कोरोना पर आधारित ड्रामा
कोरोना पर आधारित ड्रामा
मुख्य पत्रों के नाम : शिव जी - सरकारी नौकर है,रमेश - गरीब किसान है।
शिव जी - "अरे ओ! रमेश भाया क्या हाल - चाल है?"
रमेश - "भाई हाल का तो पूछो ही मत, जिसे भी देखों कोरोना का नाम जप रहा है। सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक कोरोना का डर लोगों के दिलों - दीमाग में बसा है , फिर भी लोग मास्क नहीं पहनते और समाजिक दूरी नहीं बनाते हैं ।"
शिव जी - "सही बात है भाया। और बताओ, सुनने में आया है कि तुम्हारे रामपुर वाले रामू चाचा को कोरोना हुआ है ।"
रमेश -" भाई, अब तो वो नहीं रहे।"
शिव जी - "सुनकर बड़ा मन दुखी हुआ, लेकिन यह सब कैसे हुआ ? "
रमेश - "भाई तुम तो सरकारी नौकर ठहरे और हम एक मामूली से गरीब किसान है , जो कम पैसों में आपना घर चलाते हैं। जैसा की तुम जानते हो कि गाँव के अस्पताल कितने अच्छे होते हैं। इस वैश्विक महामारी में कोई भी ऐसा अस्पताल नहीं, जो कोरोना संक्रामित रोगियों को बख़्शता हो , चाहे, प्राइवेट हो या सरकरी। आज भी भारत देश में ऐसे बहुत से अस्पताल हैं, जहाँ पर कोरोना संक्रामित रोगियों के उपचार के लिए आवश्यक उपकरण नहीं है ।"
शिव जी - "सही बात है भाया। हमारे भारत देश में पढ़े - लिखे लोग भी धर्म और मज़हब के आड़ में आकर चतुर नेताओं के इशारों पर नाचते हैं । यह सभी नेता सिर्फ अपना उल्लू सीधा करना जानते हैं।पिछले कई वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए जितना लोगों और नेताओं ने समर्थन दिया है अगर कुछ प्रतिशत भी मेडिकल कॉलेज और सरकारी अस्पताल के मरमत और उनके प्रगति में समर्थन दिया होता तो आज देश का दृश्य कुछ और ही होता ।"
रमेश -" हाँ भाई, सैकड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता, न ही अपने परिवार से जुदा होना पड़ता ।"
शिव जी - "चलो मुझे काम के लिए देरी हो रही है,शाम को आराम से मिलते हैं।"
संदेश : यदि भारत देश का प्रत्येक नागरिक एक हो जाये और अपनी बुद्धि और विवेक से चले तो हम कोरोना से भी बड़ी बीमारी को जड़ से उखाड़ फेंक सकते हैं।
