हादसा
हादसा
आज शाम से ही मन बहुत उदास था। कुछ छुट जाने का अजिब सा एहेसास था। बहुत कोशिश करने के बावजुद भी, मन और मस्तिष्क की कशमकश थी कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। मन बहुत बेचैन हुआ तो, थोड़ देर के लिये, घर की छत पर शांती कि खोज मे जाकर खड़ा हो गया। ऐसे ही, खड़े खड़े नजर नीचे रास्ते पर गयी। रास्ता तो वही हमेशा की तरह आपने उपर लोगों के आने जाने वाली गाड़ियों की चहल पहल ओढ़े हुए, निशब्द, निर्जीव सा पड़ा हुआ।
था मानो उसे किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है।
मन मे फिर वही सारे चित्र फिर से आपना तांड़व करने लगे। लगा उस वक्त भी, यह रास्ता ऐसे ही चुपचाप पड़ा हुआ था।
उस वक्त.....
कुछ समय पहले, दोपहर के कुछ दो-ढाई बजे थे, मैं अपने कार्यालय से दोपहेर के खाने के लिए बाहर निकला ही था, सड़क पार कर के सामने वाले रास्ते पर मेरा मनपसंद उपहारगृह था, जहाँ मैं अक्सर अपना दोपहर का खाना, मनपसंद खाना, खाना पसंद करता हूँ पर आज...
मैं सड़क पार कर ही रहा था तभी एक तरफ से तेजी से चलकर आने वाली एक कार ने एक महिला को जोर से टक्कर मार के अपघातग्रस्त कर के मैके से निकल गयी थी। वह अपघातग्रस्त महीला बहुत बुरी तरह से आहत हो गयी थी और खुन से लतपत रास्ते पर गिरी हुयी थी। मानो वह आसपास के भीड़ से मदद की अपेक्षा कर रही थी। यह सब मेरे सामने एकदम अचानक घटित हुआ, कुछ समय के लिए मैं तो मानो बर्फ की तरह जम ही गया था।
क्या, कैसे हुआ, कुछ समजने से पहले ही, भीड़ ने रास्ते पर कब्जा कर लिया, लोग यह दृष्य देखकर आपस मे बातचीत कर रहे थे। कुछ खामखाॅ चिल्ला रहे थे। अरे किसी ने उस गाड़ी का नंबर देखा क्या ? कोणसी गाड़ी थी, कहां गयी, किसीने गाड़ी को रोका क्युं नहीं? कोई पोलिस को बुलावो, कोई अँब्यूलन्स को बुलावो, कोई मदद करो, यह सब हल्ला मचा हुआ था। सभी सिर्फ बाते ही कर रहे थे, कुछ आपने आपने हायटेक मोबाईल फोन से घटीत घटना का चित्रण कर रहे थे। मानो आपस मे कोई प्रतियोगीता चल रही हो, के कोण सब से पहले चित्रण कर के, तथाकथित सोशल मिड़ीया पर अपलोड़ करता है। सभी आप आपनी जगह पर खड़े रहेकर आप आपना काम कर रहे थे, पर जो काम सब से पहले उन्हे करना चाहीये था सिर्फ वही काम वहा खड़ा कोई भी मानो करना ही नहीं चाह रहा था।
ओ काम था, उस अपघातग्रस्त महिला की मदद करना, पर वहां पर खड़े लोगों में से मानो किसी को भी, उस महीला के प्रती कोई दया भाव ही नहीं था। कुछ लोग कहे रहे थे, कोण इस लफड़े में पड़ेगा ? हम जायेंगे मदद करने, फिर बाद मे पुलिस बहुत परेशान करती है। कोण जि का जंजाल पालेगा? मानो सभी कि मानवता, इन्सानियत कही खत्म ही हो गयी हो।
