गरीब का बच्चा
गरीब का बच्चा
एक कस्बे में एक गरीब का बच्चा होता था
बचपन में पिता का साया उससे है उठ जाता
वो अपनी बीमार माँ का अब एकमात्र सहारा
कैसे पढा - लिखा पाती उसकी माँ
बेघर थे दोनों करते थे भीख माँगकर वो गुजारा
जैसे - जैसे बेटे ने अपना होश संभाला
मूंगफली - चने बेचकर करने लगा वो दो वक़्त की रोटी का अपनी माँ के लिए इंतज़ाम बेचारा
उसके जीवन में ये सब चल ही रहा था
एक ऐसा मनहूस दिन भी आया
उठ गया माँ का हाथ सिर से उसके
ये कैसा दिन प्रभु तूने था उसको दिखाया
अब उसको कुछ ना समझ था आया
सोच कर रोता बड़ा क्यों भगवान तूने दुनिया की ठोकरों में मुझको है रुलाया
पता नहीं कैसे मेरे दिन कटेंगे
कहते है विधाता के होते लेख न्यारे
उसकी किस्मत में भी एक सुन्दर सी लड़की का साथ जोड़ डाला
अब वो लड़की करने लगी उसकी फ़िक्र
रहता उसके होठों पर उस लड़के का जिक्र
अब वो इस कदर उसका साथ निभाने लगी
खुद उसको वो पढ़ाने लगी
उस लड़के ने ऐसी मेहनत कर डाली
जैसे लड़की ने उसकी सोई तक़दीर है जगा डाली
वो लड़का अब पढ़कर एक कलेक्टर है बन जाता
इतना सब होने पर वो अपने पुराने दिन ना भूल पाया
उसने गरीब का बच्चा नाम से एक संगठन बनाया
अपने जैसे ना जाने कितने यतीम बच्चों को उसने वहां पढ़ा - लिखाकर उनका मुक्क्दर जगाया
उस लड़की के अहसान को भी वो ना भुला सका
बना अपनी पत्नी उस पर अपना प्यार लुटाता गया
आज वो दुनिया का मजबूत इंसान है
हर किसी की जुबान पर गरीब का बच्चा महान है
ऐसी कहानी में ही उसकी पहचान है