गुदगुदाहट
गुदगुदाहट


मदन महल स्टेशन में सुबह 6 बजे भोपाल जाने वाली जनशताब्दी एक्सप्रेस की भीड़ थी. सुरेश और गगन अपने टिकट बुकिंग काउंटर में काम कर रहे थे. ट्रैन को पहुंचने में 5 मिनट का समय ही बचा था।
सुरेश ने सभी रिजर्वेशन टिकट का चार्ट फाइनल करके चेयर में बैठे बैठे अंगड़ाई ली ही थी की एक पैसेंजर भागे भागे आया और जनशताब्दी में इटारसी स्टेशन तक 1 और सीट के रिजर्वेशन के लिए पूछा। सुरेश ने उसे बताया की चार्ट बन चूका है अब आप ट्रैन में TTE से सीट ले लीजियेगा ।
व्यक्ति ने कहा की उसे यात्रा नहीं करनी है . वो तो अपने साहब की बेटी निधी को बैठाने आया है , सीट निधी के लिए चाहिए।
सुरेश और गगन दोनों के कान उत्सुकता से खड़े हो गए, अगले 10 सेकंड में ही उन्होंने अपनी परिकल्पनाओं के घोड़े फुल स्पीड में दौड़ा दिए। सुरेश तो अगले 5 सेकंड में निधि के साथ गोवा ट्रिप भी हो आया।
उन दोनों की कल्पनाओ के घोड़ो पर लगाम लगी और निधि ने काउंटर पर दर्शन दिए। और दोनों को बिलकुल भी निराशा नहीं हुई क्यूंकि निधि 23 वर्ष की और उनकी कल्पनाओ से भी ज्यादा सुन्दर थी।
सुरेश सीट से खड़े हुए बोला में TTE से बात करके आपको सीट दिलवा दूंगा ट्रैन मे।
बाजु में बैठे गगन ने सुरेश को घुरा और तुरंत ही पीछे बैठे अनुराग की और इशारा करते हुए बोला, अनुराग बाबू भी TTE ही है, छुटी में भोपाल जा रहे हैं, वह निधी को ट्रैन में सीट दिलवा देंगे और इटारसी तक छोड़ भी देंगे.
सुरेश ने गगन की चतुर मंद हसी को भाप तो लिया पर मुस्कुराते हुए हामी भर दी.
अनुराग जो अभी तक सुबह के न्यूज़ पेपर में लव गुरु की टिप्पड़ियो को पड़ने में तल्लीन थे, अचानक आयी इस खूबसूरत जिम्मेदारी को देखके अपने चश्मे को 2 बार साफ़ किये और मुश्कुराते ही रह गए बस।
ट्रैन प्लेटफार्म पर आने का संकेत हो चूका था सो अनुराग और निधि प्लेटफार्म की और चल दिए। अनुराग झेपते हुए निधि से कुछ दूर खड़ा था AC कोच जहाँ आते है उस जगह। मन में विचार तो ऐसे चल रहे थे जैसे गरम तवे पे पॉपकॉर्न उछलते हैं।
ट्रैन प्लेटफार्म पर आयी। हेड TTE साहब ने अनुराग को देखते ही हाथ हिलाते हुए पूछा “भोपाल”।
चले जाओ AC कोच की 64 नंबर सीट पे।
अनुराग ने उनके पास पहुँचके धीरे से कान में फुसफुसाया और मुश्कुराते हुए निधी के पास आके उसको non ac कोच की तरफ चलने को कहा।
Head TTE बाबू के चेहरे पे उलटे इंद्रधनुष की तरह लम्बी और सतरंगी मुस्कान थी.
ट्रैन चल दी , अनुराग ने निधी को non ac सिटींग कम्पार्टमेंट में अपने आगे वाली सीट पे बिठा दिया और खुद उसके ठीक पीछे वाली सीट पे बैठ गया। गुरुवार का दिन होने की वजह से ज्यादा भीड़ नहीं थी ट्रैन में।
अब उधेड़बुन चालू थी अनुराग के मन में की कैसे बातचीत शुरू की जाए। वो देख रहा था की निधी कोई मैगज़ीन पढ़ रही है.
