक ओर को घुमाते हुए जवाब देता हूँ:

“डेनिस।”

वह आगे पूछेगा:

“कितने साल का है तू ?”

जैसे कि उसे ये दिखाई ही नहीं दे रहा है कि मैं न तो तीस साल का हूँ, और न चालीस का ! देख तो रहा है कि मैं कितना ऊँचा हूँ, और, मतलब, उसे मालूम होना चाहिए कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा सात साल का हूँ, हद से हद आठ का – फिर क्यों पूछना है ? मगर उसके अपने बड़े विचार हैं, बड़ी आदतें हैं, और वह ज़ोर दिए जाता है: “आँ ? कितने साल का है तू ? आँ ?”

मैं उससे कहता हूँ:

“साढ़े सात।”

अब वह अपनी आँखें फाड़ेगा और सिर पकड़ लेगा, मानो मैंने उससे ये कह दिया हो कि कल ही मेरे एक सौ इकसठ साल पूरे हुए हैं। वो एकदम कराहने लगेगा, जैसे कि उसके तीन दाँतों में दर्द हो रहा हो:

“ओय-ओय-ओय ! साढ़े सात ! ओय-ओय-ओय !”

मैं कहीं उस पर तरस खाकर रोने न लगूँ और समझ जाऊँ कि ये मज़ाक है, वो कराहना बन्द कर देगा। अब वो दो उँगलियाँ मेरे पेट में ज़ोर से गड़ाएगा और जोश में चहकेगा:

“जल्दी ही फ़ौज में जाएगा ! आँ ?”

और फिर वह वापस इस खेल की शुरुआत पर जाएगा और मम्मा से, पापा से सिर हिलाते हुए कहेगा:

“क्या हो रहा है, क्या हो रहा है ! साढ़े सात ! हो चुके !” और फिर मेरी ओर मुड़ कर कहेगा: “और मैंने तुझे इत्ता सा देखा था !”

वह हवा में क़रीब बीस सेंटीमीटर दिखाता है। वो भी तब, जब मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि मेरी लम्बाई इक्यावन सेंटीमीटर थी। मम्मा के पास तो ऐसा सर्टिफिकेट भी है। सरकारी। मगर मैं इस बड़े आदमी की बात का बुरा नहीं मानता। वे सब एक जैसे ही होते हैं। मुझे पक्का मालूम है कि अब वह सोच में पड़ जाएगा। और वह सोचने लगेगा। गहरी सोच। वह अपना सिर सीने पर लटका लेगा, जैसे सो गया हो। मैं हौले से उसके हाथों से छूटने की कोशिश करूँगा। मगर वैसा नहीं होता। बड़ा आदमी सिर्फ ये याद करेगा कि उसकी जेब में और कौन कौन से सवाल पड़े हैं, वह उन्हें याद करेगा और आख़िरकार ख़ुशी से मुस्कुराते हुए पूछेगा:

“ओह, हाँ ! और तू क्या बनेगा ? आँ ? क्या बनना चाहता है ?”

सच कहूँ तो, मैं तो गुफ़ा विज्ञान पढ़ना चाहता हूँ, मगर मैं यह भी जानता हूँ कि नये बड़े आदमी को ये बोरिंग लगेगा, समझ में नहीं आएगा, अजीब सा लगेगा, और इसलिए उसे उसकी लाइन से न हटाने के लिए मैं कहूँगा:

“मैं आईसक्रीम बेचने वाला बनना चाहता हूँ। उसके पास हमेशा जितनी चाहो उतनी आईस्क्रीम होती है”।

नए बड़े आदमी का चेहरा फ़ौरन चमकने लगेगा। सब कुछ ठीक है, सब वैसे ही हो रहा है जैसे वह चाहता है, बिना लीक से हटे। इसलिए वह मेरी पीठ थपथपाएगा (खूब दर्द होता है) और मेहेरबानी से कहेगा:

“करेक्ट ! लगे रहो ! शाबाश !”

