बजरंग लाल सैनी वज्रघन

Drama Inspirational

4.3  

बजरंग लाल सैनी वज्रघन

Drama Inspirational

घर वापसी

घर वापसी

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अपनी पत्नी रश्मि के साथ एक छोटे से डिब्बा नुमा फ्लैट में रहने वाले रजत ने ऑफिस पहुंचकर जैसे मोबाइल निकाला और उसमें फेसबुक पर आए मैसेज को पढ़ा तो उसकी आंखों में एकाएक वीरानी सी छा गई लेकिन अगले ही क्षण किसी दृढ़ संकल्प से संकल्पित आंखें दिवाकर की मानिंद चमक पड़ी। जल्दी-जल्दी कुछ काम निपटाए और जा पहुंचा अपने बॉस के केबिन में आधे दिन की छुट्टी लेने। 

मकड़ी के जाल में फंसे कीट की तरह बॉस भी किसी फाइल में उलझे हुए थे इसलिए बिना किसी हील हुज्जत के रजत को छुट्टी दे दी। पिंजरे से आजाद किए गए किसी पंछी की तरह रजत भी चहकता हुआ अपनी मोटरसाइकिल से बाजार की ओर निकल पड़ा। एक कपड़े की दुकान से कुछ कपड़े खरीदे फल मार्केट से दो फूल माला और थोड़े फल खरीदें। 

जैसे ही दो थैलों में सामान भरकर रजत बाजार से निकलकर घर की ओर चला वैसे ही अचानक चिहुंक पड़ा जैसे कुछ भूल गया हो और वापस बाजार की ओर लपका तथा एक इलेक्ट्रॉनिक्स शोरूम से टाइटन की बड़े डायल वाली घड़ी खरीदी, गिफ्ट पैक करवाया और सुकून की सांस लेते हुए घर की तरफ चल पड़ा।

 जैसे-जैसे घर नजदीक आता जा रहा था वैसे वैसे उसकी धड़कनें बढ़ती जा रही थी तथा मन में अनेक शंकाओं, आशंकाओं के बादल उमड़ घुमड़ कर उसे भयभीत कर रहे थे। रजत बार बार सोच रहा था कि रश्मि को कैसे बताऊंगा ? क्या वह मानेगी ? अगर वह नहीं मानी तो ? 

रजत की सारी खुशी काफूर हो गई सारा उत्साह हवा हो गया। 

अपार्टमेंट में गाड़ी पार्क कर जब फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचा तो उसका कलेजा धाड़ धाड़ कर सीने से निकलने को आमादा हो गया। वह रश्मि के स्वभाव से वाकिफ था। जो मैं सोच रहा हूँ, उसे रश्मि कभी स्वीकार नहीं करेगी। शहर से मात्र 13 किलोमीटर दूर बड़ा सारा घर और भरा पूरा परिवार छोड़ कर इस छोटे से दड़बे में रहने का कारण भी यही था। 

रजत आज भी उस दृश्य को भुला नहीं था जब रश्मि की ज़िद और खुद की महत्वाकांक्षा की वजह से अपने माता पिता को वृद्ध आश्रम छोड़ कर आया था। आज भी माता-पिता की वो आंसुओं से लबालब भरी आंखें उसकी रूह को छलनी करती रहती है और ना जाने कितनी बार उस दृश्य को याद कर अकेले में रोया है और कितनी बार अपनी नजरों में गिरा है ? कुछ देर दरवाजे के सामने बुत बनकर खड़ा रहने और अपने मुख को आंसुओं से गीला करने के बाद उसने अपने मुख को रुमाल से पौंछा, मन को संयत किया और कांपते हाथों से डोर बेल बजाई। 

हमेशा मुस्कुराते हुए दरवाजा खोलने वाली रश्मि का चेहरा आंसुओं से तरबतर था। रश्मि को इस स्थिति में देखकर रजत के मन को अनेक चिंताओं, आशंकाओं ने एक साथ घेर लिया और उसका हृदय किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा। अपने आप को संयत करते हुए वह रश्मि से पूछ बैठा।

रजत:- अरे रश्मि! यह क्या हुआ ? क्यों रो रही हो ? सब ठीक तो है ? गुड्डू कहां है ? तुम कुछ बताओगी भी ? 