10-15 मिनट यु हीं चले गए।
अनुराग ने हिम्मत बाँधी और सीट से उठा की बात करता हु। अपनी पंक्ति से निकल के निधि की सीट में जाने के लिए बड़ा और घबराहट में पलटकर वाशरूम की और चला गया।
मन ही मन अपने आप को कोसते हुए खुद को जितनी गालिया दे सकते हैं दी, हाथ धोये और अपनी हौसला अफ़ज़ाई करते हुए वापस आकर अपनी सीट पे बैठ गया।
अब उसने देखा की निधि अपने मोबाइल में फोटोज देख रही है। सोचा यही सही मौका है, अब तो बात कर ही लेता हु।
आगे बड़ा ही था की Head TTE साहब आ गए और अपनी सतरंगी मुश्कान के साथ निधी को देखा। निधी ने अपना चालू टिकट उनकी और बढ़ाते हुए पूछा कि पावती के लिए कितने पैसे देने है। Head TTE साहब ने अनुराग की और देखा और निधी से बोले आप रहने दीजिये , अनुराग बाबू देख लेंगे।
और अपनी नजरो नजरो की भाषा में ही अनुराग से स्वीकृति लेली की "ठीक है ना बेटा"। और अपनी निगाहो से कुछ कह पाते तभी अनुराग ने सर हिलाते हुए इशारा कर दिया की अब हमे थोड़ा कोशिश करने दो।
जाते जाते head TTE बाबू की निगाहो में अनुराग ने पढ़ लिया “ बेटा, आइटम शानदार है”।
अब अनुराग आगे बड़े और निधि से पूछा की में आपके बाजु वाली सीट में बैठ सकता हु।निधि ने भी हामी भर दी। और अनुराग बाबू ने शालीनता के उच्चतम स्तर के साथ बातचीत आगे बढ़ाना चालू किया।
इधर उधर , पढ़ाई लिखाई, शौक नापसंद , सात समुन्दर की बातो के बिच अनुराग यही सोच रहा था की अब ज्यादा टाइम नहीं है इटारसी आने में। कैसे नंबर मांगू। निधि ने भी बातो बातो में अनुराग की आँखों की तारीफ कर दी थी। भले ही वह चश्मे की परतो के पीछे छुपी हुई थी। अनुराग के हौसले बुलंद थे पर लड़कियों के मामले में शर्मीला होने की वजह से कैसे बोले यही सोच रहा था।
अनुराग कुछ कहता उसके पहले ही निधी ने बोला आप मुझे अपना नंबर दे दीजिये में 3-4दिन बाद वापसी में आपको कॉल कर लुंगी अगर रिजर्वेशन को लेकर कुछ प्रॉब्लम हुई तो ।
अरे वाह इतना आसान था , अनुराग ने सोचा।जैसे एग्जाम में जवाब पता न हो और कोई दोस्त बता दे वैसी ही खुशीके साथ अनुराग ने टिकट के पीछे निधि को अपना नंबर लिखके दे दिया।
अनुराग और निधि दोनों ही अपने मन में गुदगुदाहटट लिए हुए अपने अपने घर की और चले गए।
अनुराग शाम को 4-5 बजे निधि के कॉल का इंतज़ार करने लगा। हालाँकि निधि ने ऐसा कुछ कहा नहीं था की वह कॉल करेगी पर अनुराग को लग रहा था की कॉल आएगा। कुछ देर इंतज़ार के बाद वो घर के किसी काम में बिजी हो गया।
8 बजे अचानक फिर याद आयी और मायुसी होने लगी। अपने आप को कोशने लगा की इतना सब किया ही था तो उसका नंबर और ले लेते तो sms ही कर देते।
9:15 बजे के आस पास कॉल आया । निधि की मधुर आवाज़ में हेलो सुनते ही अनुराग को हवा में 20 फ़ीट उछलने का मन किया।
"कौन"
"मैं निधी, पहचाना नहीं आपने। आज सुबह आपको ट्रैन में मिली थी।
मुझे आपकी हेल्प चाहिए थी। मैंने संदीप को बताया की आप कितने हेल्पिंग नेचर के हैं। हम दोनों को परसो बॉम्बे जाने के लिए हावड़ा मेल में 2 बर्थ AC-3 में चाहिए थी।
सॉरी , आपको बताना भूल गयी. संदीप मेरा बॉयफ्रेंड है। हम बॉम्बे घूमने जा रहे थे।
और अगली सुबह अनुराग बाबू वापस न्यूज़ पेपर में लव गुरु की टिप्पड़ियों में विलप्त चाय की चुस्किया ले रहे थे।