खुदी हूं खुद की प्रेरणा
खुदी हूं खुद की प्रेरणा
कितने रूप बदलती जिंदगी
कभी धूप तो कभी छांव जिंदगी
कभी जख्म तो कभी मरहम जिंदगी
न जाने कैसी है पहेली यह जिंदगी
अपने अतीत पर नजर डालती हूं तो वाकई जिंदगी किसी पहेली से कम नहीं लगती। कहां से चले कहां खत्म। क्या खोया ,क्या पाया। पहाड़ों की गोद ,झरनों की कलकल, प्रकृति की सुरम्य छटा से सुशोभित मेरा गांव छापोली। मासूम अल्हड़ बचपन का गवाह, मेरे ह्रदय की गहराइयों में बसा मेरा गांव। संयुक्त परिवार व राजपूती परंपराओं के गर्व और गौरव के साथ मेरा बचपन बीता। हर एक रीती रिवाज में उत्साह और उमंग में उमंग से शामिल होना ही सबसे बड़ा उत्सव था हमारे लिए। जिससे आज का बचपन वंचित है। ना पढ़ाई फिक्र ,ना करियर की चिंता ,ना जिंदगी की भागदौड़। सिर्फ बेफिक्री ,बेपरवाही से भरा बचपन। समय के जैसे वाकई पंख लगे हैं।
स्नातक शिक्षा के लिए मेरा दाखिला महारानी कॉलेज जयपुर में करवाया गया। बी.ए ,बी.एड., एम.एड . राजस्थान यूनिवर्सिटी से किया। इसी दौरान मेरी शादी हो गई। शादी के बाद मैंने शिक्षा की सही मायने में कीमत समझी। अक्सर वक्त निकलने के बाद ही वक्त की कद्र होती है। जिनको समय रहते कीमत हो , वही इतिहास लिखते हैं। पर यह सौभाग्य ईश्वर कुछ चुनिंदा लोगों को ही देता है। पहले बहुत वक्त था पर शिक्षा डिग्री तक सीमित थी। घर परिवार में बच्चों की जिम्मेदारी के साथ-साथ ज्ञान पिपासा भी दिन दिन बढ़ने लगी। सारा काम खत्म करने के बाद रात भर जाग जाग कर पढ़ने का जैसे जुनून सा चढ गया। यह शिक्षा करियर के लिए नहीं थी वरन् ज्ञान क्षुधा शांति के लिए थी। राजनीति विज्ञान में मैं पहले ही एम.ए कर चुकी थी। साहित्य में विशेष रुचि ने मुझे हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत में स्नातकोतर के लिए प्रोत्साहित किया। हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषाओं का तुलनात्मक अध्यन करना मेरी रुचि का विषय था। साहित्यप्रेमी होने के कारण मुझे तीनों भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में बहुत ही आनंद आया।
इसने न केवल मेरी लेखनी और कविता को तराशा बल्कि मेरे साहित्य प्रेम को भी सुकून दिया। साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन में ही मैंने जाना कि शेक्सपियर से कालिदास कितने महान थे। कालिदास की प्रतिभा का विश्व साहित्य में शायद ही कोई सानी होगा। परंपरागत शिक्षण में समय के साथ बदलाव की आवश्यकता ने मुझे शिक्षा में पीएचडी के लिए प्रेरित किया।
हमेशा कठिन और चुनौतीपूर्ण रास्तों पर चलना मुझे जीवन की नई परिभाषा देता है। इसीलिए मैंने प्रयोगात्मक शोध को चुना। मैंने ब्रूनर के संप्रत्यय संप्राप्ति प्रतिमान व स्किनर के रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन का परंपरागत शिक्षण से तुलनात्मक अध्ययन किया। अध्ययन के परिणामों से मैंने जाना कि विभिन्न प्रतिमानों का प्रभावी प्रयोग अधिगम को कितना सरल से बोधगम्य बना सकता है। विभिन्न शिक्षाविदों के सानिध्य व मार्गदर्शन ने मेरे शोध को दिशा दी ,जिनकी में सदैव आभारी रहूंगी।
2001 में जीवन में कुछ ऐसा घटा कि मेरी ज्ञान पिपासा ने एक और दिशा ली। वह है ज्योतिष। ज्योतिष: यह एक ऐसा समुद्र है जिसमें बार-बार गोते लगाकर अमूल्य रत्न पाती गई जो आज तक जारी है। मैं इस महान् शास्त्र की विद्यार्थी बनकर स्वयं को कृतज्ञ पाती हूं। इस सफर की शुरुआत 2001 में हुई जब मेरी सास को कैंसर हो गया था। हम काफी ज्योतिषियों से मिले काफी उपाय भी किए। किंतु अंतोगत्वा 1 साल के संघर्ष के बाद वे चल बसीं। ग्रहों के खेल को लेकर मन में बड़ी जिज्ञासा हुई। मैंने कुछ पुस्तकें पढ़नी प्रारंभ की और औपचारिक रूप से सीखने की शुरुआत पंडित भोजराज द्विवेदी के ज्योतिष प्रशिक्षण शिविर से की। उसके बाद मैंने जैन विश्व भारती लाडनूं से सीखा।किंतु मेरी जिज्ञासा शांत नहीं हुई। अत्यंत सौभाग्यशाली था वह दिन जब मैं ज्योतिष पुरोधा के. एन. राव साहब से मिलने दिल्ली गई।
