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Pankaj Kumar

Inspirational

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Pankaj Kumar

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हौसले की उड़ान

हौसले की उड़ान

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एक कहावत चरितार्थ है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं, ऐसी ही कहानी है एक दिव्यांग बच्चे राकेश कुमार यादव की,

उत्तर प्रदेश के पिछड़े गाँव में शुमार( तत्कालीन )बदायूँ जनपद और अब संभल जनपद में स्थित है गाँव घोंसली राजा,

यहाँ पर यादव बाहुल्य परिवार निवास करते हैं जिनमें से एक गरीब किसान रघुनाथ सिंह यादव का परिवार भी निवास करता है जिनके घर में दो पुत्र थे.. एक रमेश चंद्र यादव और दूसरे हरिकेश सिंह यादव।

 दोनों भाइयों में बड़े रमेश चंद्र यादव के घर में चार पुत्रों का जन्म हुआ जिसमें तीसरे नंबर के हैं राकेश कुमार यादव,

राकेश कुमार जन्म से ही दिव्यांग पैदा हुए.. जिनके दोनों पैर पूरी तरह से जमीन पर नहीं रखे जाते थे..ऐसी स्थिति को देखकर राकेश के माता पिता अपने इस बच्चे को लेकर काफी परेशान रहते थे, उन्होंने अपनी छोटी सी जमापूँजी से नन्हे राकेश का जगह जगह इलाज कराया पर असफलता ही हाथ लगी, समय के साथ साथ राकेश बड़ा हुआ और तीव्र बुद्धि के राकेश ने अपने जीवन की पढ़ाई की शुरुआत अपने गांव के प्राथमिक विद्यालय घोंसली राजा से ही शुरू की, राकेश ने समय के साथ साथ पांचवीं कक्षा के बाद..

गांव के ही जनप्रिय किसान विद्यालय घोंसली मोहकम से आठवीं कक्षा पास कर ...नौवीं कक्षा में रामपुर के एक दिव्यांग विद्यालय में प्रवेश लिया, और वहीं से इन्हें क्रिकेट खेलने का शौक लग गया..और तब से ही वह पढ़ाई के साथ साथ निरंतर क्रिकेट खेलते रहे, वहां से बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद चित्रकूट में B.B.A, M.B.A. किया लेकिन क्रिकेट का खेल बरकरार रखा, उसके बाद राकेश ने कुछ प्रयासों के बाद गुडगांव में प्राइवेट कंपनी में नौकरी शुरू की.. लेकिन क्रिकेट का खेल जारी रखा...उस समय इन्हें उत्तर प्रदेश के साथ साथ हरियाणा प्रदेश की क्रिकेट टीम की कप्तानी करने का भी अवसर प्राप्त हुआ , लेकिन राकेश कुमार का एक दुर्भाग्य रहा कि इन्हें खेलने के लिए.. नौकरी में समय नहीं मिल पाता था इस कारण इन्हें वो नौकरी रास नहीं आई और इन्होंने...खेल के लिए अपनी नौकरी त्याग दी, उसके बाद इन्होंने अपने ही जनपद में क्रिकेट अकादमी की शुरूआत करने का फैसला लिया, पहले रजपुरा और फिर अपने ही गांव के पास अपने खेत में क्रिकेट के मैदान से इसकी शुरुआत की, आज यह अपने गांव में क्रिकेट की एक अकादमी के साथ साथ बच्चों को पढ़ाने का भी काम कर रहे हैं और साथ में भारत की दिव्यांग क्रिकेट टीम में निरंतर प्रतिभाग कर रहे हैं जिसकी बदौलत इन्हें भारत की दिव्यांग क्रिकेट टीम का कप्तान चुना गया है, इससे इनके साथियों गांव और आसपास के क्षेत्र में खुशी का माहौल है।

    हम सभी इनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं ।


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