मैं अपनी मासूमियत में सोचता हूँ कि सब हो गया, किस्सा ख़तम, और थोड़ी हिम्मत से उससे दूर हटने की कोशिश करूँगा, क्योंकि मेरे पास टाइम नहीं है, अभी मेरा होम वर्क नहीं हुआ है और दूसरे हज़ारों काम पड़े हैं, मगर वह मेरी इस आज़ाद होने की कोशिश को भाँप लेगा और उसे जड़ से ही ख़त्म कर देगा, वो मुझे अपने पैरों के बीच मुझे दबोचेगा, और उँगलियाँ गड़ाएगा, मतलब, साफ़ साफ़ कहूँ तो वह ताक़त आज़माएगा, और जब मैं थक जाऊँगा और छटपटाना छोड़ दूँगा, तो वह मुझसे सबसे ख़ास सवाल पूछेगा: “मुझे ये बताओ, मेरे दोस्त।” वह कहेगा, और उसकी आवाज़ में साँप जैसा ज़हर रेंगने लगेगा, “बताओ, तुम किसे ज़्यादा प्यार करते हो ? पापा को या मम्मा को ?”

बेहूदा सवाल। ऊपर से वह मेरे मम्मा और पापा के सामने पूछा गया है। होशियारी दिखानी होगी।

"मिखाइल ताल को," मैं कहूँगा।

वह ठहाका मार कर हँसेगा। उसे न जाने क्यों ऐसे बेवकूफ़ी भरे जवाब ख़ुश कर देंगे। वह सौ बार दुहराएगा “मिखाइल ताल को ! हा-हा-हा-हा-हा-हा ! क्या बात है ? तो ? ख़ुशनसीब पेरेंट्स, इस पर आप क्या कहेंगे ?”और वह आधे घंटे तक हँसता रहेगा, और मम्मा और पापा भी हँसेंगे। मुझे उन पर और अपने आप पर शरम आएगी। मैं अपने आप को वचन दूँगा कि बाद में, जब यह ख़ौफ़नाक ड्रामा ख़त्म हो जाएगा, मैं किसी तरह, पापा की नज़र बचा कर मम्मा को किस करूँगा, मम्मा की नज़र बचा कर पापा को किस करूँगा। क्योंकि मैं उन दोनों से एक सा प्यार करता हूँ, ए-क-सा--- ! ! अपने सफ़ेद भालू की क़सम ! ये इतना आसान है। मगर, बड़ों को न जाने क्यों, इत्मीनान नहीं होता। मैंने कई बार ईमानदारी से इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है, और हमेशा देखा कि बड़े लोग इस जवाब से ख़ुश नहीं होते, उन पर निराशा छा जाती है, शायद। उन सबकी आँखों में जैसे एक ही बात दिखाई देती है, कुछ ऐसी: ऊ-ऊ-ऊ।।।कितना मामूली जवाब है ! वो मम्मा और पापा से एक सा प्यार करता है ! कितना बोरिंग है बच्चा।

इसीलिए मैं मिखाईल ताल के बारे में गप मार देता हूँ, हँसने दो उन्हें, तब तक मैं फिर से अपने नए परिचित की फ़ौलादी गिरफ़्त से छूटने की कोशिश करूँगा ! मगर कहाँ की कोशिश, ज़ाहिर है कि वह यूरी व्लासोव से ज़्यादा ताक़तवर है। और अब वो मुझसे एक और सवाल पूछेगा। मगर उसके अन्दाज़ से मैं समझ जाता हूँ कि मामला ख़तम होने को है। ये सबसे ज़्यादा बेवकूफ़ी भरा सवाल होगा, जैसे ख़ाने के बाद वाली स्वीट डिश। अब उसके चेहरे पर एक कृत्रिम डर दिखाई “और तूने आज हाथ-मुँह क्यों नहीं धोए ?”

बेशक, मैंने धोए थे, मगर मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि वो किस तरफ़ जा रहा है।और उसे ये पुराना, दकियानूसी खेल बोर क्यों नहीं करता।

बात को और लम्बा न तानने की गरज़ से, मैं अपने चेहरे पर हाथ फेरता हूँ। “कहाँ ? !” मैं चीखूँगा। “क्या लगा है ! कहाँ ? !”

करेक्ट ! सीधा हमला ! बड़ा आदमी अपनी पुराने फ़ैशन का राग अलापता है “और आँखें ?” वह शरारत से कहेगा। “आखें इतनी काली क्यों हैं ? उन्हें धोना चाहिए ! जा, फ़ौरन बाथरूम में जा !”और आख़िर में वो मुझे छोड़ ही देगा ! अब मैं आज़ाद हूँ और अपना काम कर सकता हूँ।

ओह, ये नये परिचय कितनी मुश्किलें खड़ी करते हैं मेरे लिए ! मगर कर क्या सकते हो ? सभी बच्चे इस दौर से गुज़रते हैं ! न तो मैं पहला हूँ, और न ही आख़री

इसमें किसी भी तरह की तबदीली करना नामुमकिन है।


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