इण्डियन फ़िल्म्स 2.2

इण्डियन फ़िल्म्स 2.2

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औषधीय जड़ी-बूटियों का संग्रह


मैं भाई के साथ तुखाचेव्स्की भाग की पाँचवी फार्मेसी के पास बेंच पर बैठा हूँ। बगल में दो बैग्स पड़ी हैं। उनमें फ़ोल्ड की हुई बड़ी-बड़ी थैलियाँ, बड़ा किचन वाला छुरा (ये व्लादिक के बैग में,और मेरी बैग में – हँसिया), थर्मस और सैण्डविचेस हैं। हम बस का इंतज़ार कर रहे है, जिससे कि शहर से बाहर जाकर बिच्छू-बूटी इकट्ठा कर सकें।

कुछ दूरी पर पुराने जैकेट्स पहने और सिर पर रूमाल बांधे फार्मासिस्ट(दवासाज़) लड़कियाँ खड़ी थीं और हँस रही थीं (औषधीय जड़ी-बूटियों को तैयार करना उनका काम होता है)। जल्दी ही बस आती है और ड्राइवर वीत्या इंजिन शुरू करते हुए कहता है : “राचेव्का जा रहे हैं।”

और जब हम जा रहे होते हैं तो दवासाज़ लड़कियाँ और एक हाथ वाला नानू (हालाँकि उसका एक ही हाथ है, मगर वो मुझसे दुगनी बिच्छू-बूटी इकट्ठा करता है) कहेंगे, कि हम कितने अच्छे हैं, जो अपनी फिल्म और आइस्क्रीम का पैसा ख़ुद ही कमा लेते है। न जाने क्यों उन्हें ऐसा लगता है, कि फिल्म और आइस्क्रीम के अलावा हमें ज़िंदगी में किसी और चीज़ की ज़रूरत ही नहीं है। उन्हें बताना ही चाहि ये, कि कैसे मैं अच्छी ग्रेड से पास हुआ हूँ, कैसे मुझे इसके लिए पच्चीस रूबल्स इनाम में दिए गए, जिन्हें मैं उसी दिन ऑनलाइन ताश के खेल - शीपा में हार गया। अगर किसी को मालूम नहीं है, तो बताता हूँ, कि ये एक ताश का खेल होता है। मगर मैं कुछ भी नहीं कहता, क्योंकि अगर किसी को पता चल गया कि मैं पैसे लगाके ताश खेलता हूँ , तो मतलब, कुछ भी अच्छा नहीं होता।

अगले दिन, जब हम फिर से पाँचवीं फार्मेसी के पास बस का इंतज़ार करेंगे (और तब मेरी बैग में हँसिए के बदले बड़ा चाकू पड़ा होगा, क्योंकि हँसिए से बिच्छू-बूटी काटने में तकलीफ़ होती है,हालाँकि बढ़िया कटती है, तो अचानक बारिश होने लगेगी। बारिश में तो कोई भी जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा करने नहीं जाता,और हम ख़ुश हो जाएँगे, कि घर वापस जा सकेंगे और तोन्या नानी के पास बैठकर सैण्डविच के साथ चाय पियेंगे। व्लादिक हाल ही में पढ़ी हुई कोई फ़ैन्टेसी वाली किताब के बारे में बताएगा और मैं और तोन्या कुछ भी न समझ पाएँगे और सिर्फ हँसते रहेंगे जिससे व्लादिक को खूब गुस्सा आयेगा।

आख़िर में हमारे बीच समझौता करवाती है फ़िल्म "मुँहतोड़ शिकारी टिड्डे, जो, पता चलेगा, कि आज ‘स्मेना’ थियेटर में दिखाई जा रही है। उसमें ये ग़ज़ब का कुंग-फू है! और हीरो का नाम भी ह‘चाय’। व्लादिक मुझे ये फ़िल्म दिखाने ले गया था,और वो ऐसी फ़िल्म थी जिसे हम कम से कम तीन-चार बार ज़रूर देखते थे। तो हम स्मेना’ जाते हैं, फिर, जब “मुँहतोड़ शिकारी टिड्डे ‘जुबिली’ थियेटर में लगेगी, - तो ‘जुबिली’ भी जाएँगे, और फिर मेरे दिल में एक नया आइडिया आएगा, कि क्या करना चाहिए: ख़ुद ही एक्वेरियम्स बनाएँ और उन्हें दर्जनों में बेचेंगे। स्कूल के ग्रीन हाउस से हम कुछ काँच चुरा लेंगे , एपोक्साइड- ग्लू खरीदेंगे, जिससे काँच चिपकाए जा सकते हैं, और ऐसी साधारण सी चीज़ बनाएँगे ,जैसी बाज़ार में अब तक कभी आई ही नहीं होगी। मगर हम अपनी चीज़ बेचने के लिए नहीं ले जाएँगे।


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