Dayasagar Dharua

Drama

2.7  

Dayasagar Dharua

Drama

खाली ठेला

खाली ठेला

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वो शाम का वक्त था। दशहरे के उत्सव में बच्चे काफ़ी खुश थे। चारों तरफ बच्चों का झुण्ड दौड़ रहा था। वहीं पास ही लगे थे ठेले पानिपुरी, चनें और पापड़ के। सारे ठेलों में सामान भरे हुए थे, शायद कोई ग्राहक तब तक आये नहीं था।


तभी एक दुबला-पतला सा बच्चा दुर से दौड़ता हुआ ठेले की ओर जा रहा था। जाते जाते वो बच्चा दौड़ती भीड़ को यों चीर रहा था जैसे कोई तीर छुटी है अर्जुन के गाण्डीव से जो हवाओं को दो हिस्सों मे बाँट रही है। मानो जैसे जोर से बिजली कड़की और अचानक से वो बादलों को चीरती हुई जमीन को छू रही हो। या फिर जैसे एक राजा को उसकी प्रजा राह दे रही हो। बिलकुल उसी तरह वहाँ की भीड़ उसके लिए राह बना रही थी।


ठेले पर पहुँच कर फिर अपनी फटी जेब में हाथ डाल कर दस रुपये का नोट यों निकाला जैसे कुछ अनमोल धातु निकाल रहा हो। भला अनमोल होगा भी क्यों नहीं औरों की तरह उसने अपनी माँ या बाबा से मांग कर तो नहीं लाया है। खुद कमा कर लाया है और खुद की कमाई अनमोल ही होती है।


तभी वहां पानिपुरी के लिए भीड़ लग गई। भीड़ में कुछ बच्चे भी थे जो अपने अपने माता-पिता के साथ थे, बच्चों ने उसे देख कर दोस्तो की तरह मुस्कुराया। लेकिन वो बच्चा सहम गया और एकदम से ठेले से दो कदम पीछे हट गया।

बहुत ही बचकाना हरकत है ये बच्चों का, शायद वो अपने पैसों को उनके साथ बाँटना नहीं चाहता था। मैं वहीं दुर खड़ा इस घटना को देख कर हंस पड़ा।


फिर वहाँ जोरों की भीड़ जमने लगी बच्चों की, बुजुर्गों की प्रेमीयों की, परिवारों की और देखते ही देखते पूरा का पूरा ठेला ही खाली हो गया। पर न ठेले वाले को वो बच्चा दिखाई दे रहा था और न ही वहाँ पे आने वाली भीड़ को। उस बच्चे के पैसे उसके हाथ में ही सिकुड़ कर रह गये और उसकी खाने इच्छा उसके मन में।


मुझसे रहा न गया मैं झटपट ठेले के पास पहुँचा। पहुँचते ही मैने जो देखा उससे मेरी धारणा बदल गयी। वो पिछे हट जाना उस बच्चे का बचकाना हरकत नहीं था वो बाकी बच्चों की माता-पिताओं के गुस्सैल नजरें थी जो उसे पिछे हटने को मजबूर कर रही थीं। उस भीड़ का चीर कर राह देना, ठेले वाले को बच्चा दिखाई न देना इन सब के पीछे एक ही वजह था और वो है उस बच्चे की जाति।


मुझे लग रहा था ठेले के खाली होने पर बेचारे बच्चे की इच्छा मर गयी होगी। पर वो उसकी इच्छा नहीं थी। इच्छा उन बाकी बच्चों की थी, उन प्रेमी युगलों की थीं, मेले में आये भीड़ की थी। उस बच्चे की दिन भर की भूख थी जो उस ठेले के खाली होते ही दफन हो गयी थी।


मैंने उसे एक बिस्किट का पैकेट दिया पर वो पीछे हट गया छुआ तक नहीं। अचानक से वो पैकेट मेरे हाथ से फिसल कर जमीन पर गिर गया। तभी उसने वो पैकेट उठाया और वही नजर जो उसकी पहले से थी उसी नजर से मुझे देखा और चला गया और कुछ सवालें मेरे मन में डाल गया।


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