रश्मि :--(रोते हुए) रजत! वो पापा मम्मी। 

रजत:-- क्यों क्या हुआ पापा मम्मी को ? अभी 3 दिन पहले ही तो बात की थी ? कितना खुश लग रहे थे ? 

रश्मि :--वो भैया-भाभी ने उनको घर से निकाल दिया!। 

रजत:-- तो क्या हुआ ? हम हैं ना ! हम रखेंगे उनको अपने घर में। तुम्हें भी मम्मी पापा का साथ मिल जाएगा। गुड्डू कितना खुश होगा पता है तुझे और मम्मी पापा भी तो कितना खुश होंगे ? 

(ऐसा कहते कहते रजत की आंखों के सामने खुद के मम्मी पापा का आंसुओं से भरा चेहरा घूम गया और ना चाहते हुए भी दोनों आंखों से आंसू झलक पड़े) 

रश्मि:--( जोर-जोर से रोते हुए) रजत मुझे माफ कर दो, मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया है। आज मुझे पता चला है कि मां बाप का दुख क्या होता है ? मैंने नासमझी में भरे पूरे परिवार को नर्क बना दिया है। ईश्वर तो मुझे माफ नहीं करेगा लेकिन तुम तो कर सकते हो ? 

रजत :--पगली मैं कौन होता हूं माफ करने वाला ? 

माफी देने की असली हकदार तो वे हैं। 

रश्मि :--रजत जल्दी चलो पहले वृद्धाश्रम से मम्मी पापा को लाते हैं। ईश्वर ने मुझे इंसान बनने का एक मौका और दिया है। 

रजत:-- पहले तुम्हारे पीहर चलकर मम्मी पापा को लाते हैं, पता नहीं वे किस हाल में होंगे ? 

रश्मि:-- वे आ गए हैं और मैंने उन्हें खाना खिला कर आराम करने को कहा है, अभी सो रहे हैं। 

रजत :--अच्छा तो फिर चलो मम्मी पापा को ले आते हैं। 

रजत और रश्मि ने वृद्धाश्रम पहुंचकर सारी औपचारिकताएं पूरी की और रश्मि ने सास ससुर से अपनी गलतियों की क्षमा मांगी। 

रजत की मां :--तू तो बेटी है मेरी, आ गले लग जा' ऐसे नहीं रोते बेटा। 

बड़ा ही अद्भुत दृश्य था बेटा बाप से लिपटा हुआ था और बहू सास से। चारों रो रहे थे चारों खुश थे। 

रश्मि और रजत :--आओ मम्मी पापा घर चलें। 

घर पहुंच कर दोनों समधी और समधिन एक दूसरे से मिले,गिले-शिकवे दूर किए। 

 रश्मि :--रजत हमें इस छोटे से फ्लैट में नहीं बल्कि हमारे घर में रहना है। चलो घर चलें। 

रजत:-- हाँ मैं भी यही कहना चाहता हूँ, तुम तैयारी करो, मैं अभी गाड़ी बुलाता हूँ। 

आगे आगे एक बड़ी गाड़ी में रजत, रश्मि, उनके मम्मी पापा और गुड्डू बैठे हुए हैं, एक दूसरे से जोर-जोर से ठहाके लगाते हुए बातें कर रहे थे और पीछे एक ट्रक में सामान लदा हुआ था। गुड्डू दादा दादी और नाना नानी से ऐसे घुल मिल गया था जैसे दूध में शक्कर। 

गाड़ी में आगे बैठे रजत की आंखों के कोर गीले हो गए थे। सारा घटनाक्रम कुछ इस तरह नाटकीय हुआ कि रजत किसी को भी नहीं बता सका कि वह फादर्स डे पर अपने माता-पिता के लिए गिफ्ट लाया था। 

सुबह का भूला एक कारवां शाम से पहले अपने घर की ओर लौट रहा था।


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