लोग सारे फत्थर बने हुये थे। वह महीला आपनी आँखें बंद करते करते जमा भीड़ कि तरफ बड़े आशावादी नजरो से देख रही थी। पर,लोग देख रहे थे तमाशा। वहा कोई तमाशा नहीं हो रहा था, पर भीड़ इक्टठा तो हो ही गयी थी, चिल्ला भी रही थी, पर उन सब फत्थर दिल लोगो मे से किसी के भी दिल में उस महीला कि मदद करने कि सिधी बात तक नहीं आ रही थी। आसपास ईन्सान तो थे मगर उन मे से मानो इन्सानियत कही खो ही गयी थी।
वह अपघातग्रस्त महीला जखमी हालात में सड़क पर दया और मदद कि उम्मीद मे थी, और लोग खड़े खड़े सिर्फ और सिर्फ चर्चा, और व्हीड़िओ बना बना कर खुद कि, झुठी जागृक्ता दिखाने मे लगी हुयी थी। ऐसी जागृता किस काम कि, जो असाहाय्यता, मजबुरी का सिर्फ अवलोकन ही करे पर उनकी मदद करने कि हिम्मत तक जुटा नहीं पा सकती है। मै इस सब से बहुत आहत हो रहा था। पर लोगो कि भीड़, रास्ते पर जमा गाड़ियों का चक्का जाम ट्रॅफिक जाम के वजह से मुझे उस महीला तक पोहचने मे थोड़ी तखलिफ हो रही थी। पर जैसे तैसे लोगो के बीच से रास्ता निकालता हुआ, मै उस महीला तक पोहचने कि पुरि कोशिश कर रहा
था। आखिर जैसे तैसे मै वहा तक, लोगो के घेरे के बिचोबिज पोहचा, अपघातग्रस्त महीला लगभग बेहोश हो गयी थी। मैंने आसपास के लोगों से मदद कि गुहार लगायी, पर कोई भी मुझे उचित प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था। प्रसंग कि गंभीरता को देखकर मैंने तुरंत आपने जेब से आपना मोबाईल फोन निकाल कर अँब्यूलन्स के लिए और साथ ही साथ पुलिस को भी मदद हेतु फोन लगाया। पर उस वक्त तक, वहा पर खड़े लोगो ने मूझे मुफ्त कि सलाह देना, सवाल पुछना शुरू किया, क्या आप उन्हे जानते हो ? पहेचानते हो? आप क्युं मुफ्त मे मुसिबत मोल रहे हो?
पर उनके इन सवालो को नजरअंदाज कर के मै पुलिस और अँब्यूलन्स कि प्रतिक्षा कर रहा था।
पर रास्ते पर इतना ट्रॅफिक जाम था कि,मदद सही वक्त पर नहीं पोहचने के वजह से, शरीर से ज्यादा खुन बहेने के वजह से, जब तक मदद मिली, तब तक उस अपघातग्रस्त महीला कि जिवन लिला वही पर समाप्त हो गयी थी।
जब मुझे यह पता चला, तो मुझे मानो साप ही सुंघ गया। मै सोचता ही रहे गया कि, कोन था उस महीला के मौत का जिम्मेदार ? आज इन्सानो कि बस्ती मे ज़िन्दगी महेंगी और मौत सस्ती हो गयी है। थोड़ी ही देर मे पुलिस उस महीला के शव को लेकर चली गयी, और यह भागता हुआ शहर, फिर आपने काम मे जुट गया,
किसी को कुछ फरक ही नहीं पड़ रहा था। और मैं आपने सिने पर उस घटना का बोज लेकर घर कि तरफ बड़ने लगा। यह सोचता रहा कि, यह हादसा मेरे साथ भी घट सकता था, पर हर कोई खुशनसिब नहीं होता है।
और कुछ दिनो तक उस हादसे को भुलना मानो मेरे लिये तो बहुत मुश्किल ही था।
खैर, जो बित गया सो बित गया...
इन्सान खुद के लिए तो,
बहुत बड़ा बन गया।
पर क्या इन्सान,
सही मे इन्सान बन गया ?