एक चेहरा
एक चेहरा
आज शाम को अपनी ड्यूटी से घर लौट ही रहा था कि अचानक से मेरी नजर फुटपाथ पे बैठी एक वृद्ध महिला पर पड़ी।
जो फटे चीथड़ों में गुमसुम अपने तन को लपेटे,शायद अपने नसीब को कोस रही थी ।
तभी मैं उसके पास पहुंच गया।मुझे देखते ही वह सहम गयी।उसकी आँखों में उम्मीदों की किरणें साफ झलक रही थी।उसकी आँखों की नमीं बार-बार चिल्ला-चिल्ला यही कह रही कि शायद उसका कुछ खो गया है और वह उसे ढूंढने की कोशिश में खुद को ही भूल बैठी है। इसी ऊन-बीन में वह अभी तक खुद को संजोए हुए है।मैंने उसके परिवार के बारे में पूँछा तो उसने बताया के उसके परिवार में कोई नहीं है,एक आंख का तारा था उसे भी नियति ने समय से पहले ही काल कवलित कर दिया।आखिर उसका क्या दोष था।सड़क पर अपनी बायीं तरफ से ही तो चला जा रहा था कि पीछे से आते हुए एक ट्रक ने ऐसी टक्कर मारी कि दुबारा वह उठ न सका।उसकी आँखों से बहते हुए आँसुओ में खुद को भींगता हुआ महसूस कर रहा था,और दिल में बस यही ख़्वाब आ रहे थे कि कुछ ऐसा कर दूं जिससे उस वृद्धा के कष्ट को दूर कर सकूं ।कोई ऐसा चमत्कार कोई ऐसा उपाय मिल जाये जो उस वृद्धा के दुखों को समूल नष्ट कर दे।
पर नियति को तो किसी के दुख की परवाह कहां? बिधना ने जो लिख दिया है वही नियति है,और वो होकर रहेगा।
जैसे-तैसे उसको ढांढस बंधाया और अपने घर को चल दिया रास्ते भर उसकी बातें, उसकी सहमी छवि बार बार आंखों को द्रवित कर रही थी।बार बार वही चेहरा आंखों में आ रहा था बार बार यही कह रहा था कि काश उस बूढ़ी माँ के सारे दुखों को हरने का कोई तरीका मिल जाये।यही सोचते-सोचते आखिरकार बिना कुछ खाये ही सो गए।और सुबह जगे, आफिस के लिए रवाना हुए,उसी जगह पहुंचे परंतु न वो बूढ़ी माँ थी परंतु उसकी यादें रह रह कर झकझोर रहीं थीं।आखिर वो गयी तो कहाँ?
