Charumati Ramdas

Children

3.7  

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जब डैडी छोटे थे - 7

जब डैडी छोटे थे - 7

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69


जब डैडी ने ब्रेड फेंक दी

लेखक: अलेक्सांद्र रास्किन ; अनुवाद: आ. चारुमति रामदास

जब डैडी छोटे थे तो उन्हें हर स्वादिष्ट चीज़ पसन्द थी. उन्हें सॉसेज अच्छा लगता था. वो ‘चीज़’ बहुत पसन्द करते थे. उन्हें कटलेट्स अच्छे लगते थे. मगर ब्रेड उन्हें बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी, क्योंकि उनसे हर समय कहा जाता था : “ब्रेड के साथ खा!”

मगर ब्रेड तो एकदम स्वादहीन होती है. उसे खाने में कोई मज़ा नहीं है. ऐसा बुद्धू छोटे डैडी सोचते थे. और वो ब्रेकफास्ट के समय और लंच के समय ब्रेड क़रीब-क़रीब बिल्कुल ही नहीं खाते. रात के खाने पर भी ब्रेड नहीं खाते. वो ब्रेड की छोटी-छोटी गोलियाँ बनाते. ब्रेड के किनारों को मेज़ पर छोड़ देते. वो ब्रेड टेबल-क्लॉथ के नीचे छुपा देते. वो कहते कि अपनी पूरी ब्रेड खा चुके हैं. मगर ये सच नहीं था. उन्होंने पक्का इरादा कर लिया था कि जब बड़े हो जाएँगे, तो ब्रेड बिल्कुल नहीं खाएँगे. और अपने बच्चों को भी कभी ब्रेड खाने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.

 “आह, ब्रेड के बिना कितना अच्छा होगा!” बुद्धू छोटे पापा सोचते. “आज ब्रेकफास्ट में क्या है? ‘चीज़’? अब हम बगैर ब्रेड के ‘चीज़’ खाएँगे. और सॉसेज भी बिना ब्रेड के? वाह, बिना ब्रेड का खाना कितना लजीज़ होगा! बिना ब्रेड के सूप, बिना ब्रेड के कटलेट्स! ये हुई मज़ेदार ज़िन्दगी! रात को डिनर. वो भी बिना ब्रेड के. कितना प्यारा होगा रात को ये सोचते हुए सोना कि कल फिर ब्रेकफास्ट बिना ब्रेड के खाएँगे!” ऐसा सोचा करते थे छोटे डैडी. और वो बहुत जल्दी बड़े होना चाहते थे.

दादाजी और दादी और दूसरे कई लोग फ़िज़ूल में ही उनसे कहते कि वो गलत सोचते हैं. वे उनसे कहते कि ब्रेड बहुत फ़ायदेमन्द होती है. वे कहते कि सिर्फ एक बुरा और बेवकूफ़ बच्चा ही ब्रेड को नापसन्द कर सकता है. वे कहते कि अगर इंसान ब्रेड नहीं खाएगा, तो वह बीमार हो सकता है. वे कहते कि ब्रेड न खाने पर छोटे डैडी को सज़ा मिलेगी. मगर फिर भी ब्रेड उन्हें बुरी ही लगती.

एक बार एक भयानक घटना हुई. छोटे डैडी की एक बूढ़ी आया थी. वो डैडी को बहुत प्यार करती थी, मगर यदि वो खाने की मेज़ पर ज़िद करते तो बेहद गुस्सा हो जाती. एक बार ऐसा हुआ कि दादी और दादाजी घर पे नहीं थे. छोटे डैडी उनके बगैर ही खाना खा रहे थे. वो फिर से ब्रेड नहीं खाना चाहते थे. तब आया ने कहा:

 “ फ़ौरन अपनी ब्रेड खाओ, वर्ना कुछ भी नहीं मिलेगा!”

तब छोटे डैडी ने कहा:

 “मुझे ब्रेड नहीं खाना.”

मगर आया बोली:

“नहीं, खाना पड़ेगा!”

छोटे डैडी ने कहा:

 “नहीं, नहीं खाऊँगा!”

और उन्होंने ब्रेड नीचे फेंक दी. तब आया को इतना गुस्सा आया कि उसने डैडी से एक शब्द भी नहीं कहा. ये बहुत भयानक था. वह डैडी की तरफ देखती रही और चुप ही रही.

आख़िरकार उसने कहा:

 “तुम सोच रहे हो कि तुमने ब्रेड फर्श पर फेंक दी है? मैं तुम्हें बताऊँगी कि तुमने क्या फेंका है. मैं छोटी थी, ब्रेड के एक टुकड़े के लिए दिन भर कलहँसों को चराया करती थी. एक बार सर्दियों में हमारे घर में बिल्कुल भी ब्रेड नहीं थी. मेरा छोटा भाई – तुम्हारे जितना – भूख के मारे मर गया. अगर उसे तब ब्रेड का बस एक टुकड़ा मिल जाता, तो वह ज़िन्दा बच जाता. तुझे लिखना और पढ़ना तो सिखाते हैं. मगर ब्रेड कैसे पैदा होती है, ये कोई नहीं सिखाता. लोग तेरी ख़ातिर काम करते हैं, गेहूँ उगाते हैं, उसकी ब्रेड बनाते हैं, और तू...उसे ज़मीन पर फेंक देता है. ऐख़, तू! मैं तेरी सूरत भी नहीं देखना चाहती!”

छोटे डैडी सोने चले गए. मगर अच्छी नींद नहीं आई. उन्हें डरावने सपने आते रहे. सुबह जब छोटे डैडी उठे, तो उन्हें पता चला कि आज दिन भर उन्हें बगैर ब्रेड के रखा जाएगा. डैडी को अक्सर बगैर मिठाई के तो रखा जाता था. कभी-कभी दोपहर के खाने के बगैर भी रखा जाता. मगर ज़िन्दगी में ऐसा पहली बार हुआ था कि उन्हें बिना ब्रेड के रखा गया. ये आया का आइडिया था. उसने बहुत बढ़िया बात सोची थी. सुबह छोटे डैडी ने बगैर ब्रेड के ‘चीज़’ खाया. वह बड़ा स्वादिष्ट था. वह जल्दी से पूरा खा गए. मगर मेज़ से भूखे ही उठना पड़ा....पेट ही नहीं भरा था. बिना ब्रेड के वह ज़्यादा खा भी नहीं सके. डैडी बेसब्री से खाने का इंतज़ार करने लगे. मगर बगैर ब्रेड के कटलेट्स खाने से भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ. पूरे दिन ब्रेड खाने की इच्छा होती रही. रात के खाने में थी अण्डे की भुर्जी. ब्रेड के बिना उसमें कोई स्वाद ही नहीं था.

सब लोग डैडी पे हँस रहे थे और कह रहे थे कि उन्हें साल भर तक ब्रेड नहीं मिलेगी. मगर अगली सुबह उन्हें ब्रेड दी गई. ये ब्रेड बहुत स्वादिष्ट थी. किसी ने भी कुछ भी नहीं कहा, मगर सब देख रहे थे कि डैडी कैसे ब्रेड खा रहे हैं. छोटे डैडी को बहुत शरम आ रही थी. तब से वो हमेशा ब्रेड खाने लगे. उसे कभी भी फर्श पर नहीं फेंका.



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