उन्होंने मेरी कुंडली देखी और कहां तुम ज्योतिष में बहुत नाम कमाओगी और इस विषय के साथ न्याय कर पाओगी। उन्होंने मुझे स्वयं के द्वारा लिखित 17 पुस्तकें आशीर्वाद स्वरुप दी। मेरी उम्मीदों को जैसे पंख लग गए। अब मुझमें इतना आत्मबल आ गया और मैंने ठान लिया कि विरोध और संघर्ष के बावजूद भी मुझे इसी पथ का साधक बनना है और इसी शास्त्र की शरण में रहना। क्षत्रिय परिवार से होने के नाते यह लीक से हटकर था ,किंतु मैंने यह मान लिया यह रास्ता मैंने नहीं मेरे गुरु ने मेरे लिए चुना है और मेरा सच्चा आत्मानंद इसी में है। मैं भारतीय विद्या भवन दिल्ली से जुड़ गई और अध्ययनमनननिदिध्यासन शुरू किया।
मैंने राव साहब की हर पुस्तक को बारबार पढा और उसीके कारण इस विषय के प्रति मेरा दृष्टिकोण वैज्ञानिक व शोध परक बना। साहित्य की विद्यार्थी और ज्योतिष की शोधार्थी होने के नाते टीवी कार्यक्रम (ज्योतिष) की स्क्रिप्ट लिखनी शुरु की। ईश्वर की कृपा से ब्राह्मणों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में मैंने अपना मुकाम बनाया और आज अनेक राष्ट्रीय ,अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष समूहों से जुड़कर
ज्योतिषीय सेवाएं प्रदान करती हूं।
गुरु कृपा से जीवन कैसे बदलता है इसका मैंने बार-बार अनुभव जीवन किया है। मुझे साधना के पथ पर लाने वाले मेरे गुरु राज कंवर बाईसा गुणावटी जिन्होंने ध्यान व साधना के पथ पर मुझे आगे बढ़ाया। आत्मसाक्षात्कार की ज्योति जगाई। उनके सानिध्य में किए गए ध्यान से प्राप्त परमानंद की अवस्था का वर्णन मैंने 'रामचरणानुरागी राजकँवरजी'नामक पुस्तक में किया है।
देव गुरु बृहस्पति की असीम कृपा का साक्षात्कार मुझे जीवन में पग पग पर हुआ है। यह कहानी भी बड़ी विचित्र है। जैसे ही मेरी बृहस्पति की दशा प्रारंभ हुई मन ध्यान ,अध्यात्म व योग की तरफ उन्मुख होने लगा। एक दिन मैं नेट पर वृहस्पति के विषय में जानकारी प्राप्त कर रही थी ,तो मन में उत्सुकता हुई कि क्या देव गुरु का भी कोई मंदिर है? मैं आश्चर्यचकित रह गई यह जानकर कि ऐसा एक मंदिर जयपुर में निर्माणाधीन है। दर्शन की अभिलाषा ने बेचैन कर दिया और मैं वृस्पतिवार आते ही जोधपुर से जयपुर पहुंच गई।
यह 2009 की बात है। तब वहां मूर्ति स्थापित हो चुकी थी किंतु निर्माण कार्य जारी था। मन मेैं एक संकल्प आया कि मुझे इस मंदिर निर्माण में सहयोग करना चाहिए। यहां आकर मुझे असीम शांति व शक्ति प्राप्त होती है। बृहस्पति धाम परिवार की अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है। राव साहब के निर्देशानुसार गीता के 12वें अध्याय का पाठ व विष्णु सहस्त्रनाम का नियमित पाठ मेरी उर्जा का स्त्रोत है। गीता में जीवन का मर्म और हर संशय का समाधान पाती हूं।
कविता मेरे संवेदनशील व भावुक ह्रदय की सहज अभिव्यक्ति है। जीवन को पूर्णता दी राजपूत मदर्स ग्रुप ने। जिसने हम जैसी मातृशक्तियों के होसलों को बुलंदी व आत्माभिव्यक्ति को मंच दिया। शुक्रिया रचना राठोड़ का जिसने मेरे विचारों को समझा और उन्हें दिशा दी। एक शिक्षाविद् होने के नाते इस मंच के साथ जुड़कर मेैं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना चाहती हूं। सरकारी स्कूलों को आदर्श स्कूल बनाना ही मेरा सबसे पहला ध्येय है। जिसके तहत हमारे प्रयास जारी हैं। इसके अलावा ग्रुप के साथ मिलकर हम अपने समाज के हर जरुरतमंद को सहायता पहुंचाना चाहते हैं। स्त्री सशक्तिकरण को बुलंदियों पर ले जाना चाहता है यह समूह और समाज में बदलाव की बयार लाने में स्त्रियों की भूमिका को सुनिश्चित करना चाहता है .बधाई का पात्र है यह समूह।
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति ,पूजामूलं गुरोर्पदम
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं,मोक्षमूलं गुरोर्कृपा
