खाली ठेला
खाली ठेला
वो शाम का वक्त था। दशहरे की उत्सव में बच्चे काफ़ी खुश थे। चारों तरफ बच्चों की झुण्ड दौड़ रही थी। वहीं पास ही लगे थे ठेले पानिपुरी, चनें और पापड़ वाले। सारे ठेले भरे हुए थे, शायद कोई ग्राहक तब तक आये नहीं थे।
तभी एक दुबला-पतला सा बच्चा दुर से दौड़ता हुआ ठेले की ओर जा रहा था। जाते जाते वो बच्चा दौड़ती भीड़ को यों चीर रहा था जैसे कोई तीर छुटी है अर्जुन के गाण्डीव से जो हवाओं को दो हिस्सों मे बाँट रहा है। जैसे जोर से बिजली कड़की और अचानक से वो बादलों को चीरती जमीन को छू गयी हो। जैसे एक राजा को उसकी प्रजा राह दे रही होती है बिलकुल उसी तरह वहाँ की भीड़ उसके लिये राह बना रही थी।
ठेले पर पहुँच कर फिर अपनी फटी जेब में हाथ डाल कर दस रुपये का नोट यों निकाला जैसे कुछ अनमोल धातु निकाल रहा हो और अनमोल होगा भी क्यों नहीं औरों की तरह उसने अपनी माँ या बाबा से मांग कर तो लाया नहीं है। खुद कमा कर लाया है और खुद की कमाई अनमोल ही होती है।
तभी ठेले पे पानिपुरी के लिए भीड़ लग गयी। भीड़ में कुछ बच्चे भी थे जो अपने अपने माता-पिता के साथ थे, बच्चों ने उसे दोस्तों-वाली मुस्कुराहट दीया। लेकिन वो बच्चा सहम गया और एकदम से ठेले से दो कदम पीछे हट गया। बहुत ही बचकाना हरकत है ये बच्चों का, शायद वो अपने पैसों को उनके साथ बाँटना नहीं चाहता था। मैं वहीं दुर खड़ा इस घटना को देख हॅंस पड़ा।
फिर वहाँ जोरों की भीड़ जमने लगी बच्चों की बुजुर्गों की प्रेमीयों की परिवारों की और देखते ही देखते पूरा का पूरा ठेला ही खाली हो गया। पर न ठेले वाले को वो बच्चा दिखाई दे रहा था न ही वहाँ पे आने वाली भीड़ को। उस बच्चे के पैसे उसके हाथ में ही सिकुडे रह गये और उसकी इच्छा उसके मन में।
मुझसे रहा न गया मैं झटपट ठेले के पास पहुँचा। पहुँचते ही मैने जो देखा उससे मेरी धारणा बदल गयी। वो पिछे हट जाना उस बच्चे का बचकाना हरकत नहीं था वो बाकी बच्चों की माता-पिताओं की गुस्सैल नजरें थी जो उसे पिछे हटने को मजबूर कर रही थी। उस भीड़ का चीर कर राह देना, ठेले वाले को बच्चा दिखाई न देना इन सब के पीछे एक ही वजह था और वो है उस बच्चे की जात।
मुझे लग रहा था ठेले के खाली होने पर बेचारे बच्चे की इच्छा मर गयी होगी पर वो उसकी इच्छा नहीं थी। इच्छा उन बाकी बच्चों की थी, उन प्रेमी युगलों का था, मेले में आये भीड़ का था। उस बच्चे की दिन भर की भूख थी जो उस ठेले के खाली होते ही दफन हो गयी थी।
मैंने उसे एक बिस्किट का पैकेट दिया पर वो पीछे हट गया छुआ तक नहीं। तभी अचानक से वो पैकेट मेरे हाथ फिसल कर जमीन पर गीर गया। तभी उसने वो पैकेट उठाया और वही नजर जो उसकी पहले से थी उसी नजर से मुझे देखा और चला गया।
और कुछ सवालें मेरे मन में डाल गया।
