एक सुनहरी शाम
एक सुनहरी शाम
वैसे तो मे शुद्ध शाकाहारी हिन्दू परिवार से हूँ पर बचपन से ही शायद मुझे धर्म निरपेक्ष होने की शिक्षा मिली है ! मेरे लिए धर्म यानि दायित्यों का भलीभांति निर्वहन होने से है, और एक स्वरुप बच्चों के मन सा कोमल और निर्मल होने से है !
तो मै क्रिसमस मनाने अक्सर चर्च जाती रहती हूँ, ये भूमिका इसीलिए बाँधी ताकि समझ आये मेरी ये बात, ज्यादा घुमाकर बातें में करती नहीं हूँ, पर समझाने मे कोई भी कसर छोड़ती नहीं हूँ !
तो वो दौर हमारी बेरोजगारी का था,अपेक्षाएं और उम्मीदें साथ दे नहीं रही थी पर पुरजोर कोशिश जारी थी, तो इसी बीच क्रिसमस आया, हम भी सब भूल सुबह चर्च गए ! इशू जी से अपने तरीके से प्रणाम किया और आशीर्वाद माँगा, फिर वापिस आ गए !
मन उस दौर मे बड़ा आकुल रहता था सिर्फ उसे नौकरी मिलने का इंतजार रहता था ! तो मन को शांत करने के लिए हम दुबारा शाम मे भी चर्च गए, और घूम फिर कर वापिस आ गए !
यकीन मानिये बुझे मन से एक दिन पीछे का मेल देख मन शॉक मे चला गया ख़ुशी के मारे, क्यूंकि मुझे नौकरी मिल गयी थी !
इतने दिन से जिस दिन का इंतजार था वो घड़ी सामने थी पर सूझ ही नहीं रहा था क्या करे तो आखिर खुद को यकीन दिला के बड़ी मौज के साथ वो साल के कुछ आखिरी दिन बिताये अपने कुछ बहुत अच्छे जरूरत पे मदद करने वाले दोस्तों के साथ,
नए साल का भी स्वागत धूमधाम से किया !
तो सौ पते की बात ये है ना अगर आपको भगवान में यकीन है तो हर एक रूप में वो आपका भला और मार्गदर्शन जरूर करेगा !
