जिंदगी एक सफर
जिंदगी एक सफर
कुछ सालों पहले मैंने एक सफर किया जिसने मेरी नज़र और नजरिया दोनों को बहुत प्रभावित किया।
मैं इंदौर से बल्लिया जाने के लिए निकला था, मेरे पास जो टिकेट था वो इंदौर से भोपाल, भोपाल से वाराणसी और वाराणसी से बल्लिया का था सफर का पहला चरण पर करके भोपाल पहुंचा जहां से मुझे कामायनी एक्सप्रेस से सफर करना था। भारतीय रेल जो अपने समय के लिए जानी जाती है। कुछ विलंब से स्टेशन पर आ गयी।
उसमे मुझे RAC सीट मिली थी जो एक लड़के की थी जिसकी वाइफ का दूसरे डिब्बे में RAC सीट थी जिस पर एक लड़की थी। जिसके साथ सीट रिप्लेस किया उसका नाम रानी था। जो वाराणसी की रहने वाली थी। अब मेरे लिए मुसीबत यह थी कि अब न सो सकता था और न उसके सामने बैठने की हिम्मत हो रही थी। आखिर ट्रेन का सफर था ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही थी।
कुछ समय बाद मैंने ही हिम्मत करके कहा- आप सो जाओ मैं दूसरी जगह बैठ जाऊंगा, उसने जवाब दिया- नहीं ठीक है इसकी कोई जरूरत नहीं और खिड़की से बाहर देखने लगी मैं नजरे बचा कर उसे ही देख रहा था।
ऐसा लगता था भगवान ने सारी खूबसूरती उसे ही दी हो। मैं उसकी ओर आकर्षित होता रहा हर बार कुछ बहाना ढूढता की उससे बात हो, मगर वो हु, न, जी बस यही कहती मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। आखिर मैं क्या करूँ की उससे बात हो रात धीरे-धीरे आंखों में ही बीतने लगी।
अचानक उसके चेहरे पर मैंने पानी की बूंदें देखी वो रो रही थी। अब मुझसे बिल्कुल रहा नही गया ऐसा लग रहा था दर्द उसे नहीं मुझे हो रहा है मैंने पूछा क्या हुआ। कोई उत्तर नहीं मैंने फिर थोड़ी देर बाद पूछा क्या हुआ। फिर सन्नाटा कोई उत्तर नहीं। मैं चाहता था वो मुझे बताये क्योंकि न जाने क्यों मुझे उसमें अपना सा लग रहा था। शायद पहली बार किसी के लिए दिल धड़का था। तभी एक धीमी सी आवाज कानो में गयी आप सो जाओ। मैं दंग रह गया।
उसने चेहरे से आंसू पोछते हुआ कहा- हमारे बीच कुछ समय की बात-चीत हुई।
ट्रेन धीरे धीरे वाराणसी के नजदीक पहुच रही थी और मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही थी कि इससे बिछड़ना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता था कि सफर खत्म हो
मगर वो समय आया, ट्रेन वाराणसी पहुँची और वो उत्तर गई।
मेरे जेहन में कई सवालों को जन्म देकर....आखिर क्यों वो क्यों रो रही थी।
